साहित्य, कला, संस्कृति वाद का विषय है, विवाद का नहीं : आशुतोष राणा

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Published: 08 Nov 2019,

भोपाल। साहित्य संस्कृति और कला का समावेश विश्व रंग झीलों के शहर भोपाल से पूरे विश्व में अपनी छटा बिखेर रहा है। विभिन्न कार्यक्रमों की श्रंखला में शुक्रवार को सांयकालीन मुलाकात सत्र में सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता, निर्देशक एवं कवि आशुतोष राणा लोगों से रूबरू हुए।

मंच संचालन विश्वरंग के सह निदेशक सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने किया। फिल्म अभिनेता आशुतोष राणा ने कला और साहित्य पर विस्तार से अपने अनुभव को साझा किया उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि निराकार को साकार करने वाला व्यक्ति ही कलाकार होता है। अतीत में ग्लानियाँ और भविष्य में चिंताएं होती हैं, इनके बीच सच्चा कलाकार वही है जो अतीत और भविष्य से आपको वर्तमान में ले आए और चिंताओं-ग्लानियों से मुक्त कर दे। कलाकार किसी की परिस्थिति तो नहीं बदल सकता लेकिन मन:स्थिति जरूर बदल सकता है। उन्होंने कहा कि साहित्य, कला एवं संस्कृति वाद का विषय है, विवाद का नहीं। जब कोई रचना दूर तक फैलती है तो रचनाकार को बड़ा सुख मिलता है।

राणा ने किया कविता पाठ

आशुतोष राणा ने भारत के महान पुरुषों के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि राम, कृष्ण, चंद्रगुप्त, चाणक्य, गांधी, रानी पद्मावती ऐसी चेतनाएं हैं जो केवल आती हैं यह कभी जाती नहीं हैं। यह विचार के रूप में हमेशा हम सबके अंदर जीवित रहते हैं, आशुतोष राणा ने अपनी प्रसिद्ध कविता ‘हे भारत के राम जगो मैं तुम्हे जगाने आया हूं’ सुनाकर सभागार में जोश का संचार किया।

अपने सपनों को पूरा करने की ज़िम्मेदारी लें युवा

आशुतोष राणा ने विशेष रूप से युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि आपके सपने पूरे करने की जिम्मेदारी केवल आपकी ही है। आप जब अपने लिए सोचते हैं या अपने लिए ख्वाब देखते हैं तो इसे बिल्कुल भी दरिद्रता से ना देखें। अगर आप असंभव सोच सकते हैं तो असंभव को संभव भी कर सकते हैं।

दृष्टि से ज्यादा दृष्टिकोण की अहमियत

अशुतोष राणा ने कहा कि साहित्य में दृष्टि से ज्यादा दृष्टिकोण का महत्व होता है। मेरी किताब ‘मौन मुस्कान की मार’ पीटकर पुचकार करने की परिणिति है। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता और साहित्य बड़ा इज्जत  का काम है।

राणा ने कहा मैरे जीवन में गुरु का बड़ा महत्व

विश्व रंग के दौरान आशुतोष ने अपने कॉलेज के दिनों को याद करते हुए कई किस्से साझा किए। उन्होंने कहा कि मेरे जीवन में मेरे गुरु पंडित देव प्रभाकर शास्त्री का बड़ा योगदान है, उनके ही मार्गदर्शन से मैं आज यहां तक पहुंचा हूं। गौरतलब है कि आशुतोष राणा अपने शहर गाडरवारा में रामायण के दौरान रावण का किरदार निभाया करते थे, इसके बाद उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से पढ़ाई की और नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली में अभिनय सीखा जिसके बाद वह फिल्मी दुनिया में आ गए और अपने बेहतरीन अनुभव के दम पर अलग पहचान स्थापित की।

 विश्वरंग महोत्सव जैसा आयोजन भोपाल में ही संभव है

उन्होंने कहा मध्यप्रदेश तो भारत का बीज पुंज है जिसने मध्यप्रदेश घूम लिया तो मान लो उसने पूरे भारत को घूम लिया। देश की कला, संस्कृति, सभ्यता साहित्य मध्यप्रदेश ने ही संजोकर रखी है। आशुतोष राणा ने कहा कि मध्यप्रदेश देश की सांस्कृतिक राजधानी है। भोपाल सांस्कृतिक भूमि है इसलिए विश्व रंग महोत्सव जैस आयोजन तो सिर्फ मध्यप्रदेश के भोपाल में ही संभव हैं। उन्होंने आईसेक्ट ग्रुप को इस अद्भुत और ऐतिहासिक कार्यक्रम के लिए शुभकामनाएं दी। आशुतोष राणा ने यह भी कहा कि ऐसे आयोजन निरंतर होते रहे। इस अवसर पर उन्होंने अपनी पहली पुस्तक ‘मौन मुस्कान की मार’ के बारे में बताया और उसके कुछ अंशों का पाठ भी किया। आशुतोष राणा ने अपनी आने वाली पुस्तक रामराज्य के बारे में भी जानकारी दी।

आशुतोष ने बचपन की यादें भी साझा की

टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्व रंग के पांचवे दिन मिंटो हॉल में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रदर्शनियों का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुलाकात कार्यक्रम हुआ जिसमें आशुतोष राणा और सिद्धार्थ चतुर्वेदी मंच पर सवाल-जवाब कर रहे होते हैं। सत्र में आशुतोष राणा के जीवन से जुड़े कुछ पल जानने को मिले। कार्यक्रम में सिद्धार्थ ने आशुतोष से पूछा कि आपकी पुस्तक मौन मुस्कान की मार व्यंग्य में क्या खास? वहीं आशुतोष राणा ने सभी को धन्यवाद दिया  और कहा दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं। मौन मुस्कान की मार से शुरूआत इसलिए हुई क्योंकि मैं गाडरवाड़ा से हूं और यहां ग्रामीण अंचल है तो यहां पर बच्चे साक्षर देर से हों लेकिन शिक्षित बहुत जल्दी हो जाते हैं। तो इसमें स्कूल ही पढ़ाने का काम नहीं करता इसमें गांव भी कहीं न कहीं गुरुमंत्र दे रहा होता है। इसके बाद उन्होंने अपने बचपन की यादों को साझा किया।

विश्वरंग : मालवा के कलाकारों ने मटकी लोक नृत्य से बांधा समां

भोपाल। विश्व रंग के पांचवें दिन पूर्व रंग में उज्जैन से आई प्रसिद्ध स्वाति उइके लोक कृति सांस्कृतिक संस्था के कलाकारों ने मालवी लोकगीत पर मटकी नृत्य की आकर्षक प्रस्तुति दी। लोकगीत गायिका स्वाति उइके ने बताया कि यह मालवा का पारंपरिक लोक नृत्य है, जिसे महिलाओं द्वारा मांगलिक अवसर पर किया जाता है। विश्वरंग में इन मालवीय कलाकारों ने ओजी देश परायो, घाघरों पेरु तो गांवड़ी लागूं.. समेत 10 लोकगीतों पर नृत्य की प्रस्तुति दी।

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