फिर मिलेंगे के वादे के साथ विश्वरंग 2023 का हुआ भव्य समापन

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25 Dec 2023,

भोपाल:  चार दिनों तक चले साहित्य, कला और संस्कृति के संगम का रविवार को रंगारंग व आतिशी समापन हुआ। इस अवसर पर शाम के सांस्कृतिक सत्र के साथ समापन सत्र का आयोजन किया गया जिसमें विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे, सह निदेशक डॉ. अदिति चतुर्वेदी वत्स, डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी, मुकेश वर्मा, रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. विजय सिंह मौजूद रहे। इस अवसर पर विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी के सहयोग को रेखांकित किया और उन्होंने कहा कि साहित्य और भारतीय भाषाओं के वैश्विक प्रचार-प्रसार की दिशा में एक पड़ाव पूरा कर लिया और बृहद योजना के साथ आगे बढ़ चले हैं। संस्कृति और साहित्य का यह समागम हिंदी समेत भारतीय भाषाओं के लिए कार्य करने वाला एक अनूठा समारोह बन गया है जिसकी चर्चा न सिर्फ भारत में बल्कि 50 से अधिक देशों में हो रही है। साथ ही उन्होंने कहा कि आज भले चार दिवसीय विश्वरंग अपने समापन की ओर अग्रसर है परंतु हम “फिर मिलेंगे” और विश्वरंग का यह कारवां बढ़ता रहेगा भाषा और साहित्य के प्रकाश से दुनिया को रोशन करता रहेगा।

साधौ बैंड के कलाकारों ने बांधा समां और लूटी श्रोताओं की तारीफ
रविवार को विश्वरंग समारोह में साधौ बैंड के कलाकार शिवांग और मयंक ने खूब समां बांधा। इसमें शिवांग ने दमा दम मस्त कलंदर… से शुरुआत की। उसके बाद मयंक और शिवांग ने मंच से अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए एक से बढ़कर एक लोकप्रिय गीतों को पेश करना शुरू किया जिन पर बड़ी संख्या में युवा जमकर झूमे। दूसरी प्रस्तुति युवाओं के पसंदीदा गीत “तेरी दिवानी…” की हुई। इसके बाद एक भजन गीत “राम आएंगे…” को पेश किया। युवा जोश के बीच गीतों का सिलसिला यहीं नहीं रुका और कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए “काली काली जुल्फों…”, “”आफरीन आफरीन…” और “सानू इक पल चैन न आवे…” को पेश किया। इसी बीच माहौल में विदेशी भाषा का रंग घोलते हुए मयंक ने स्पेनिश सॉन्ग “सेनोरिटा…” और “बेलाचाउ…” से सभी को मंत्रमुग्ध किया। इस दौरान ड्रम पर जतिन, ढोलक पर विशाल, तबला पर दीपांशु, लीड जीटीआर जतिन, बेस जीटीआर मुकुल, कीबोर्ड पर प्रिंस, फ्लूट पर विशाल और वायलिन पर फिज रहे।

पूर्व रंग में नाट्य संगीत एवं रंग संगीत
पूनम तिवारी एवम् साथियों द्वारा हबीब तनवीर के रंग संगीत की प्रस्तुति दी। समूह ने सदगुरु ज्ञान दिखाई दे…, ऐसी सुंदर कलारिन…, बेला सांझ… की आदि गीतों को रंगारंग प्रस्तुति दी। पूनम जी के लोक संगीत पर दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे। उनकी संस्था रंग छत्तीसा लोक नाट्य यह एक ऐसी संस्था है जो छत्तीसगढ़ एवम हबीब साहब के नाटको के गीतों का संकलन है। जिसमे छत्तीसगढ के छत्तीस रंगो को मिला कर बना है जैसे सुवा, करमा, ददरिया, रिलोपंथी, राउत नाचा, बिहाव गीतो से लेकर छत्तीसगढ फोक गीतो से बना है। इसमें कलाकारों के भारी मेहनत से तैयार किया गया यह दीपक विराट तिवारी द्वारा रचित एक परिवार है जो छत्तीसगढ ही नई अपितु भारत के सभी राज्यों में अपना परचम लहराया है। टैगोर नाट्य विद्यालय के छात्रों द्वारा रंग सगीत की प्रस्तुति हुई जिसमें उन्होंने होरी गीतों का गायन किया। मची श्याम संग होरी, गीत के साथ दर्शक झूम उठे।

