September 11, 2025

Analysis: भारत अब तक सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य क्यों नहीं बन सका, वजह सिर्फ चीन नहीं

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Last Updated: Sep 28, 2024,

India at UNSC: कूटनीति में ये जरूरी नहीं कि जो दिख रहा

हो, ठीक वैसा ही हो रहा हो. उदाहरण के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में भारत को अब तक स्थायी सीट न मिलने की असल वजह का विश्लेषण करें तो इसके कई कारण सामने आते हैं. सब महत्वपूर्ण है, किसी भी वजह को इग्नोर नहीं किया जा सकता. सोशल मीडिया पर अक्सर ये फैला दिया जाता है कि तत्कालीन पीएम नेहरू की एक गलती से सुरक्षा परिषद की सीट और वीटो पावर भारत के हाथों से निकल गई.

भारत को सीट मिलने की बात कहां से शुरू हुई? दरअसल फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने संयुक्त राष्ट्र की आम सभा की 79वीं बैठक (UNGA Meeting) में भारत को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट देने की बात दोहराई. जबकि इससे पहले सुरक्षा परिषद (UNSC) में रूस भारत की आजादी के बाद से ही भारत के स्थायी प्रतिनिधित्व का पक्षधर रहा है.

पहले कई देश भारत को पनपने नहीं देना चाहते हैं. लेकिन 21वीं सदी आते-आते भारत की जैसे-जैसे विदेश नीति में धमक बढ़ी तो ब्रिटेन और अमेरिका भी भारत के संयुक्त राष्ट्र (UN) में स्थायी प्रतिनिधित्व के पक्षधर हो गए. इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी सुरक्षा परिषद में नए देशों को एंट्री न मिलने और कई युद्ध में UN की सीमित भूमिका के बाद दिए अपने एक बयान में इस सुरक्षा परिषद को ‘आउटडेटेड’ तक कह दिया था.

वजह चीन ही नहीं

ऐसे में सवाल उठता है कि जब लगभग सभी देश भारत को स्थायी सदस्यता देने के पक्षधर हैं तो फिर पेंच फंसता कहां है? इस सवाल का जवाब देते हुए राजनीतिक विश्लेषक अरविंद जयतिलक मानते हैं कि भारत के इस सवाल का जवाब चीन और अमेरिका हैं.

दरअसल ‘चीन भले ही दक्षिण चीन सागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने दबदबे के लिए भारत को खतरा मानता हो, लेकिन भारत की इस समस्या के लिए बहुत हद तक अमेरिका भी जिम्मेदार है. वर्तमान में चीन भारत को वीटो मिलने से रोकने के लिए सुरक्षा परिषद में वीटो कर देता है. या जब उसके पास कोई जवाब नहीं बचता तो वह पाकिस्तान को भी वीटो देने का अपना राग अलापने लगता है. इस मामले को चीन के एंगल से अलग भी समझना जरूरी है.’

‘अमेरिका का बनाया हुआ भारत विरोधी माहौल आज भी कायम है’

वह आगे कहते हैं कि चीन तो भारत का धुर विरोधी है ही, लेकिन अमेरिका अभी जो यह भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट देने के लिए राजी हुआ है, यह स्थिति हमेशा नहीं थी. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का सोशलिस्ट लोकतंत्र होने की वजह से हम तत्कालीन सोवियत संघ के ज्यादा नजदीक थे. जिस वजह से अमेरिका हमारे खिलाफ था. जैसा हम 1971 के भारत-पाक युद्ध में भी देख चुके हैं.

यही वजह है कि अमेरिका हर जगह भारत का न सिर्फ विरोध करता था बल्कि भारत के खिलाफ अपने सारे सहयोगी देशों को भी इस्तेमाल करता था. यही वजह है कि अमेरिका का बनाया हुआ भारत विरोधी माहौल आज भी कायम है. इसी सिलसिले में ब्रिटेन भी भारत की स्थायी सीट का विरोध करता था. हालांकि, अब देखना ये होगा कि जब अमेरिका हमारे पक्ष में आ गया है तो चीन और उसके पाकिस्तान जैसे सहयोगी भारत के बढ़ती ताकत और रुतबे को आखिरकार कब तक रोक पाएंगे?

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