September 11, 2025

खत्म हो सकता है रूस-यूक्रेन युद्ध! पुतिन ने शांति के लिए रखीं ये शर्तें

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Updated at : 16 Jun 2024

रूस और यूक्रेन के बीच फरवरी 2022 में युद्ध शुरू हुआ था. बीते ढाई बरस से ये जंग जारी है. रूस अपने से कम शक्तिशाली यूक्रेन को लगातार दबाने में जुटा हुआ है. वहीं  यूक्रेन भी पश्चिमी देशों के जरिए मिलने वाली मदद से जंग के मैदान में पूरे दमखम के साथ डटा है. हालांकि, युद्ध के चलते चारों ओर फैली निराशा के बीच अब उम्मीद की एक किरण नजर आने लगी है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि वह युद्ध खत्म करने के लिए तैयार हैं. मगर इसके लिए यूक्रेन को कुछ शर्तें माननी होगी. वह चाहते हैं कि रूस और यूक्रेन बातचीत की टेबल पर आएं, जहां विवादित मुद्दों को सुलझाया जाए और यूरोप एक बार फिर से शांति की राह पर लौट सकें.

हालांकि, पुतिन की तरफ शांति वार्ता के लिए जो शर्तें रखी गई हैं, उन्हें मान लेना यूक्रेन के लिए बेहद ही मुश्किल होने वाला है. ऐसे में आइए जानते हैं कि पुतिन की शर्तें क्या हैं और क्या यूक्रेन इन्हें मानेगा.

रूस और यूक्रेन के बीच फरवरी 2022 में युद्ध शुरू हुआ था. बीते ढाई बरस से ये जंग जारी है. रूस अपने से कम शक्तिशाली यूक्रेन को लगातार दबाने में जुटा हुआ है. वहीं  यूक्रेन भी पश्चिमी देशों के जरिए मिलने वाली मदद से जंग के मैदान में पूरे दमखम के साथ डटा है. हालांकि, युद्ध के चलते चारों ओर फैली निराशा के बीच अब उम्मीद की एक किरण नजर आने लगी है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा है कि वह युद्ध खत्म करने के लिए तैयार हैं. मगर इसके लिए यूक्रेन को कुछ शर्तें माननी होगी. वह चाहते हैं कि रूस और यूक्रेन बातचीत की टेबल पर आएं, जहां विवादित मुद्दों को सुलझाया जाए और यूरोप एक बार फिर से शांति की राह पर लौट सकें.

हालांकि, पुतिन की तरफ शांति वार्ता के लिए जो शर्तें रखी गई हैं, उन्हें मान लेना यूक्रेन के लिए बेहद ही मुश्किल होने वाला है. ऐसे में आइए जानते हैं कि पुतिन की शर्तें क्या हैं और क्या यूक्रेन इन्हें मानेगा.

 

व्लादिमीर पुतिन ने क्या शर्तें रखी हैं? 

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को सत्ता में आए 25 बरस बीत चुके हैं. ऐसे में वह राजनीति के पक्के धुरंधर बन चुके हैं, जिनके आगे अच्छे-अच्छे नेता फेल हो जाते हैं. यही वजह है कि जब उन्होंने शांति वार्ता की बात की तो ये साफ हो गया कि वह कुछ शर्तें जरूर रखेंगे. फिर ठीक ऐसा ही हुआ, क्योंकि उन्होंने यूक्रेन के साथ शांति के रास्ते पर चलने के लिए यूक्रेनी राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की को अपनी पांच सबसे कठिन शर्तों की लिस्ट बता दी.

राजधानी मॉस्को में शुक्रवार (14 जून) को रूसी विदेश मंत्रालय के कर्मचारियों से बात करते हुए पुतिन ने अपनी पहली शर्त बताई. उन्होंने कहा कि यूक्रेन को नाटो में शामिल होने का अपना मकसद छोड़ना होगा. दूसरी शर्त है कि कीव को रूस के दावे वाले चार क्षेत्रों- डोनेत्सक, लुहान्सक, खेरसॉन और जापोरिजिया- से अपने सैनिकों को वापस बुलाना होगा. पुतिन ने यहां पर इस बात पर भी जोर दिया कि उनका मकसद युद्ध को पूरी तरह से खत्म करना है, न कि सिर्फ कुछ वक्त के लिए रोक देना.

पुतिन ने अपनी तीसरी शर्त बताते हुए कहा कि यूक्रेन को डोनेत्सक, लुहान्सक, खेरसॉन और जापोरिजिया को रूस का हिस्सा मानना होगा और उन पर मॉस्को की संप्रभुता को स्वीकार करना होगा. उन्होंने कहा कि इन चारों ही क्षेत्रों को वैश्विक स्तर पर भी मान्यता देनी होगी. रूसी राष्ट्रपति ने चौथी शर्त बताते हुए कहा कि यूक्रेन में रूसी भाषी नागरिकों के अधिकारों, स्वतंत्रता और हितों की पूरी तरह से रक्षा होनी चाहिए. पुतिन की पांचवी शर्त है कि रूस पर लगाए गए सभी प्रतिबंधों को खत्म कर दिया जाए.