मंगलाचारण में बाल सभा और बांसुरी वादन
इससे पहले सुबह विश्वरंग 2023 के तहत चतुर्थ दिवस रंगोत्सव के रूप में आयोजित किया गया। इसमें दिन की शुरुआत मंगलाचारण में आकाशवाणी के वरिष्ठ कलाकार वीरेंद्र कोरे के द्वारा बांसुरी वादन से हुई जिसमें उन्होंने प्रकृति का संगीत सुनाया जिनमें कहीं कोयल की धुन, कहीं बुंदेलखंडी, राजस्थानी, पंजाबी इत्यादि लोक धुनों को पेश किया गया। इसके तहत छत्तीसगढ़ी में “पता दे जा रे गाड़ीवाला…”, पंजाबी में “जो ताद लिख डारे…” को पेश किया। साथ ही शास्त्रीय राग दुर्गा की प्रस्तुति से सभी का मन मोहा। मंगलाचरण की अगली कड़ी में क्षमा चंद्रावत के संयोजन में बाल समूह द्वारा राम भजन एवं शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति दी गई। बाल समूह में सुश्री रेवा, क्यारा, मालविका, वंश, स्वरा, मल्हार, क्रेयांश, राजवीर एवं अन्य शामिल रहे।

अगला सत्र “भारतीय चित्रकला का सच” विषय पर विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया जिसमें बतौर मुख्य वक्ता अशोक भौमिक उपस्थित रहे। सान्निध्य वरिष्ठ साहित्यकार संतोष चौबे और लीलाधर मंडलोई का रहा। मंच संचालन टैगोर विश्वकला एवं संस्कृति केंद्र के निदेशक विनय उपाध्याय द्वारा किया गया। मुख्य वक्ता अशोक भौमिक ने अपने वक्तव्य में चित्रकला पर बात करते हुए कहा कि रचनात्मक सृजन के दो पहलू होते हैं, क्या बनाएं और कैसे बनाएं। चित्रकला में भी यही दो पहलू होते हैं। भारतीय चित्रकला में दुर्भाग्य से क्या बनाएं… इसकी आजादी चित्रकार को कम ही मिलती है। आगे उन्होंने अपने उद्बोधन में चित्रकला के प्राचीन से समकालीन युगों पर विस्तार से चर्चा की और कई उदाहरण साझा किए और बताया कि कथा की सत्यता स्थापित करने के लिए ही चित्रकारी की आवश्यकता पड़ी। विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे ने अपने वक्तव्य में कहा कि कोई भी कला जिज्ञासा और आश्चर्य से ही शुरू होती है जिसमें संदर्भ का अत्यधिक महत्व है। कला मनोरंजन के साथ प्रचार प्रसार में भी सहायक है। आगे उन्होंने कहा कि दया, करुणा और मानववाद जब हस्तक्षेप करते हैं तभी कलाकार बनते हैं अन्यथा यह सिर्फ मनोरंजन या प्रचार का साधन ही रह जाते हैं। इस दौरान सत्र में सुधीर पटवर्धन का मोनोग्राफ रिलीज किया गया। साथ ही “भारतीय चित्रकला में अमूर्तन” पुस्तक का विमोचन किया गया। इसके अलावा टैगोर चित्रकला पेंटिंग कॉम्पीटिशन में प्रतिभागिता करने वाले 100 छात्रों का सम्मान और 20 बेहतरीन पेंटिंग बनाने वाले छात्रों को पुरस्कृत किया गया।

इसके बाद दोपहर के समानांतर सत्रों का आयोजन हुआ जिसमें कलाओं के विभिन्न पहलुओं पर विमर्श आयोजित किया गया

