September 11, 2025

Flashback : एक लोकसभा चुनाव वो भी था जब देव आनंद ने अच्छे-अच्छों का दहला दिया था

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Updated at : 19 Apr 2024

Flashback Friday: लोकसभा चुनाव 2024 की शुरुआत हो चुकी है. ये चुनाव 19 अप्रैल से शुरू हो रहे हैं. इस बार भी चुनावों में बॉलीवुड, साउथ इंडस्ट्री, भोजपुरी और बंगाली सिनेमा के जाने-माने अभिनेता फिर से नेता बनने की दौड़ में शामिल हुए हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि फिल्म इंडस्ट्री और पॉलिटिक्स का ये रिश्ता अभी-अभी नहीं बना है.

इसकी शुरुआत बहुत-बुहत पहले हो चुकी थी. अमिताभ बच्चन ने तो 1984 में हुए लोकसभा चुनाव में ही अपनी किस्मत आजमा ली थी. उन्होंने इलाहाबाद से कांग्रेस की टिकट पर न सिर्फ चुनाव लड़ा, बल्कि 2 लाख वोटों से जीता भी.

खैर हम आज जिस अभिनेता की बात करने जा रहे हैं, वो अमिताभ नहीं हैं. हम बात करने जा रहे हैं ऐसे अभिनेता की जिन्होंने अमिताभ के चुनाव लड़ने से भी सालों पहले खुद की एक राजनीतिक पार्टी ही बना डाली थी.

इस राजनीतिक पार्टी का नाम नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया था. जिसका गठन देवानंद साहब ने इमरजेंसी के भयानक दौर के तुरंत बाद यानी साल 1979 में किया था. इसके बारे में उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा भी है.

ये किस्सा तब का है जब जून 1975 में इंदिरा गांधी के पीएम रहने के दौरान इमरजेंसी लगाई गई थी. और उसके तुरंत बाद इस बॉलीवुड स्टार ने बिना किसी डर के न सिर्फ पार्टी बनाई, बल्कि लोकसभा चुनाव लड़ने का टिकट भी दिया.

जब मनमौजी देवानंद से नाराज हो गए कांग्रेसी
फर्स्टपोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1976 में देवानंद से कांग्रेस की तरफ से गुजारिश की गई थी कि वो संजय गांधी की तारीफ में कुछ शब्द कहें. देवानंद तो ठहरे मनमौजी उन्होंने साफ इंकार दिया. दौर इमरजेंसी का था तो वही हुआ जो होना था.

तानाशाही का प्रदर्शन करने में कोई कोताही नहीं बरती गई. देवानंद की फिल्मों और गानों को टीवी में दिखाना बंद कर दिया गया. यहां तक कि ऑल इंडिया रेडियो में भी उनके नाम से जुड़ा कुछ भी बताने या सुनाने तक पर बैन लगा दिया गया.

देवानंद ने कैसे दिया जवाब?
देवानंद अपनी मर्जी के मालिक थे. उन्हें ये बात बुरी लगी कि कोई सरकार इस तरह से तानाशाह कैसे हो सकती है. उन्हें जवाब देने का मौका भी उसी वक्त मिल गया जब इमरजेंसी खत्म ही हुई थी और देश में 1977 के लोकसभा चुनाव होने वाले थे.

जब संसदीय चुनावों की घोषणा हुई तो देवानंद को जाने-माने वकील रामजेठमलानी की तरफ से न्योता भेजा गया कि वो जनता पार्टी के उस अभियान का हिस्सा बनें जो इंदिरा और संजय गांधी के खिलाफ था.

इस बात पर देवानंद सहमत हुए और उन्होंने जनता पार्टी की ओर से कई नेताओं जैसे कि मोरारजी देसाई और जेपी नारायण के साथ मंच भी साझा किया. कुछ भाषण भी दिए.