पुतिन ने क्या कहा? 

व्लादिमीर पुतिन ने कहा, “आज हमने एक और ठोस वास्तविक शांति प्रस्ताव आगे रखा है. अगर कीव और पश्चिमी देश इसे अस्वीकार करते हैं, जैसा कि उन्होंने अतीत में किया है तो ‘रक्तपात जारी रखने’ के लिए राजनीतिक और नैतिक जिम्मेदारी उनकी ही होगी. जैसे ही यूक्रेन डोनबास और नोवोरोसिया से सेना वापस बुलाना शुरू करेगा और नाटो में शामिल नहीं होने की गारंटी देगा, रूस युद्ध रोक देगा और बातचीत के लिए तैयार हो जाएगा. मुझे नहीं लगता कि इसमें ज्यादा समय लगेगा.”

 

पुतिन की शर्तों पर क्या बोला यूक्रेन?

यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने कहा कि पुतिन की चेतावनियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. ये उनके पहले दिए गए ऑफर से बिल्कुल भी अलग नहीं है. इटली में जी7 शिखर सम्मेलन में बात करते हुए जेलेंस्की पुतिन की रणनीतियों की तुलना एडोल्फ हिटलर के जरिए 1930 और 40 के दशक में यूरोप के एक बड़े हिस्से पर कब्जे से की.

उन्होंने कहा, “वह हमारे देश के क्षेत्रों के बारे में बात करते हैं और कहते हैं कि वह नहीं रुकेंगे. ये बिल्कुल वैसा ही है, जैसा हिटलर ने किया था. जब उसने कहा था ‘मुझे चेकोस्लोवाकिया का एक हिस्सा दे दो और यहीं इसका अंत होगा’, आप इस पर भरोसा नहीं कर सकते. हमें उनके संदेशों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह बिल्कुल उसी (हिटलर के) रास्ते पर चलते हैं.”

यूक्रेनी राष्ट्रपति के सलाहकार मायखाइलो पोडोल्याक ने पुतिन की शर्तों को ‘आक्रामक’ बताया. उन्होंने यूक्रेन के सहयोगियों से गुजारिश की कि वे भ्रम में ना रहें और रूस के प्रस्तावों को गंभीरता से लेना बंद कर दें. पोडोल्याक ने कहा, “इसमें कोई नवीनता नहीं है, कोई वास्तविक शांति प्रस्ताव नहीं है और युद्ध समाप्त करने की कोई इच्छा नहीं है. लेकिन इस युद्ध की कीमत न चुकाने और इसे नए स्वरूपों में जारी रखने की इच्छा है. यह सब पूरी तरह से दिखावा है.”

यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने पुतिन की बातों को अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गुमराह करने वाला और शांति हासिल करने के राजनयिक प्रयासों को कमजोर करने के लिए दिया गया चालाकी भरा बयान बताया. मंत्रालय ने कहा, “पुतिन ने अपने साथियों के साथ मिलकर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप में सबसे बड़े सशस्त्र आक्रमण की योजना बनाई, तैयारी की और उसे लागू किया. अब उनके जरिए खुद को शांतिदूत के तौर पर दिखाना बेतुका है.”

क्यों मुश्किल है रूस-यूक्रेन युद्ध का खत्म होना? 

व्लादिमीर पुतिन की तरफ से लगातार ऐसी शर्तें रखी जा रही हैं, जिन्हें यूक्रेन के लिए स्वीकार करना बेहद ही मुश्किल है. सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि पश्चिमी मुल्क बिल्कुल भी नहीं चाहेंगे कि यूक्रेन रूस की शर्तों के आगे झुक जाए. यही वजह है कि पश्चिमी मुल्कों की तरफ से लगातार यूक्रेन को आर्थिक और सैन्य मदद दी जा रही है. इटली में हुई जी7 की बैठक में यूक्रेन को 50 बिलियन डॉलर का लोन देने का ऐलान किया गया है. जी7 देशों ने कहा है कि इस लोन के लिए ब्याज की भरपाई रूस की फ्रीज की गई संपत्तियों के जरिए होने वाली कमाई से किया जाएगा.

रूस ने भी झुकने से इनकार कर दिया है. इतिहास भी इसका गवाह रहा है कि रूस जल्दी झुकने के लिए तैयार नहीं होता है. यूक्रेन के क्रीमिया पर रूस ने 2014 में कब्जा किया था. उस वक्त भी उसके ऊपर पश्चिमी मुल्कों के जरिए कई सारे प्रतिबंध लगाए गए थे. बावजूद इसके वह अपने मंसूबों में कामयाब हुआ था. यही वजह है कि अभी भी रूस जंग के मैदान में डटा हुआ है. उसके आने वाले दिनों में भी पीछे हटने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है. अगर ऐसा होता है तो ये युद्ध कई वर्षों तक खींच सकता है.

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