September 11, 2025

क्या मध्य प्रदेश सरकार राज्य में सड़कों की लागत से चार गुना ज्यादा टोल की वसूली कर चुकी है, जानें क्या है सच

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First Published Mar 20, 2022,

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश में बनी सड़कों पर लागत से ज्यादा की टोल वसूली को लेकर एक खबर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। इसमें दावा किया जा रहा है कि राज्य में कुछ ऐसी सड़कें हैं, जिनकी टोल वसूली लागत से चार गुना ज्यादा हो चुकी है। बावजूद इसके टोल वसूली अब भी जारी है। हालांकि, इस बारे में मध्य प्रदेश सड़क निगम की ओर से वास्तविक स्थिति के बारे में बताया गया है।

दरअसल, एक दैनिक समाचार पत्र में गत 12 मार्च को रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें दावा किया गया था कि राज्य में विभिन्न सड़कों की लागत से चार गुना ज्यादा वसूली हो चुकी है, मगर टोल वसूली जारी है। वहीं, मध्य प्रदेश सड़क निगम की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक, बीओटी  जनभागीदारी मॉडल द्वारा सड़कों का निर्माण बीते कुछ साल से देशभर में किया जा रहा है। निगम की ओर से इस बारे में रखे गए पक्ष के मुताबिक-

– बीओटी टोल परियोजना में निवेशकर्ता निर्माण के लिए निवेश लाता है। यह बैंक लोन या उसकी खुद की पूंजी होती है। निर्माण के दौरान और इसके बाद कंपनी ब्याज की अदायगी, मूलधन भुगतान आदि करती है।

– शेष परियोजना तय अवधि में टोल संचालन से मिले उपभोक्ता शुल्क संग्रहण राशि से किया जाता है। परियोजना की लागत में भी समय अनुसार बढ़ोतरी होती है। वर्तमान में परियोजना का मूल्याकंन करने के लिए वर्तमान लागत का ही उपयोग किया जा सकता है।

– जावरा-नया गांव फोरलेन मार्ग परियोजना की वर्ष 2008 में प्रशासकीय स्वीकृति करीब साढ़े चार सौ करोड़ रुपए में थी। इस परियोजना में शासन से जमीन उपलब्ध कराने के अतिरिक्त कोई भी पूंजीगत व्यय नहीं किया गया। निवेशकर्ता की ओर से 847 करोड़ रुपए का निवेश वर्ष 2008 से 20014 तक किया गया। परियोजना मार्ग का निर्माण एवं अन्य सुविधााओं का निर्माण किया गया और इनका रखरखाव वर्ष 2010 से वर्तमान तक किया जा रहा है। 31 जनवरी 2022 की स्थिति तक संपूर्ण लागत राशि 2351 करोड़ है। वर्ष 2010 से 31 जनवरी 2022 तक टोल टैक्स से प्राप्त राशि 1663 करोड़ है, जो कि वर्तमान लागत का 70.47 प्रतिशत है। उक्त परियोजना में वर्तमान में शासन को 201 करोड़ प्रीमियम के तौर पर मिले। इसके माध्यम से प्रदेश की अन्य सड़कों का निर्माण एवं रखरखाव किया गया है।

– इसी प्रकार लेबड़-जावरा फोरलेन मार्ग परियोजना की वर्ष 2008 में प्रशासकीय स्वीकृति 605.45 करोड़ रुपए थी। इस परियोना में सरकार से भूमि उपलब्ध कराने के अतिरिक्त कोई भी पूंजीगत व्यय नहीं किया गया। निवेशकर्ता की ओर से 901.30 करोड़ का निवेश वर्ष 2008 से 2011 तक किया गया। परियोजना मार्ग का निर्माण एवं अन्य सुविधाओं का निर्माण और इसका रखरखाव वर्ष 2010 से वर्तमान तक किया जा रहा है। 31 जनवरी 2022 की तक संपूर्ण लागत राशि 2218.09 करोड़ हैं। वर्ष 2010 से 31 जनवरी 2022 तक टोल टैक्स से प्राप्त राशि 1484.11 करोड़ है। यह वर्तमान लागत का 66.19 प्रतिशत है। उक्त परियोजना में वर्तमान में सरकार को 176.51 करोड़ प्रीमीयम के तौर प्राप्त हुए। इससे प्रदेश की अन्य सड़कों का निर्माण एवं रखरखाव हो रहा है।

– भोपाल-देवास मार्ग परियोजना की वर्ष 2008 में प्रशासकीय स्वीकृति 478.26 करोड़ थी। इसमें सभी निविदाकार की ओर से परियोजना को क्रियान्वित करने के लिए ग्रांट की मांग की गई थी। न्यूनतम ग्रांट की मांग करने वाले निविदाकार का चयन हुआ था। सरकार की ओर से भूमि उपलब्ध कराने के अतिरिक्त ग्रांट राशि दी गई थी। उक्त परियोजना में  600.56 करोड़ रुपए का निवेश वर्ष 2008 से 2010 तक किया गया। इस निवेश के द्वारा परियोजना मार्ग का निर्माण एवं अन्य सुविधाओं का निर्माण किया गया। इसका रखरखाव वर्ष 2010 से वर्तमान तक हो रहा है। नवंबर 2021 की स्थिति की संपूर्ण लागत राशि 1422.2 करोड़ है। वर्ष 2010 से नवंबर 2021 तक टोल टैक्स से प्राप्त राशि 1104.63 करोड़ है। यह वर्तमान लागत का 77.66 प्रतिशत है। ऐसे ही इंदौर-उज्जैन मार्ग के अनुबंध का निवेशकर्ता की ओर से उल्लंघन करने के कारण 28 फरवरी 2022 को अनुबंध निरस्त किया गया।

– उपरोक्त तीनों परियोजनाओं की समयावधि 25 वर्ष है, जो वर्ष 2033 में समाप्त होगी। इस तरह निजी निवेश का विश्लेषण 25 वर्षों की परियोजना अवधि में आय व्यय के संदर्भ में किया जाना प्रासंगिक होगा। किसी भी परियोजना का विश्लेषण मात्र निर्माण अवधि में लगने वाली लागत एवं वर्तमान राजस्व के संदर्भ में किया जाना उचित नहीं होगा। अत: वर्तमान लागत के संदर्भ में उपर लिखे किसी भी परियेाजना में निवेश की गई राशि की तुलना में राजस्व  की प्राप्ती पूरी नहीं हुई है।

 

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