लेकिन देवानंद का मोहभंग यहां से भी हो गया
जनता पार्टी के चुनाव जीतने के बाद मोरारजी देसाई को पीएम बनाया गया था. लेकिन, आंतरिक कलह इस सरकार को ले डूबी और मोरारजी देसाई को पीएम पद से साल 1979 में इस्तीफा देना पड़ा. देवानंद इस बात से खफा हो गए और उनका इन नेताओं से मोहभंग हो गया.

इसके बाद अगले ही साल यानी 1980 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए. मोरारजी देसाई के इस्तीफा देने से लेकर 1980 के चुनावों के बीच का ही ये समय वो समय था जब देवानंद ने ‘नेताओं की सबक’ सिखाने की ठान ली और इसके लिए उन्होंने अपनी खुद की नई पार्टी नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया का गठन कर लिया.

देवानंद ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में बताई हैं ये बातें
देवानंद की ऑटोबायोग्राफी में ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में उन्होंने खुद ये खुलासा किया था. उन्होंने लिखा था, ”मै नेशनल पार्टी ऑफ इंडिया का अध्यक्ष चुना गया और मैंने इस चुनौती को स्वीकार किया.” इसी किताब में आगे ये भी बताया गया है कि ऐसे लोगों को पार्टी से जोड़ा गया जो अपने-अपने स्तर पर काबिलियत रखते थे.

कुछ लोगों को लोकसभा चुनाव लड़ने का टिकट भी दिया गया. इस पार्टी की रैली मुंबई के शिवाजी पार्क में हुई थी, जिसमें इतनी भीड़ आ गई कि बाकी राजनीतिक पार्टियों को ये खतरे की घंटी लगने लगी. इस रैली में सिर्फ देवानंद ही नहीं, जीपी सिप्पी और संजीव कुमार जैसे लोग भी शामिल हुए थे.

देवानंद देश का भविष्य कैसा चाहते थे?
इस मामले में देवानंद बहुत दूरदर्शी थे. वो एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहते थे जहां सब लोग बराबर हों. उन्होंने कहा था कि अब समय आ गया है कि भारत की संसद में भारत की जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले लोग ऐसे हों जो बुद्धिमान हों, अच्छी जानकारी रखते हों और उनमें ये खास बात भी हो कि वो अच्छे लोग हों.

देवानंद ने अपनी आत्मकथा में ये भी लिखा है कि कितना अच्छा हो अगर हर गांव में बिजली और पानी की व्यवस्था हो जाए. कितना बढ़िया हो कि प्राचीन सभ्यता और आधुनिक भारत को जोड़ने के लिए एक लंबी छलांग लगाई जाए.

उन्होंने ये भी लिखा, ”कितना अच्छा हो अगर सभी को इंग्लिश सिखाई जाए और कार में घूमने वाले लोगों से लेकर किसान, मजदूर और कुली जैसे सारे लोग एक दूसरे से जब मिलें तो प्रेम से एक-दूसरे को देखकर हाथ हिलाएं”.

पार्टी तो बना ली, लेकिन सफल नहीं हो पाए देवानंद
देवानंद ने पार्टी तो बना ली. लेकिन वो असफल हो गए. वजह ये रही कि शुरुआत में जो लोग बड़े जोश से उनके साथ रैलियों में और बैठकों में जाते थे. उन्होंने ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया. उनके समर्थकों में से एक पंडित जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित भी थीं. लेकिन उन्होंने भी चुनाव लड़ने से मना कर दिया.

कुछ पैसे वाले लोगों ने शुरुआत में उन्हें चंदा देने की बात तो की लेकिन बाद में उनकी तरफ से भी माकूल समर्थन मिलता नहीं दिखा. देवानंद ने खुद कहा था कि शुरुआत में जो लोग जोश और हौसला बढ़ा रहे थे जब वो ही ठंडे पड़ गए तो मेरा हौसला भी टूट गया और इस तरह से इस पार्टी का अंत हो गया.

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