क्या है ‘चाइल्ड केयर लीव’; हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने क्यों पलटा?

मुख्य समाचार, राष्ट्रीय

Updated at : 06 May 2024

कई बार कोर्ट में कुछ ऐसे मामले आते हैं जो समाज के अंदर खोखलेपन को उजागर कर देते हैं. भारत में महिलाओं के लिए समान भागीदारी के वादे हर मंच पर होते हैं लेकिन जब उनको सहूलियत देने की बात आती है तो सब कुछ एकदम पलट जाता है. ऐसा ही मामला अपने बच्चे की देखभाल के लिए छुट्टी के लिए गुहार लगाने वाली एक महिला प्रोफेसर का आया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया.

क्या है पूरा मामला
हिमाचल प्रदेश की रहने वाली एक महिला प्रोफेसर ने हाईकोर्ट में बीमार बेटे की देखभाल के लिए अनुच्छेद 226 के तहत  छुट्टी की याचिका दाखिल की थी. लेकिन राज्य सरकार ने इसके खिलाफ तर्क दिया कि ये नियम यहां लागू नहीं होता है. दरअसल केंद्र सरकार के सिविल सर्विस लीव रूल्स 1972 के रूल 43-सी के तहत महिला कर्मचारियों को दो साल की चाइल्ड केयर लीव देने का प्रावधान है.730 दिन की इस छुट्टी के दौरान पूरी सैलरी दी जाती है.

लेकिन हिमाचल प्रदेश की सरकार ने 43-सी नियम को अपने यहां लागू नहीं किया था. इसी को आधार बनाकर अदालत में महिला की याचिका का विरोध किया गया. हाईकोर्ट ने भी नियमों का हवाला देते हुए याचिका को खारिज कर दी. सरकार का कहना था कि दो साल छुट्टी देने का मतलब है कि न तो इस पोस्ट पर किसी को नौकरी पर रखा जा सकता है और न ही काम चलेगा.

सुप्रीम कोर्ट में कैसे पलटा फैसला
हाईकोर्ट से अपील खारिज होने पर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने महिला को चाइल्ड केयर लीव यानी बच्चे की देखभाल के लिए छुट्टी न देने को संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना. सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पारदीवाला की पीठ ने कहा कि चाइल्ड केयर लीव का प्रावधान बताता है कि किसी कामकाजी महिला या मां के मौलिक अधिकारों से समझौता नहीं किया जा सकता है. राज्य किसी भी मां की घरेलू जिम्मेदारियों से अनजान बना नहीं रह सकता है.

84 फीसदी अवैतनिक देखभाल पर खर्च
एक आंकड़ें की मानें तो भारत में महिलाओं का 84 फीसदी वक्त ऐसे काम में खर्च कर देती हैं जिस पर उन्हें कोई पैसा नहीं मिलता है. महिलाओं के कंधे पर यह बोझ वास्तव में कहीं नहीं ‘केयर इकोनॉमी’ की रीढ़ है.

भारत में कामकाजी महिलाओं के लिए क्या प्रावधान हैं?
अनुच्छेद 14: ये महिलाओं को समानता का अधिकार देता है. इसमें कहा गया है कि भारत में रहने वाले किसी भी नागरिक को कानून की समानता या संरक्षण से वंचित नहीं किया जा सकता है. ये कामकाजी महिलाओं पर भी लागू होता है.अनुच्छेद 15: यह धर्म,मूलवंश,जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव के खिलाफ है.
अनुच्छेद 16: नीतियों के विषय में अवसरों में समानता की गारंटी देता है. यह महिलाओं को नौकरी से वंचित या किसी भी भेदभाव से संरक्षण देता है.
अनुच्छेद 39: इस प्रावधान को कई भागों में बांटा गया है. महिलाओं को पुरुषों के समान ही जीविका के लिए पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार है. पुरुषों और स्त्रियों दोनों के लिये समान काम के लिये समान वेतन. पुरुषों हो या महिला किसी भी उनकी जरूरतों बदले ऐसे काम के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है जो उनकी सेहत या शक्ति के मुताबिक न हो.
अनुच्छेद 42: गर्भावस्था, महिलाओं के लिए कामकाजी माहौल और मातृत्व लाभ को संरक्षित करता है.

क्या है केंद्र सरकार का ‘चाइल्ड केयर लीव’नियम
यह महिला कर्मचारियों को उनकी पूरी नौकरी के दौरान 18 साल से कम आयु के अधिकतम दो बच्चों की देखभाल के लिये मातृत्व अवकाश के अलावा 730 दिनों के छुट्टी लेने का अधिकार देता है.इस दौरान उनका वेतन नहीं काटा जाएगा. इसमें पुरुषों को भी शामिल किया गया लेकिन इसके लिए उनका ‘सिंगल फादर’ होना जरूरी है.

क्या होती है केयर इकोनॉमी
अर्थव्यवस्था का वो हिस्सा जिसमें स्वास्थ्य, शिक्षा, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल साथ ही सामाजिक देखभाल को शामिल किया गया है. इसमें वेतन और अवैतनिक दोनों कामों को शामिल किया गया है. हालांकि सामाजिक व्यवस्था में इसे हमेशा कम करके आंका जाता है. हालांकि इन सेवाओं को कई भागों में बांटा गया है.
वैतनिक देखभाल:  स्वास्थ्य, शिक्षा, व्यक्तिगत देखभाल और घरेलू कामों के बदले सैलरी या मेहनताना दिया जाता है.
अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्य: इसमें घरेलू सेवाएं जैसे खाना बनाना, सफाई और बच्चों-बुजुर्गों की देखभाल शामिल है.

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