गीत गोविंदम के चित्रों पर वक्ताओं ने रखे विचार
“साहित्य और कला-आपसदारी के अर्थ” विषय पर आयोजित सत्र में अध्यक्षता कर रहे नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने गीत गोविंदम के प्रजेंटेशन में गीत गोविंदम की गहराई को सरल करके सबके सामने रखा। इस दौरान उन्होंने चित्रकला की बारीकियां को सबसे साझा किया। उन्होंने बताया कि शब्द और स्वरूप में पहले भिन्नता नहीं थी, पुरखों ने शब्द और स्वरूप को एक ही माना था। जिसके रामायण, भागवत जैसे अनेक उदाहरण है, लेकिन अब समय बदलने के साथ हम शब्द और स्वरूप में भिन्नता देखने लगे हैं। उन्होंने गीत गोविंदम के समस्त चित्रों का विश्लेषण करते हुए उसके बारे में विस्तार से और रोचक जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गीत गोविंदम् राधा के बिरह से प्रारंभ होकर राधा की कृष्णमय में होने तक की यात्रा है। इस दौरान उन्होंने मंगल श्लोक से प्रारंभ होकर कण्हेली शैली में राधा के चित्रों के बारे में बताया। कृष्ण के दशावतार का वर्णन भी उन्होंने किया। उन्होंने मधुसूदन, मेवाड़ शैली के चित्र जो की विरह को बताया। कुंठ बैकुंठ, नागर नारायण, मंद मुकुंद, सहित गीत गोविंदम के सभी पहलुओं को विस्तार से और बारीकी से सबके सामने रखा। इस दौरान उन्होंने चित्रकला के महत्व को भी बताया। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय की हिंदी विभाग की विभाग अध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि कला और साहित्य का गहरा संबंध है, दोनों ही जीवन के मूर्त रूप से जुड़ती हैं। कार्यक्रम में उपस्थित स्वरांगी साने ने बताया कि कला के बिना सब अधूरा है, कृष्ण को 16 कलाओं से पूर्ण माना गया है, राम 12 कलाओं से पूर्ण थे और वैसे वर्तमान समय में 64 कलाएं मानी जाती हैं। इसलिए कोई भी साहित्य और कला एक दूसरे के बिना कभी पूर्ण नहीं हो सकते। कार्यक्रम में उपस्थित साहित्यकार लेखक पंकज सुबीर ने कहा कि साहित्य और कला की आवाजाही बंद हो रही है, वास्तव में लेखक अपनी पीड़ा को लिख रहा होता है। और वह एक अंधेरे कमरे से गुजर रहा होता है, लेकिन उसे पाठक को अपने साथ रखना होता है। इसलिए कला के रूप में खिड़की, रोशनदान और बाहरी रोशनी और हवा की जरूरत बेहद जरूरी है ताकि पाठक को उजाला और ताजी हवा मिल सके और वह घुटन ना महसूस करें। हर साहित्य में कला की आवश्यकता ज्यादा जरूरी है। कार्यक्रम का संचालन विनय उपाध्याय ने किया।

‘सात नदियां एक समंदर’ नामक उपन्यास पर चर्चा
‘लेखक से मिलिये’ कार्यक्रम के इस सत्र में खुर्शीद आलम जी की बातचीत साहित्य अकादमी अवार्ड प्राप्त नाशिरा शर्मा जी से हुई। खुर्शीद आलम जी ने नाशिरा जी की ‘सात नदियां एक समंदर’ नामक उपन्यास पर बात की। इस उपन्यास के बारे में बताते हुए नाशिरा जी ने कहा कि यह उपन्यास वतन परस्ती और उससे जुड़े सात किरदारों पर आधारित है। इसके किरदारों की ब्यौरेवार चर्चा इस सत्र में की गई। नाशिरा जी ने इस उपन्यास के मजमून को बयां करते हुए बताया कि जिस समय हिंदी साहित्य में समाज और इंसानियत की बात की जा रही थी और ऊर्दू में सियासत की, तब उन्होंने इंसानियत की सियासत के बारे में बात की। मध्य पूर्व के देशों में भी उनके लेखन को सराहा गया। इसी उपन्यास को उन्होंने ‘बहिश्ते ज़हरा’ नाम से भी प्रकाशित किया। नाशिरा जी ने ईरान के अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि वहां भी हिन्दी साहित्य और संस्कृत साहित्य के अनुवाद में अहम काम हो रहे हैं, इस भावना के साथ की हम एक हैं। खुर्शीद जी ने नाशिरा जी की कहानी ‘ततैया’ का भी जिक्र किया, इसके संदर्भ में नाशिरा जी ने दस्तकार वर्ग से अपने आत्मीय जुड़ाव के बारे में बताया, उन्होंने इस कहानी के माध्यम से दस्तकार तबके का मार्मिक लेकिन बोल्ड चित्रण किया है। इसी के साथ उन्होंने कहानी ‘जिंदा मुहावरे’ के बारे में बात करते हुए कहा –“जब ज़बान मरती है तो मुहावरे दूसरी ज़बान में जिंदा रहते हैं, ठीक वैसे हीं हिंदुस्तान से लोग पाकिस्तान पहुंचे और वहां शरणार्थी बनकर रहे।” समसामयिक सियासत के बारे में भी उन्होंने अपने विचार रखते हुए ईरान में अपनी पत्रकारिता के दौर को भी याद किया और कहा कि इंकलाब में आबाद कब्रिस्तान होते हैं, इसी का जिक्र अक्सर उन्होंने अपने लेखों में किया है।

