September 11, 2025

सिर्फ जन्माष्टमी पर होती है इस मंदिर में पूजा, प्रशासन की रोक पर बवाल

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रीवा. उमरिया जिले के बांधवगढ़ नेशनल पार्क स्थित भगवान बांधवाधीश मंदिर में प्रवेश पर रोक के चलते श्रद्धालुओं का गुस्सा उफान पर है. दरअसल, हजारों साल पुराने बांधवगढ़ किले में स्थित भगवान बांधवाधीश का मंदिर है. यह मंदिर साल में सिर्फ एक बार जन्माष्टमी को खोला जाता था. यहां मेला भी आयोजित किया जाता रहा है. इस बार प्रशासन ने बांधवगढ़ किले तक जाने पर रोक लगा दी. इससे उमरिया, रीवा और अन्य जिलों से आए श्रद्धालु दर्शन करने नहीं जा सके. जिला प्रशासन ने बांधवगढ़ किले में रोक की वजह हाथियों के दल का मूवमेंट बताया है.

विधायक दिव्यराज सिंह ने कहा कि हर साल जन्माष्टमी पर भगवान बांधवाधीश के मंदिर में वर्षों से पूजा होती आई है. लेकिन कुछ सालों से किसी न किसी बहाने से यहां श्रद्धालुओं को पहुंचने से रोका जा रहा है. इस बार भी प्रशासन ने जानबूझकर श्रद्धालुओं को भगवान के दर्शन करने से रोका है. उन्होंने कहा कि हमने इस संबंध में प्रशासन से कहा कि हम लोगों को हाथियों के मूवमेंट वाली जगह दिखा दी जाए. प्रशासन इस बात पर भी तैयार नहीं हुआ, इसीलिए मैं दो दिन से धरना दे रहा था.

हम कारागार भरने को तैयार
विधायक दिव्यराज सिंह को हिरासत में लिए जाने के बाद उन्होंने ट्वीट किया कि भगवान कृष्ण का जन्म कारागार में हुआ था. हम भी अपने भगवान के लिए कारागार भर देंगे. उधर, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक बीएस अन्नीगेरी ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि बांधवाधीश मंदिर क्षेत्र के पास हाथियों का मूवमेंट है. इस वजह से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व क्षेत्र में कोई भी श्रद्धालु प्रवेश नहीं करे और सहयोग दें. उस क्षेत्र में लगभग 10 हाथी देखे गए. श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ही स्थानीय जनप्रतिनिधियों से विचार-विमर्श कर मेला और प्रवेश को स्थगित किया गया है.

बांधवगढ़ में जन्माष्टमी की सदियों पुरानी परंपरा
बता दें, बांधवगढ़ किले में जन्माष्टमी मनाने की परंपरा पुरानी है. बांधवगढ़ किला रीवा रियासत का हिस्सा हुआ करता था. इतिहासकारों के अनुसार लगभग दो हजार साल पहले रीवा के राजा विक्रमादित्य ने इस किले का निर्माण कराया था. इस किले तक जाने का रास्ता बांधवगढ़ नेशनल पार्क से होकर गुजरता है. किवदंती है कि भगवान राम ने लंका विजय से लौटने के दौरान भाई लक्ष्मण को यह किला उपहार में दिया था. पुराणों में भी इसका जिक्र मिलता है.

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