सबसे पहले मजार के सामने क्यों रुकती है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा?
Updated : Jun 26, 2025
ओडिशा के जगन्नाथ पुरी मंदिर में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के दिन यानी कल 27 जून को रथ यात्रा निकाली जाएगी। हर साल इस रथ यात्रा को देखने के लिए लाखों की संख्या में देश-विदेश से जगन्नाथ पुरी में भक्त पहुंचते हैं। भक्त अपने भगवान का रथ खींचने के लिए लालायित रहते हैं। इस दौरान एक अनोखा दृश्य तो तब नजर आता है जब भगवान का रथ मंदिर से चलकर करीब 200 मीटर की दूरी पर रुक जाता है और कुछ देर ठहरने के बाद यह रथ फिर से आगे बढ़ता है। यह जगह है- भगवान जगन्नाथ के भक्त सालबेग की मजार।
आइए जानते हैं आखिर कौन थे सालबेग जिनकी मजार पर आज की रथयात्रा रुकती है-
क्या है सालबेग की कहानी?
सालबेग एक मुस्लिम परिवार में जन्मे थे। उनके पिता तालबेग मुगल साम्राज्य के एक बड़े अधिकारी यानी सूबेदार थे। सालबेग की पढ़ाई-लिखाई वृंदावन में हुई, लेकिन एक बार वह किसी काम से पुरी आए जहां उन्होंने भगवान जगन्नाथ की महिमा सुनी, तो उनके मन में भी यह इच्छा जागी कि वे भगवान के दर्शन करें। जब सालबेग मंदिर पहुंचे, तो उन्हें दरवाजे पर ही रोक दिया गया, क्योंकि मंदिर में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। इस बात से सालबेग को दुख तो हुआ, लेकिन साथ ही भगवान जगन्नाथ के लिए उनकी जिज्ञासा और भक्ति भी गहरी होती चली गई। उन्होंने मंदिर में प्रवेश न मिल पाने के बावजूद भगवान के प्रति अपनी भक्ति बनाए रखी। वह भजन, कीर्तन और प्रभु का नाम जपने लगे।
भक्ति ऐसी कि भगवान स्वयं आए दर्शन देने
एक रात सालबेग को सपना आया, जिसमें भगवान जगन्नाथ स्वयं प्रकट हुए और कहा, “मैं तुम्हारी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं। भले ही तुम मुझे मंदिर में नहीं देख सके, लेकिन मैं तुम्हें दर्शन दूंगा।” सालबेग ने भगवान से पूछा, “कब?” तब प्रभु ने कहा, “जब रथ यात्रा निकलेगी, तब मेरा रथ तुम्हारे सामने रुकेगा और सब जान जाएंगे कि तुम मेरे सच्चे भक्त हो।”
समय बीता और एक दिन रथ यात्रा आई। जैसे ही भगवान जगन्नाथ का रथ उस जगह पहुंचा, जहां सालबेग ठहरे थे, रथ वहीं अटक गया। हजारों लोगों ने मिलकर भी रथ को आगे नहीं बढ़ा सके। तभी भगवान जगन्नाथ की फूलों की माला लेकर सालबेग तक पहुंचाई गई। तभी जाकर रथ आगे बढ़ा। लोगों को समझ में आ गया कि यह कोई संयोग नहीं था, बल्कि भगवान ने अपने भक्त को खुद दर्शन दिए। पंडों को भी इस बात का पछतावा हुआ कि उन्होंने एक सच्चे भक्त को मंदिर में प्रवेश से रोका था।
भगवान नहीं करते भेदभाव!
सालबेग ने बाद में भगवान की सेवा भी की और 1646 में उनका देहांत हुआ। पुरी के राजा ने उस स्थान पर एक मंदिर बनवाया जिसे कई लोग सालबेग की मजार भी कहते हैं। आज भी रथ यात्रा के समय भगवान जगन्नाथ का रथ मंदिर के सामने कुछ देर जरूर रुकता है। यह कहानी बताती है कि भगवान की भक्ति के लिए न तो धर्म जरूरी है, न जात-पात। जरूरत है तो सच्चे मन और विश्वास की।
