ISRO का बड़ा मिशनः अंतरिक्ष में करेगा ऐसा प्रयोग जो आज तक नहीं किया

मुख्य समाचार, राष्ट्रीय

03 अक्टूबर 2019,

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organization- ISRO) के दूसरे मून मिशन चंद्रयान-2 के विक्रम लैंडर की खराब लैंडिंग के बाद देश के सबसे बड़े वैज्ञानिक संस्थान के कदम रुके नहीं है. अब वह ऐसा मिशन करने जा रहा है, जो उसने आज तक नहीं किया. इसरो चीफ डॉ. के. सिवन ने कुछ महीने पहले बताया था कि भारत अपना स्पेस स्टेशन बनाएगा. स्पेस स्टेशन बनाने के लिए सबसे जरूरी है दो अंतरिक्षयानों या सैटेलाइट या उपग्रहों को आपस में जोड़ना. यह मिशन बेहद जटिल है. इसके लिए अत्यधिक निपुणता की आवश्यकता होती है.

इसरो चीफ डॉ. के. सिवन ने कहा कि ये वैसा ही है जैसे किसी इमारत को बनाने के लिए हम एक ईंट से दूसरी ईंट को जोड़ते हैं. जब दो छोटी-छोटी चीजें जुड़ती है, तब वो बड़ा आकार बनाती हैं. इस मिशन का नाम है स्पेडेक्स यानी स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट. अभी इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए सरकार से 10 करोड़ रुपए मिले हैं. इसके लिए दो प्रायोगिक उपग्रहों को पीएसएलवी रॉकेट से लॉन्च किया जाएगा. फिर उन्हें अंतरिक्ष में जोड़ा जाएगा. इस मिशन में सबसे बड़ी जटिलता ये है कि दो सैटेलाइट्स की गति कम करके उन्हें अंतरिक्ष में जोड़ना. अगर गति सही मात्रा में कम नहीं हुई तो ये आपस में टकरा जाएंगे.

इसरो चीफ डॉ. के. सिवन ने कहा कि इस मिशन को करने का मतलब ये नहीं कि इसरो के स्पेस स्टेशन मिशन की शुरुआत हो चुकी है. क्योंकि यह एक प्रायोगिक मिशन है. क्योंकि स्पेस स्टेशन का मिशन दिसंबर 2021 के गगनयान अभियान के बाद ही शुरू किया जाएगा. क्योंकि अंतरिक्ष में इंसानों को भेजने और डॉकिंग में महारत हासिल करने के बाद ही स्पेस स्टेशन मिशन की शुरूआत की जा सकेगी.

डॉकिंग प्रयोग से क्या फायदा होगा?

इसरो चीफ डॉ. के. सिवन ने कहा कि इसरो वैज्ञानिकों को यह पता चलेगा कि वे अपने स्पेस स्टेशन में ईंधन, अंतरिक्ष यात्रियों और अन्य जरूरी वस्तुएं पहुंचा पाएंगे या नहीं. पहले स्पेडेक्स मिशन को 2025 तक पीएसएलवी रॉकेट से छोड़ने की तैयारी थी. इस प्रयोग में रोबोटिक आर्म एक्सपेरीमेंट भी शामिल होगा. इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) को पांच देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों ने मिलकर बनाया है. ये हैं- अमेरिका (NASA), रूस (ROSCOSMOS), जापान (JAXA), यूरोप (ESA) और कनाडा (CSA). ISS को बनाने में 13 साल लगे थे. इसमें भी डॉकिंग टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया था. ISS को बनाने में 40 बार डॉकिंग की गई थी.

स्पेस स्टेशन मिशन में क्या होगा?

इसरो चीफ डॉ. के. सिवन ने कहा कि भारतीय स्पेस स्टेशन का वजन 20 टन होगा. इसकी बदौलत हम विभिन्न प्रकार के प्रयोग कर पाएंगे. साथ ही माइक्रोग्रैविटी का अध्ययन कर पाएंगे. भारतीय स्पेस स्टेशन में 15-20 दिन के लिए कुछ अंतरिक्षयात्रियों के ठहरने की व्यवस्था होगी. अगर इसरो 5 से 7 साल में अपना स्पेस स्टेशन बना लेगा तो वह दुनिया का चौथा देश होगा, जिसका खुद का स्पेस स्टेशन होगा. इससे पहले रूस, अमेरिका और चीन अपना स्पेस स्टेशन बना चुके हैं.

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