प्रवासी भारतीय रचना पाठ
विश्वरंग के चौंतीसवें सत्र में प्रवासी भारतीय रचना पाठ दो भागों में संपन्न हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता मनोज श्रीवास्तव ने की। सत्र संतोष चौबे जी का सानिध्य प्राप्त हुआ। प्रथम भाग में शिखा रस्तोगी, प्रगति टिपणीस, वंदना मुकेश, रामा रक्षक, स्नेह ठाकुर एवम् रमा शर्मा ने कविता पाठ किया वहीं दूसरे भाग में मृदुल कीर्ति, अनूप भार्गव, जय वर्मा, अभिषेक त्रिपाठी, रिचा जैन एवम् विनोद दुबे ने कविता पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन जवाहर कर्णावट ने किया। मनोज श्रीवास्तव ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा की कविता अंतर घनत्व की स्वाभाविक परिभाषा है। रमा शर्मा ने नीलकंठिनी कविता का पाठ किया, वहीं स्नेह ठाकुर ने पुरुषार्थ की बात की। वंदना जी ने परिचय को केंद्र रखकर कविता कही कि तुम्हारा बोलना ही तुम्हारा परिचय है। सिंगपुर से आए विनोद दुबे ने ‘ एक मिट्टी ने पाला पोसा दूजी का नमक उधर रहेगा ‘ कविता का पाठ किया। मृदुल कीर्ति ने अद्वैत की बात करते हुए कहां कि ‘ आगया तट देह के तटबंध सारे खोल दो ‘ उन्होंने बृज भाषा में भी कुछ कविताएं पढ़ी। अनूप भार्गव विज्ञान कविता का गान करते हुए श्रृंगार की कविता में कहते हैं, मुझे उन पाक गुनाहों की याद आती है। जया वर्मा ने कैसे अनोखे होते है रिश्ते का वाचन किया। रिचा जैन ने ‘ क्यूंकि किसी ने ‘ कविता का पाठ किया। अभिषेक त्रिपाठी ने अंत में पढ़ा की चलते रहना ही जीवन का पर्याय है।

विविध कलाओं के रंग से रंगा विश्वरंग
विश्वरंग के अंतिम दिन विश्वरंग का परिसर बच्चों के कला संसार से रंगा रहा। टैगोर सभागार में विशेष आयोजन शहर के बच्चों के लिये आयोजित किया गया, जिसमें बच्चों की वॉटर कलर, ग्रॉफिक्स, पेपर मेशी की वर्कशॉप आयोजित की गई। इस सत्र की शुरुआत में विशेष रूप से पधारे देश के प्रसिद्ध चित्रकार अशोक भौमिक ने बच्चों को वर्कशॉप के माध्यम से अधिक से अधिक सीखने की सीख दी। साथ ही उन्होंने कहा कि बच्चे जो ज्ञान यहां से ले जायें उसका प्रयोग भविष्य में भी करते रहें ताकि सीखी गई कला उनके साथ बनी रहे। इसके बाद वर्कशॉप की शुरूआत हुई। शहर के विविध क्षेत्रों से आये हुए बच्चों ने अपनी—अपनी रूचि के अनुसार कलाओं का चयन किया और उनके मेंटर के साथ उस कला की बारीकी को सीखना शुरू कर दिया। पेपर मेशी में महावीर वर्मा, मुकेश बिजोले, वॉटर कलर में राखी कुमार, अक्षर अमेरिया और ग्राफिक्स में रविन्द्र शंकर रॉय, सोनाली बोस ने बच्चों को मार्गदर्शन प्रदान किया और उन्हें विविध कलाओं की बारीकियों से वाकिफ कराया। इस अवसर का बच्चों ने विशेष लाभ उठाया और अपने मेंटर से विविध कलाओं को पूरे उत्साह और उर्जा के साथ सीखा। इस आयोजन ने विश्वरंग को सतरंगी रंग दे दिया। इस दौरान कार्यक्रम की शुरुआत पर नाटक धरोहर का भी प्रदर्शन किया गया। जिसमें नाट्य कलाकारों द्वारा मानव के प्रकृति शोषण की कहानी को बयां किया गया। बच्चों को इस नाटक से प्रकृति को बचाने की महत्वपूर्ण सीख प्राप्त हुई। कार्यक्रम का कुशल संचालन और आभार प्रदर्शन अर्जुन सिंह द्वारा और संयोजन डॉ. संगीता जौहरी, डॉ. मौसमी परिहार, डॉ. सावित्री परिहार द्वारा किया गया। बच्चों ने इस मौके पर बड़ी संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।

