धरती से खत्म हो रहा पीने लायक पानी, प्यास से तड़पकर मर जाएंगे इंसान, रिसर्च में खुलासा
Updated at : 22 Nov 2024
वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने नासा और जर्मन उपग्रहों से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल करते हुए पाया है कि मई 2014 के बाद से धरती पर पीने योग्य पानी (मीठा पानी) की मात्रा में अचानक कमी आई है, और तब से यह कमी लगातार बनी हुई है. अध्य्यनकर्ताओं का कहना है कि यह बदलाव इस बात का संकेत है कि पृथ्वी के महाद्वीप सूखे जैसे हालात में प्रवेश कर चुके हैं.
रिसर्च के मुताबिक, साल 2015 से लेकर 2023 तक धरती में उपलब्ध मीठे पानी, जिसमें झीलों, नदियों का पानी शामिल है, 2002 से 2014 के बीच के औसत से 1,200 क्यूबिक किलोमीटर कम हो गया है.
सूखा पड़ने पर खेतों में ज्यादा सिंचाई की जरूरत होती है, और इससे खेतों और शहरों को ज्यादा पानी के लिए भूमिगत जल पर निर्भर होना पड़ता है. इस कारण भूमिगत जल का स्तर गिरने लगता है. बारिश और बर्फबारी से ये जल स्रोत फिर से नहीं भर पाते और इसके बाद और अधिक भूजल निकाला जाता है, जिससे पानी की आपूर्ति और भी कम हो जाती है.
इससे सामान्य जीवन पर क्या असर हो सकता है
धरती पर पीने योग्य पानी की कमी का असर हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी पर काफी गंभीर हो सकता है. सबसे पहले, पानी की कमी से जल संकट बढ़ सकता है, जिससे हमें घरों में पानी की उपलब्धता में परेशानी हो सकती है. लोग पानी के लिए लम्बी कतारों में खड़े हो सकते हैं, और कई इलाकों में पानी का पूरा अभाव भी हो सकता है.
कृषि पर भी इसका सीधा असर होगा क्योंकि खेतों को सिंचाई के लिए पानी चाहिए. अगर पानी नहीं होगा तो फसलें सही से नहीं उगेंगी और खाद्य सामग्री की कमी हो सकती है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं और लोगों को खाने-पीने की चीज़ों के लिए ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है.
इसके अलावा, पानी की कमी से साफ-सफाई में समस्या आएगी, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है. खासकर पानी से होने वाली बीमारियां जैसे डायरिया और हैजा आदि बढ़ सकती हैं. जब सतही पानी की कमी होगी, तो लोग भूमिगत जल का ज्यादा इस्तेमाल करेंगे, जिससे भूजल स्तर गिरने लगेगा और यह स्थिति और गंभीर हो सकती है. अंत में, जब पानी की कमी होती है तो सूखा और प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ सकता है, जैसे जंगलों में आग लगना या अन्य पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न होना, जिससे जीवन और भी कठिन हो सकता है. इस स्थिति से बचने के लिए हमें पानी का सही तरीके से इस्तेमाल और संरक्षण करना जरूरी होगा.
शोध से क्या पता चला
इसी शोध में ये भी पाया गया कि दुनिया भर में मीठे पानी में कमी की शुरुआत उत्तरी और मध्य ब्राजील में सूखे से हुई, और इसके बाद सूखा ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका तक फैल गया. साल 2014 से लेकर 2016 तक, उष्णकटिबंधीय प्रशांत क्षेत्र में समुद्र का तापमान बढ़ा और एल नीनो की बड़ी घटनाएं हुईं, जिससे वैश्विक मौसम पैटर्न और बारिश में बदलाव आया.
हालांकि एल नीनो कम होने के बाद भी पानी की कमी जारी रही शोधकर्ताओं का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग इस समस्या का एक बड़ा कारण हो सकता है. जब वायुमंडल में ज्यादा जल वाष्प जमा होती है, तो बारिश ज्यादा होती है, लेकिन इसकी वजह से जमीन पर पानी कम समाता है और सूखा बढ़ता है. बारिश के बाद पानी भूमिगत जल में नहीं समाता, बल्कि बहकर नदियों में चला जाता है, जिससे जल भंडार नहीं भरते.
ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान बढ़ने से वायुमंडल में पानी का वाष्पीकरण ज्यादा होता है और सूखे की घटनाएं बढ़ती हैं. हालांकि, यह कहना मुश्किल है कि मीठे पानी में यह कमी सिर्फ ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हो रही है.
क्या होता है अल नीनो
अल नीनो एक प्राकृतिक जलवायु घटना है जो हर कुछ सालों में होती है. यह घटना उस वक्त होती है जब उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर के पानी का तापमान सामान्य से ज्यादा बढ़ जाता है. इस गर्मी के कारण महासागर की हवा का पैटर्न बदलता है, जिससे मौसम में बड़े बदलाव होते हैं. अल नीनो के दौरान, समुद्र की सतह का तापमान बढ़ने से हवाएं कमजोर हो जाती हैं, जिससे सामान्य रूप से पश्चिम की ओर बहने वाली हवाएं कमजोर पड़ जाती हैं और इसके परिणामस्वरूप समुद्र की धारा भी बदल जाती है. इसका असर पूरे विश्व के मौसम पर पड़ता है.
इससे कुछ क्षेत्रों में भारी बारिश हो सकती है, जबकि अन्य जगहों पर सूखा पड़ सकता है. उदाहरण के तौर पर, दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर भारी बारिश और बाढ़ हो सकती है, जबकि ऑस्ट्रेलिया और एशिया में सूखा और वनस्पति में कमी आ सकती है. यह घटना ग्लोबल मौसम और जलवायु पैटर्न को प्रभावित करती है, जिससे कृषि, जलवायु और सामान्य जीवन पर असर पड़ता है.
मीठा पानी क्या होता है
मीठा पानी वह पानी होता है जिसमें खारे पानी की तुलना में घुली हुई लवण (नमक) की मात्रा बहुत कम होती है. यह पानी पीने के योग्य होता है और इसका उपयोग कृषि, उद्योग, घरेलू कार्यों और अन्य मानव गतिविधियों में किया जाता है. मीठा पानी मुख्य रूप से नदियों, झीलों, झरनों और भूमिगत जल भंडारों (जैसे कुएं और जलाशय) में पाया जाता है.
पानी का खारापन मुख्य रूप से उसमें घुले नमक (सोडियम क्लोराइड) की मात्रा पर निर्भर करता है. मीठे पानी में यह लवण मात्रा बहुत कम होती है, जो इसे पीने के लिए सुरक्षित बनाती है. जबकि खारे पानी में नमक की अधिक मात्रा होती है, जिससे उसे पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है.
मीठा पानी जीवन के लिए ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पीने के लिए, कृषि कार्यों में, उद्योगों में और स्वच्छता के लिए आवश्यक होता है. दुनिया में मीठे पानी के स्रोत सीमित हैं, और जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जनसंख्या के कारण इसके स्रोतों पर दबाव बढ़ रहा है.