मध्य प्रदेश: केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों को विधानसभा चुनाव में उतारने के पीछे बीजेपी का क्या है प्लान ?

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Updated at : 28 Sep 2023

मध्यप्रदेश में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं. जिसकी चर्चाएं नेशनल मीडिया में काफी सुस्त दखाई दे रही थीं, लेकिन जैसे ही बीजेपी ने उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट जारी की, तब से ये मध्यप्रदेश प्रदेश के साथ देश की मीडिया भी चर्चाओं में है.

पार्टी ने तीन केंद्रीय मंत्रियों, चार सांसदों और एक राष्ट्रीय महासचिव को मध्य प्रदेश के चुनावी मैदान में उतारा है. जिनके नाम बीजेपी उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट में सामने आए हैं.

जिसमें केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते, सांसद राकेश सिंह, गणेश सिंह, रीति पाठक, उदय प्रताप सिंह और पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के नाम शामिल हैं.

खुद कैलाश विजयवर्गीय जो इस बार चुनाव न लड़ने की प्लानिंग कर रहे थे वो पार्टी के इस फैसले से आश्चर्यचकित हैं. उन्होंने मीडिया के सामने इस बात को कबूला है. वहीं पार्टी के आलाकमान के इस फैसले ने सभी को चौंका दिया है.

साथ ही अब इस निर्णय के अलग-अलग मायने भी निकाले जा रहे हैं. मध्यप्रदेश के शिर्ष नेता इस फैसले से हैरान हैं तो कांग्रेस को उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट ने बीजेपी को टारगेट करने का मौका दे दिया है.

बीजेपी की हार के रूप में कांग्रेस कर रही प्रोजेक्ट
कांग्रेस पार्टी बीजेपी के इस फैसले को आगामी चुनाव में बीजेपी की हार के रूप में दिखा रही है. इस लिस्ट के सामने आने के बाद कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने ये दावा किया है कि बीजेपी की डबल इंजन की सरकार डबल हार की ओर आगे बढ़ रही है.

कमलनाथ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (ट्विटर) पर लिखा, “अपने को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी कहने वाली भाजपा को जब आज ये दिन देखने पड़ रहे हैं कि उसको लड़वाने के लिए उम्मीदवार ही नहीं मिल रहे हैं, तो फिर वोट देने वाले कहां से मिलेंगे. भाजपा आत्मविश्वास की कमी के संकटकाल से जूझ रही है. अबकी बार भाजपा अपने सबसे बड़े गढ़ में, सबसे बड़ी हार देखेगी.”

बता दें कुछ समय को छोड़ दिया जाए तो बीजेपी मध्य प्रदेश की सत्ता में पिछले 20 सालों से अपनी साख बनाए हुए है. 2018 में बीजेपी को एमपी में करीबी मुकाबले में हार मिली थी. इसके बाद 15 महीने बाद बीजेपी ने विधायकों को जोड़ तोड़ कर अपनी सरकार बना ली थी.

बीजेपी के नेताओं को भी नहीं था अनुमान
अब इस चुनाव में बड़े नेताओं पर दांव लगाया जा रहा है. कुछ नेताओं को तो इस बात का अनुमान भी नहीं था. जिसमें कैलाश विजयवर्गीय जैसे नेता शामिल हैं.

कैलाश विजयवर्गीय को आलाकमान के इस फैसले ने चौंका कर रख दिया है. उन्होंने दूसरी लिस्ट आने के बाद मीडिया के सामने कहा, “मैंने कहा था कि मैं चुनाव नहीं लड़ना चाहता, लेकिन पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने परसों मुझे कुछ दिशा-निर्देश दिए. मैं असमंजस में था और घोषणा होने के बाद मैं आश्चर्यचकित रह गया. मेरा सौभाग्य है कि मुझे चुनावी राजनीति में भाग लेने का अवसर मिला और मैं पार्टी की अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयास करूंगा.”

वहीं इस लिस्ट में पांच बार सांसद रह चुके प्रहलाद पटेल जैसे नेता भी शामिल हैं. प्रहलाद पटेल पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं.