पूर्व के लेखकों के तजुर्बों में छिपे हैं कई समाधान
लेखक से मिलिए सत्र में दर्शकों को सुप्रसिद्ध लेखक श्री अखिलेश जी के कुछ पहलुओं को प्रियम अंकित जी के माध्यम से जानने का मौका मिला। अखिलेश जी ने अपनी बातचीत के जरिए युवा लेखक को बताया कि जब हम रचना हेतु अग्रसर होते हैं तो बहुत सारी कठिनाइयां उत्पन्न होती है, जिसका समाधान हमें पूर्व के लेखकों के तजुर्बों से निकालना चाहिए| उन्होंने कहा कि लेखन पूर्व हमें बहुत से पुस्तकों को पढ़ने की जरूरत है तभी हम एक अच्छी रचना का निर्माण कर सकते है| किसी भी लेखन हेतु एक शिल्प की जरूरत हमेशा रहेगी|

एक कस्बे के नोट्स पर हुई चर्चा
लेखक से मिलिए सत्र के तहत लेखिका नीलेश रघुवंशी से शंपा शाह का बातचीत सत्र का आयोजन हुआ। इसमें उनके उपन्यास “एक कस्बे के नोट्स” पर बातचीत की गई। बात करते हुए नीलेश रघुवंशी ने बताया कि उपन्यास में उनके पिता, ढाबा और कस्बे की कहानी को साझा किया गया है। इसमें किसान की परेशानियों को करीब से समझने का मौका मिलता है।

लोक वाचिक परंपरा का सांस्कृतिक पक्ष
“लोक वाचिक परंपरा का सांस्कृतिक पक्ष” सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार एवं वक्ता साधना बलवटे ने कला और साहित्य के ऊपर बात की हमारी सांस्कृतिक पक्ष भारत में समानता वादी सामाजिक साहित्य है जो सब जो समाज को समृद्धि बनती है। और वेदों में जो मंत्र है लोक में वह नीति है लोग बहुत सहज है उन्होंने गीत के जरिए बताया (चलो गजगत चलो राजदा शुरू होता) हर गति और अनुसंधान के साथ लोकगीत और लोक निर्माण की बात कही और समन्वय की बात कही। अरुणाचल प्रदेश से आने वाली जमुना बीनी ने आदिवासी समुदाय मॉन्पा की विशेषता बताई और थंगम आदिवासी समुदाय की बात की जिन्होंने पर उन्होंने शोध किया है। स्वाति उखले ने जाजम शब्द और स्वर की खूबियों को समझाया और संस्कृतिक मार्ग पर आगे चलने का सुझाव दिया। उषा किरण खान ने कहा कि वाचक परंपरा के अनुसार सभी गांव की स्त्रियां गीत गाती है जब तक बारिश नहीं हो जाती। वाचक परंपरा में कोई भेदभाव नहीं गायन को वाचक परंपरा का अब विभिन्न अंग कहा जाता है। कार्यक्रम में संचालन विनय उपाध्याय जी का रहा।

