September 11, 2025

रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित विश्व रंग 2022 में कौशिकी की महफि़ल में उमड़ा श्रोताओं का रेला

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भोपाल। गीत-संगीत की सुमधुर स्वर लहरियों से गूँजती भोपाल की वादियों में ‘विश्वरंग’ का जलसा तहज़ीब के बेमिसाल सिलसिलों का मंज़र समेट लाया। रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में सोमवार की सुबह जबलपुर के सुर पराग वृन्द ने रवीन्द्र संगीत से गुलज़ार की तो ढलती शाम कौशिकी चक्रवर्ती के कंठ की कशिश ने सुर-ताल और लयकारी में बंधी गायिकी का करिश्माई रंग घोला। साहित्य और कलाओं के अंतरराष्ट्रीय महोत्सव ‘विश्वरंग-2022’ का यह सुरीला आगाज़ था। संस्कृति की सुन्दर छवियों में रचे-बसे आठ दिनों के विराट समागम का आरंभ इस तरह ‘कला उत्सव’ से हुआ।

सोमवार की सुबह हरी-भरी पहाडि़यों से घिरे टैगोर विश्वविद्यालय के मुक्ताकाश में टैगोर की प्रतिमा पर सामूहिक फूलों का अभिषेक करते हुए समारोह का औपचारिक शुभारंभ हुआ। विश्वरंग के निदेशक-कुलाधिपति संतोष चौबे ने इस मौके पर महोत्सव के शुभारंभ की घोषणा करते हुए कहा कि विश्वरंग अपने चौथे संस्करण में हजारों रंगों को समेटते हुए मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी भोपाल में अपने नए कलेवर के साथ आपके समक्ष आज प्रस्तुत हो रहा है। आज विश्वरंग 2022 गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर के आशीर्वाद से विश्वविद्यालय के प्रांगण में अपने रंग बिखेर रहा है।

इसी के साथ कोलकाता के संगीतकार शुभव्रत सेन और मानस सरकार ने मिलकर दो तारा पर गुरूदेव के प्रार्थना गीतों की धुन बजाकर पूरे परिसर को सात्विक गरिमा प्रदान की। शुभारंभ का यह मुहूर्त तब और महक उठा जब जबलपुर के सुर पराग कला समूह ने प्रेम, प्रकृति, प्रार्थना और देशभक्ति से सराबोर टैगोर की कविताओं का वृन्दगान किया।

प्रख्यात गायिका तापसी नागराज के मुख्य स्वर तथा संयोजन में तैयार हुआ यह अद्भुत सांगीतिक रूपक टैगोर की एक दर्जन कविताओं के ज़रिये मनुष्यता का महागान बन गया। संगीतकार बाँसुरी वादक मुरलीधर नागराज की परिकल्पना और श्रीधर नागराज के अनूठे प्रयोगों को बीस कलाकारों ने मिलकर एक रोमांचकारी एहसास में बदल दिया। इस गुलदस्ते में टैगोर के कालजयी गीत ‘एकला चलो रे, और ‘आमार शोनार बांग्ला’ से लेकर राष्ट्रगान ‘जग गण मन’ तक वो तमाम रंग और खुश्बुएँ थीं जो गुरूदेव के रवीन्द्र संगीत में तैरती बरसों से सारी दुनिया की रूह में धड़कती रही हैं। लगभग डेढ़ घंटे की इस प्रस्तुति के सूत्रधार कला समीक्षक विनय उपाध्याय थे।

शाम के सांस्कृतिक कार्यक्रम के शुभारंभ के पूर्व विश्वरंग के निदेशक श्री संतोष चौबे ने कहा कि विश्वरंग अब देश का सबसे बड़ा फेस्टिवल बन गया है। वर्ष 2019 में जब शुरुआत इसकी शुरुआत हुई थी तब इसमें 12 देश शामिल थे आज विश्वरंग में 50 देश शामिल हो चुके हैं। साथ ही कार्यक्रम में महापौर मालती राय बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहीं। उन्होंने शहर की ओर से कौशिकी चक्रवर्ती का स्वागत भी किया।

कौशिकी की कशिश भरी गायकी पर निहाल हुए श्रोता

शाम को रवीन्द्र भवन में ‘विश्वरंग’ का ताना-बाना कौशिकी चक्रवर्ती के शास्त्रीय गायन के आसपास कुछ ऐसा तैयार हुआ कि वक़्त के बहुत पहले ही सभागार श्रोताओं से भर गया। यकीनन वे मंच की महारानी है। तालीम और रियाज़ उनकी प्रतिभा की वो पूँजी है जिसने पटियाला घराने की विरासत को नए सिरे से निखार दिया है। ‘विश्वरंग’ के मंच पर भी उनकी आवाज़ ने आज ऐसा ही उजास बिखेरा। मुराद अली की सारंगी, तन्मय देवचके के हारमोनियम और यशवंत वैष्णव के तबले ने कौशिकी के गले से बहते सुरों के दरिया को इस खूबी से लय-ताल में थामा कि मौसिक़ी के कद्रदान इस कारवाँ में बहते रहे। कौशिकी ने गाने के लिए बंदिश होवन लागी सांझ, लाखों में एक चुन चुन बुलावे … को चुना…। जाड़े की गुलाबी दस्तक से पुरखुश श्रोताओं के मिजाज़ पर इस राग की बंदिश ने कुछ ऐसा असर किया कि श्रोता पूरे समय बंधे रहे। कभी राग के सुरों में मन रमा तो कभी कौशिकी के कंठ से झरती मधुरिमा में बिंधा सा रह गया। इस दौरान संगत में सारंगी पर मुराद अली, तबले पर यशवंत सचदेव, हारमोनियम पर तन्मय देवजगे, तानपुरे पर तनिष्का और संतोष शामिल रहे।

कार्यक्रम में कौशिकी चक्रवर्ती ने श्रोताओं से बात करते हुए कहा कि विश्वरंग में जिस तरह स्वागत हुआ उससे अभिभूत होकर उन्होंने कहा कि जब भी विश्वरंग या रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय में बुलाया जाएगा तो आपके भोपाल शहर में जरूर आऊंगी ।

कल दिनांक 15-11-2022 के कार्यक्रम

कल प्रातः नित्यानंद हल्दीपुरकर और उनकी टीम ‘अन्नपूर्णा देवी के संस्मरण’, दोपहर में उमाकांत गुंदेचा की अध्यक्षता में संवाद ‘संगीत का धर्म’, शाम में पूर्व रंग: गीता पराग की कबीर पर संगीतमय प्रस्तुति और अंत में रबीन्द्र भवन के मुक्ताकाश मंच पर श्री राम भारतीय कला केंद्र द्वारा रामायण की प्रस्तुति होगी।

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