‘मामा’ का नाम नहीं कर रहा काम?
इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि जिन सांसदों को इस बार विधानसभा चुनाव में उतारा गया है उन्हें इस बात की पहले से जानकारी दी गई थी लेकिन शिवराज सिंह चौहान को इस बारे में नहीं बताया गया था.

अखबार को मुख्यमंत्री के करीबी सूत्रों ने जानकारी दी है कि इस लिस्ट के सामने आने के बाद वो भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा था कि कैलाश विजयवर्गीय इस बार चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन केंद्रीय मंत्रियों के बारे में जानकारी नहीं थी. सूत्रों की मानें तो अब वो भी नहीं जानते कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा.

हालांकि जब हमने इस बारे में वरिष्ट पत्रकार संतोष कुमार से बात की तो उन्होंने कहा, “बीजेपी हर चुनाव वॉर मोड पर लड़ती है. चाहे वो विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव. वो किसी भी चुनाव को ग्रांटेड नहीं लेती. साथ ही वो अपने तरकश के तीर भी नहीं छोड़ती है और मध्यप्रदेश में वहां की स्थिति को देखते हुए बीजेपी ने अपनी रणनीति बनाई है और बड़े चेहरों को उतारा है.”

शिवराज सिंह चौहान पर बात करते हुए संतोष कुमार कहते हैं, “ऐसा नहीं है कि शिवराज सिंह चौहान को साइडलाइन किया जा रहा है. शिवराज अब भी मध्यप्रदेश की राजनीति में एक बड़ा चेहरा हैं. उन्हें साइड किया जाना होता तो बीजेपी पहले ही इसकी शुरुआत कर देती. जब गृहमंत्री अमित शाह भोपाल दौरे पर आए थे तो उन्होंने शिवराज सिंह चौहान की काफी तारीफें की थीं. इसलिए शिवराज को आड़े हाथ नहीं लिया जा रहा है. रही बात सीएम फेस की, तो बीजेपी पार्लियामेंट्री की बैठक होती है, जिसमें ये तय होता है कि हमें सीएम का फेस देना है या नहीं देना है. ”

वहीं जब हमने इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार और माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दीपक तिवारी से बात की तो उन्होंने बताया, “ऐसा पहली बार है जब बीजेपी इस तरह का चुनाव लड़ने जा रही है. पार्टी को लगता है कि जनता का गुस्सा शिवराज के खिलाफ ज्यादा है. जबकि ऐसा नहीं है. शिवराज ने ही मध्य प्रदेश में बीजेपी को गरीबों से जोड़ा है और अब भी शिवराज से गरीब महिलाओं और बच्चों को काफी आशाएं हैं.”

उन्होंने बताया, “अगर बीजेपी इस बार सीएम का फेस रिवील नहीं करती है तो जो लोग शिवराज से जुड़े हुए हैं उनके वोट पाना भी मुश्किल हो जाएगा. साथ ही बीजेपी अबतक की सबसे बड़ी हार की ओर भी आगे बढ़ रही है.”

पहले भी बीजेपी चल चुकी है ये चाल
इतिहास के पन्नों को पलट कर देखा जाए तो मध्यप्रदेश में ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि बीजेपी चुनाव में ये रणनीति बना रही है. इससे पहले 2003 में हुए चुनाव में बीजेपी ने विदिशा से सांसद शिवराज सिंह चौहान को मुरैना से चुनाव लड़वा दिया था. वो भी तब जब उनके उस वक्त के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह लड़ रहे थे. हालांकि शिवराज ये चुनाव हार गए थे.

उसी चुनाव में उमा भारती को भी दिल्ली से मध्यप्रदेश भेजा गया था. उस समय भारती केंद्र में कोयला मंत्री हुआ करती थीं, लेकिन उस समय कांग्रेस के खिलाफ खासी एंटी इनकम्बेंसी थी. जिसका फायदा बीजेपी को मिला और बीजेपी चुनाव जीत गई.

इसी तरह 2021 में पश्चिम बंगाल में हुए लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी और वहां से कई लोकसभा सांसदों को टिकट दिया था.