विश्वरंग निदेशक संतोष चौबे की कविता संग्रह के उड़िया अनुवाद का किया गया लोकार्पण
कथा सभागार में “भारतीय भाषा में अनुवाद” को लेकर कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसमें रविंद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे ने अपने प्रारंभिक कविताओं पर्यावरण दिवस, प्रेमिका को दी हुई किताब, पुरानी स्त्री की कविता, नई स्त्री की कविता सहित अन्य कविताओं का कविता पाठ किया। सभागार में मौजूद दर्शकों व नामचीन कवियों की इन कविताओं पर खूब तालियां मिली। दरअसल श्री चौबे की ऐसी कई कविताओं के कविता संग्रह का उड़िया अनुवाद, जो प्रसिद्ध उड़िया कवयित्री प्रवासिनी महाकुड के द्वारा किया गया, उस कविता संग्रह का मौके पर लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर मौजूद प्रसिद्ध उड़िया कवयित्री प्रवासिनी महाकुड ने हिंदी भाषा की कविताओं का अन्य भाषाओं में अनुवाद की अहमियत बताई। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा के कविताओं का उड़िया भाषा सहित अन्य भाषाओं में और अन्य भाषाओं के हिंदी में अनुवाद से हिंदी भाषा के साथ साथ अन्य सभी भाषाएं समृद्ध होगी। उड़िया से हिंदी भाषा में अनुवाद करने वाले देश के नामचीन अनुवादक राजेन्द्र कुमार मिश्र ने हिंदी के साहित्य या कविताओं के विभिन्न भाषाओं में अनुवाद को महत्वपूर्ण बताते हुए नए पीढ़ी के युवाओं को अनुवाद करने के बेहतर तरकीब बताई। उन्होंने कहा कि अनुवाद करते समय सबसे बड़ी मुश्किल होती है कि अनुवादित शब्द हुबहु नहीं मिलते, समानार्थक शब्द के रास्ते सफर तय करनी पड़ती है और सफर, सफल बनाने के लिए पूरी कविता खुलने से पहले तक बार-बार पढ़ने, समझने और उसे गढ़ने की आवश्यकता पड़ती है। वहीं उर्दू अनुवाद के लिए मशहूर जानकी प्रसाद शर्मा ने कहा कि हमें हिंदी या किसी एक भाषा तक ही अपने आपको सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि कई भाषाएं सीखने के प्रयास करने चाहिए। कार्यक्रम के अंत में सभी मंचासीन अतिथियों को रविंद्र नाथ टैगोर की स्मृति चिन्ह व प्रशंसा पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। संचालन श्रद्धा श्रीवास्तव ने किया।

चित्रकला पर सेमिनार
डॉ राखी कुमार और अखिलेश नीरज जी ने चित्रकला का वर्णन किया और अखिलेश नीरज जी ने पांच तत्वों के द्वारा तंत्र एवं मंत्र का जिक्र किया तंत्र कल का जिक्र एवं आधुनिकता का वर्णन किया।
विश्वरंग की पत्रिकाएं

विश्वरंग भाषा साहित्य एवम् रंग उत्सव के चौथे दिन सैतालीसवें सत्र में विश्वरंग की विभिन्न पत्रिकाओं पर चर्चा की गई। इस सत्र में अलग अलग पत्रिकाओं के प्रमुख संपादक और उप सपादक वक्तृत्व के लिए उपस्थित रहे। मंच पर संतोष चौबे, विनय उपाध्याय, लीलाधर मंडलोई, कुणाल सिंह, मोहन सागोरिया एवम् ज्योति रघुवंशी उपस्थित रहे। संचालन प्रशांत सोनी ने किया। विश्वरंग की पत्रिकाएं विश्वरंग, वनमाली कथा, वनमाली वार्ता, इलेक्ट्रानिकी आपके लिए एवम् रंग संवाद पर चर्चा की गई।रंगसंवाद पत्रिका के प्रधान संपादक विनय उपाध्याय जी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि ये समस्त पत्रिकाएं संतोष चौबे जीवन का प्रत्यक्ष दर्पण हैं। उनके कार्यों के फलस्वरूप ही यह पत्रिकाएं मूर्तरूप ले पाई हैं। रंगसंवाद एक सांस्कृतिक और कलात्मक पत्रिका है। साहित्य और कलाओं के बीच अंतर्बिताई बातों को इस पत्रिका में शामिल किया गया। वहीं इलेक्ट्रानिकी आपके लिए के उप संपादक मोहन सगोरिया जी ने बताया इस पत्रिका को कई राष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। और साथ ही वनमाली वार्ता की संपादक ज्योति रघुवंशी ने बताया कि यह संवाद की मुख्य पत्रिका है, और इसमें कोई भी अपनी रचना भेज सकता है। वनमाली कथा के संपादक कुणाल सिंह ने बताया यह अकेली ऐसी संस्था है जहां से पांच पत्रिकाएं निकलती हैं।

