September 11, 2025

MP की 200 साल पुरानी परंपरा हिंगोट युद्ध पर रोक

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LAST UPDATED: NOVEMBER 15, 2020,

इंदौर. मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के इंदौर (Indore) में 200 साल पुरानी परंपरा इस साल नहीं निभेगी. इंदौर में होने वाले हिंगोट युद्ध (Hingot War) पर प्रशासन ने इस बार रोक लगा दी है. कोरोना वायरस (Corona Virus) के संक्रमण के खतरे को देखते हुए प्रशासन ने ये निर्णय लिया है. बताया जा रहा है कि 200 साल में ऐसा पहली बार हुआ है, जब तय समय पर हिंगोट युद्ध नहीं होगा. परंपरा के अनुसार हिंगोट युद्ध हर साल दीपावली के दूसरे दिन इंदौर के समीप गौतमपुरा में होता था, लेकिन इस बार इसे अनुमति नहीं मिली है.

हिंगोट युद्ध हर साल दीपावली के दूसरे दिन दो गांवों गौतमपुरा और रूणजी के ग्रामीणों के बीच होता था. इसमें दोनों गांवों के लोग एक-दूसरे पर बारूद से भरे हुए हिंगोट (स्थानीय स्तर पर तैयार खतरनाक पटाखा) फेंकते हैं. अनूठे युद्ध को देखने दूरदराज से लोग पहुंचते हैं. इस युद्ध में कई ग्रामीण घायल तक हो जाते हैं. पिछले सालों में इस युद्ध में कुछ लोगों की मौत तक हो गई है. मान्यता है कि मुगल काल में गौतमपुरा क्षेत्र में रियासत की सुरक्षा में तैनात सैनिक मुगल सेना के दुश्मन घुड़सवारों पर हिंगोट दागते थे. सटीक निशाने के लिए वे इसका कड़ा अभ्यास करते थे. यही अभ्यास परंपरा में बदल गया.

इस तरह तैयार होता है हिंगोट
बताया जाता है कि हिंगोरिया के पेड़ का फल हिंगोट होता है. बड़े नींबू के आकार के इस फल का बाहरी आवरण बेहद सख्त होता है. युद्ध के लिए गौतमपुरा और रुणजी के रहवासी महीनों पहले चंबल नदी से लगे इलाकों के पेड़ों से हिंगोट तोड़कर जमा कर लेते हैं और गूदा निकालकर इसे सुखा दिया जाता है. फिर इसमें बारूद भरकर इसे तैयार किया जाता है. हिंगोट सीधी दिशा में चले, इसके लिए हिंगोट में बांस की पतली किमची लगाकर तीर जैसा बना दिया जाता है. योद्धा हिंगोट सुलगाकर दूसरे दल के योद्धाओं पर फेंकते हैं. सुरक्षा के लिए दोनों दलों के योद्धाओं के हाथ में ढाल भी रहती है.

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