इस फेहरिस्त में केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो, लॉकेट चटर्जी, निसिथ प्रमाणिक और राज्यसभा सांसद स्वपन दासगुप्ता जैसे बड़े नाम शामिल थे. वहीं पिछले साल उत्तर प्रदेश में हुए चुनाव में आगरा से सांसद एसपी सिंह को अखिलेश यादव के सामने उतार दिया गया था, लेकिन अखिलेश के सामने बघेल चुनावी मैदान में नहीं टिक पाए और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

वहीं इसी साल हुए त्रिपुरा चुनाव में भी केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक को राज्य भेजा गया था. भौमिक फिलहाल धनपुर से विधायक हैं.

अपने गढ़ में बीजेपी को क्यों झोंकनी पड़ रही ताकत
18 साल से मध्य प्रदेश की सत्ता में काबिज बीजेपी ने कुछ समय पहले ही जन आशिर्वाद यात्रा निकाली थी जो फ्लॉप साबित हुई. इस यात्रा के लिए लोगों में भी ज्यादा उत्साह नहीं देखा गया. वहीं बीजेपी ने कई योजनाएं भी लाकर देख ली हैं लेकिन फिर भी पार्टी को लग रहा है कि वो कमजोर स्थिति में चल रही है.

इस मुद्दे पर बात करते हुए दीपक तीवारी बताते हैं, “इस बार मध्य प्रदेश में बीजेपी ने तमाम कोशिशें कर लीं कि वो चुनाव सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर ले जाए, लेकिन इस बार एंटीइंबेंसी है और चुनाव बीजेपी वर्सेज पब्लिक के बीच है. कांग्रेस ने सबक लेते हुए अपने आप को हिंदुत्व की पार्टी बताते हुए आम मुद्दों को उठाया है.”

दीपक तिवारी बताते हैं कि इस बार भारतीय जनता पार्टी अपने इतिहास की सबसे खराब हार की ओर आगे बढ़ रही है. उसका कारण ये है कि जिस तरह से बीजेपी निर्णय ले रही है वो सभी पैनिक निर्णय हैं. ऐसा इसलिए भी कि अब उसके पास कोई चारा नहीं बच रहा है. वो साफ बीजेपी के बड़े नेताओं में भी देखने को मिल रहा है. इसी पैनिक के चलते इस तरह की लिस्ट जारी की गई है.

दूसरी ओर इस मुद्दे पर संतोष कुमार का मानना है कि अब भी बीजेपी के पास नरेंद्र मोदी जैसा नेतृत्व है. बीजेपी अपनी स्ट्रेटजी से आगे बढ़ रही है. ऐसे में आगे भी वो ऐसा ही करेगी और शिवराज सिंह चौहान को साइडलाइन नहीं किया जा रहा है बस फोकस नरेंद्र मोदी पर किया जा रहा है.

शिवराज सिंह चौहान के बिना लड़ा जा सकता है चुनाव?
कहा जा रहा है कि शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ एंटी इन्कम्बेंसी है, लेकिन दीपक तिवारी का मानना है कि ऐसा नहीं है. शिवराज अब भी एक बड़ा वोट बैंक रखते हैं. उन्होंने कहा कि अगर शिवराज को सामने लाकर चुनाव नहीं लड़ा जाता है तो वोटर्स भी कंफ्यूज हो जाएंगे. ऐसे में उन्हें लगेगा अगर शिवराज सीएम नहीं बनते हैं तो उनके द्वारा लाई गई योजनाओं का लाभ भी उन्हें नहीं मिलने वाला है. जिसका नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ेगा.

साथ ही दीपक तिवारी का ये भी मानना है कि भले ही ये बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक लग रहा हो, लेकिन ऐसा नहीं है. ये बीजेपी की घबराहट है. क्योंकि जिन सांसदों, केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय सचिव को चुनाव में उतारा गया है वो यदि हार जाते हैं तो उन्हें लोकसभा में भी ये सोचकर टिकट नहीं दिए जाएंगे कि वो विधायकी का ही चुनाव हार गए हैं तो लोकसभा में कैसे जीतेंगे.

अब देखना ये होगा कि जिस एंटीइंबेंसी फैक्टर की चुनावों में बात हो रही है उसका कितना असर होता है और चुनाव में जनता किसे वोट देकर आगे बढ़ाती है.

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