स्वतंत्र भारत में आधुनिक चित्रकला की दशा और दिशा पर विमर्श
स्वतंत्र भारत में आधुनिक चित्रकला की दशा और दिशा विषय पर विशेष सत्र का आयोजन किया गया। इसमें डॉ. राखी कुमारी, महावीर वर्मा ने प्रेजेंटेशन दिया। साथ ही कार्यक्रम में विनय उपाध्याय द्वारा संपादित “सुधीर पटवर्धन से संवाद”, संतोष चौबे लिखित “भारतीय चित्रकला” का विमोचन किया गया। इसके अलावा “सुधीर पटवर्धन – जन का कलाकार” पर विमर्श किया गया। इस सत्र में समसामयिक कला जगत में नारी अस्मिता की भावमयी उपस्थिति उसका संघर्ष और उसका समाज निर्माण में योगदान जैसे विषयों के अलग-अलग कालखंडों में चित्रण पर भी बात हुई जो नारी सशक्तिकरण और उसकी मजबूती की ओर इशारा करते हैं।

कथेतर गद्य लेखन में स्वतंत्रता होती है — संतोष चौबे
“कथेतर गद्य का भविष्य” विषय पर सत्र में विश्व कथेतर अंक का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया। वैचारिक सत्र की शुरूआत में रामा तक्षक द्वारा गद्य की पत्र विधा पर एक पाठ किया गया। उन्होंने इस दौरान 1583 में लिखे एक खत का पाठ किया। इसके बाद वक्ताओं ने क्रम से अपने विचार रखे। उमाशंकर चौधरी ने अपने वक्तव्य में कथेतर गद्य शब्द को अपनी तरह से परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि कथेतर गद्य से समाज को सही ढंग से समझा जा सकता है। कथेतर गद्य का यथार्थ ही भविष्य में हमें बचाएगा। भालचंद जोशी ने कहा कि आज के समय में कथेतर गद्य बदल रहा है और हमें उस पर नजर रखनी चाहिये। कथेतर गद्य के सामने कुछ चुनौतियां है जिसका हल हमें निकालना है। अन्य अतिथि महेश दर्पण ने कहा कि कथेतर कोई अचानक उत्पन्न नहीं हुआ है यह तक बहुत पहले से ही साहित्य विधा के रूप में रचा—बसा है। आज कथेतर गद्य में दुनियाभर में संभावनायें हैं दुनियाभर में इसे रचा जा रहा है। कथेतर ही अदृश्यता को दृश्यता में बदलता है।
सत्र के अंत में विश्वरंग निदेशक संतोष चौबे ने कहा कि किताबें जीवन बदलती हैं और उनके जीवन पर भी कथेतर साहित्य की पढ़ी गई तीन किताबों का प्रभाव रहा है। कथेतर साहित्य में लेखन की स्वतंत्रता होती है। यह इसे और भी सरल बनाता है। इस सत्र का कुशल संचालन लीलाधर मंडलोई द्वारा किया गया।

रचना का आधार यथार्थ, पर बुनावट कल्पना से संभव : उषा किरण खान

लेखक से मिलिए सत्र में पद्मश्री से सम्मानित उषा किरण खान के साथ अर्पण कुमार की खास बातचीत हुई। इसमें बात करते हुए उषा किरण खान ने कहा कि रचना का यथार्थ होता है, लेकिन बुनावट कल्पना से आती है। जहां तक भामती उपन्यास का प्रश्न है तो यह 10वीं शताब्दी का एक विशेष नारी की कहानी पर आधारित है। उस समय के शैक्षिणिक, सामाजिक और धार्मिक स्थितियों को भी इस उपन्यास में रेखांकित किया गया है। यही वजह है कि लोगों को यह उपन्यास अपनी ओर आकर्षित करता है। इस बातचीत के दौरान उन्होंने विद्यापति के जीवन पर आधारित सिरजनहार उपन्यास का जिक्र करते हुए उनके दिलचस्प पहलुओं से अवगत कराया। बताते चलें कि उषा किरण खान ने पानी की लकीर, सिरजनहार, भामती जैसे कई प्रसिद्ध उपन्यास हिंदी और मैथिली भाषा में लिखे जाने के साथ साथ कई नाटक भी लिखे। पद्मश्री उषा किरण खान को मैथिली के लिए साहित्य अकादमी सहित अन्य कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है।

