September 11, 2025

47 सीटों का खेल : आदिवासियों के इर्द-गिर्द घूमती मध्य प्रदेश की सियासत

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भोपाल. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 के सियासी समीकरण आदिवासी वोट बैंक पर टिके हुए हैं. प्रदेश में विधानसभा की 230 सीट में से 47 आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं. इसके अलावा भी कई सीटों पर आदिवासी वोटरों का खासा दखल है. प्रदेश में आदिवासियों की कुल जनसंख्या 2 करोड़ से भी अधिक है. ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल इस वर्ग को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. एक ओर भाजपा सरकार ने योजनाओं की बौछार कर दी है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस ने आदिवासियों को साधने के लिए विशेष प्लान तैयार किया है.

मध्य प्रदेश की सियासत आदिवासियों के इर्द-गिर्द चलती हुई नजर आ रही है. बीजेपी कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग दे रही है कि वो आदिवासियों के बीच जाकर पार्टी की बात रखें.वहीं पीसीसी चीफ कमलनाथ ने आदिवासी नेताओं और विधायकों को ट्राइबल बेल्ट का दौरा करने और आदिवासियों के साथ संवाद स्थापित करने के निर्देश दे दिए हैं. इतना ही नहीं कांग्रेस ने अगले 6 महीने के लिए प्लान ऑफ एक्शन भी तैयार कर लिया है. इसके तहत पार्टी लगातार इन सीटों पर मेहनत मशक्कत करेगी. कांग्रेस सभी प्रमुख आदिवासी संगठनों को पार्टी के साथ जोड़ने के प्लान पर काम कर रही है. ताकि भाजपा से वो अपना पुराना वोट बैंक वापिस खींच सके. वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 47 में से 30 आदिवासी सीटों पर जीत मिली थी.

कांग्रेस-बीजेपी के प्लान
आदिवासियों को साधने के लिए बीजेपी कांग्रेस की अपनी-अपनी तैयारी है. मांडू में हुए प्रशिक्षण वर्ग में बीजेपी ने आदिवासी वर्ग के लिए खास रणनीति तैयार की है. भाजपा सरकार पिछले एक साल से आदिवासियों पर केंद्रित योजनाओं का तेजी से संचालन कर रही है. पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह के भोपाल दौरे भी लगातार जारी हैं. इस दौरान देश के शीर्ष नेता मंच से आदिवासियों को ढेरों सौगातें देते नज़र आए हैं. भाजपा सरकार के मंत्री विश्वास सारंग ने दावा किया कि सिर्फ भाजपा ही आदिवासी हितैषी है, कांग्रेस चाहें जितनी कोशिश कर ले कामयाब नहीं होगी.

47 सीटों का खेल
2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासियों के वोटों के कारण ही कांग्रेस सत्ता हासिल कर पायी थी. कांग्रेस को 47 में से 30 सीटें मिली थीं. प्रदेश में आदिवासियों की बड़ी आबादी होने से 230 विधानसभा में से 84 सीटों पर उनका सीधा प्रभाव है. प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 31 सीटें जीती थीं. कांग्रेस के खाते में 15 सीट आयी थीं. लेकिन 2018 के चुनाव में सीन एकदम उल्टा हो गया. आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा सिर्फ 16 पर ही जीत दर्ज कर सकी. कांग्रेस ने 30 सीटें जीत ली थीं. भाजपा सत्ता से बाहर हो गयी थी. बहरहाल देखना होगा कि 2023 के चुनावों में आदिवासी समाज किस दल को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाता है.

 

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