संस्कृत साहित्य की वैष्विकता विषय पर सत्र
मंथन सभागार में समकालीन कविता किताब का लोकार्पण किया गया। इस अवसर पर संस्कृत साहित्य की वैष्विकता विषय पर बातचीत की गई। चर्चा में पूर्व कुलपति प्रो.राधावल्लभ त्रिपाठी एवं सहित्यकार एवं विचारक अष्टभुजा शुक्ल ने अपने विचार साझा किए। इस अवसर पर पूर्व कुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने कहा कि हमें तीन पक्षों पर विचार करने की जरूरत है। पहला पक्ष यह कि संस्कृत की ज्ञान मीमांषा और विश्व बोध, संसार के लिए क्या मायने रखता है। इसी का दूसरा पक्ष यह है कि संस्कृति केवल भारत की ही भाषा नहीं रही है, संस्कृत विष्व की भाषा है। कई देशों में लिखी और पढ़ी जाती है। विदेशों में शिलालेख संस्कृत में लिखे मिलते हैं। कई देशों में काम काज की भाषा भी संस्कृत रही है। तीसरा पक्ष यह है कि इस समय की वैश्विक स्थिति में तकनीक में संस्कृत क्या दे सकती है। इन तीनों प़क्षों पर विचार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि संस्कृत विश्वभाषा है, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि संस्कृत रचनात्मकता को आमंत्रित करती है। इस अवसर पर साहित्यकार और विचारक अष्टभुजा शुक्ल ने कहा कि संस्कृत एक मात्र ऐसी भाषा है। जिस पर विश्व सम्मेलन होता हैं। इसमें संस्कृत में सृजन एवं लिखने पढ़ने वाले लोग एकाग्र होते हैं। उन्होंने कहा कि संस्कृत की वैष्विकता अभिव्यक्ति की वैश्विकता है। संस्कृत का समृद्ध व्याकरण है। संस्कृत में एक शब्द व्याकरण के अनुरूप बनाए जा सकते है। विपुल साहित्य संस्कृत में उपलब्ध है। इस अवसर पर साहित्यकार कुमार अनुपम ने लोकार्पित पुस्तक के संबंध में जानकारी साझाा करते हुए कहा कि इस पुस्तक में बहुत सी भारतीय भाषाओं की कविता हिन्दी में है। उन्होने कहा यह जिम्मेदारी हमारी है, जो विश्वरंग निभा रहा है। कार्यक्रम में प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी एवं अष्टभुजा शुक्ल ने श्रोताओं के सवालों के जवाब भी दिए। कार्यक्रम का संचालन रक्षा दुबे ने किया।

पर्यावरण और जैव पारिस्थितिकी की कविताएं सत्र
इस कविता सत्र में “पर्यावरण और जैव पारिस्थितिकी की कविताएं” विषय पर शिरीष कुमार मौर्य, अनुराधा सिंह, कुंदन सिद्धार्थ, ज्योति चावला, बलराम गुमास्ता, रामकुमार तिवारी ने कविताओं का पाठ किया। शिरीष कुमार ने “स्थायी होती है नदियों की यादद्श्त…”, अनुराधा सिंह ने “मटर का कीड़ा…”, कुंदन सिद्धार्थ ने वसंत, फूल, पृथ्वी पर कविता पाठ किया। इसके बाद ज्योति चावला ने “पहाड़ उदास हैं…”, “जामुन का पेड़…”, बलराम गुमास्ता ने “स्त्री और पृथ्वी”, रामकुमार तिवारी ने “जिसे चाहते हैं उसे धीरे-धीरे नष्ट कर रहे हैं…” कविता को पढ़ा। कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में “प्राकृतिक आपदा और साहित्य संवेदना” विषय पर वक्तव्य का आयोजन हुआ। इसमें एस.आर. हरनोट, अरुण देव, प्रो. दिलीप शाक्य द्वारा वक्तव्य दिया गया। इसमें प्रो. दिलीप शाक्य, जामिया मिलिया वि.वि. दिल्ली ने महत्वपूर्ण लेखकों की रचनाओं का उल्लेख कर अपनी चिंताएं व्यक्त की जिसमें जयशंकरप्रसाद की कामायनी, रामविलास शर्मा की “निराला की साहित्य साधना”, अहमद अली की “टेवलाईट इन देहली”, फणीश्वरनाथ रेणु की ऋणजल, अज्ञेय की नदी का द्वीप का जिक्र किया।

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