
“बाबा विश्वनाथ की नगरी” में दरक रहे गंगा के कई घाट
Updated: 24 जनवरी, 2023
घाटों में आ रही दरार पर आईआईटी बीएचयू के प्रोफेसर विशम्भर नाथ मिश्रा ने कहा, “गंगा का जो कटान है, यह कोई नया नहीं है यह शुरू से रहा है. 1993-94 में जब आपका चैनल डेट 12-13 मीटर होता था आज घटकर छह मीटर हो गया है. अभी जो चैनल डेट घट रहा है तो स्वाभाविक है कि उसकी वेलासिटी बढ़ेगी तो आपको उसी डेस्क तक ले जाना होगा तो आप ड्रेसिंग करिए और मेंटेन करिए. गंगा जी का अगर प्रवाह कम होगा, गहराई (Defth) प्रभावित होगी तो वेलासिटी बढ़ेगी. इन दोनों का आपस में संबंध है. घाटों की दुर्दशा की ओर एनडीटीवी ने 2015 से ध्यान आकर्षित कर रहा है लेकिन तब कछुआ सेंचुरी का हवाला देकर बालू खनन पर रोक से बेबसी जताई गई थी. लेकिन अब कछुआ सेंचुरी भी हट गई है लेकिन हालात जस के तस हैं. घाटों को बचाने के लिए कोई काम नहीं हो रहा है लिहाजा विपक्ष को सरकार को घेरने का मौका मिल रहा है.
कांग्रेस नेता अजय राय कहते हैं, “गंगाजी का पानी ऐसे आ गया है. आप देखेंगे पूरे तरीके से दरक रहा है. अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो काशी गंगा जी के घाट दूसरा जोशीमठ का उदाहरण होगा. सरकार केवल अपने इवेंट मैनेजमेंट में व्यस्त हैं. हमारा जो पूर्णिमा का कार्यक्रम होता है देव दीपावली का,डिस्को लाइट दिखा देंगे. बस यही दिखाकर जनता को मुग्ध करना चाहते हैं.” जाहिर हैं, बनारस के टूटते घाट बड़ी चेतावनी दे रहे हैं. कुछ दिन पहले ही ललिता घाट पर गंगा से तकरीबन 20 मीटर अंदर घाट के ऊपर बीचोंबीच गड्ढा हो गया, जो इस बात की गवाही देता है कि घाट अंदर-अंदर कितने मीटर तक खोखले हो रहे हैं. दुनिया के सबसे पुराने शहर माने जाने वाले बनारस का सबसे खूबसूरत हिस्सा गंगा के किनारे के घाट हैं , जो अपनी बेकद्री का दर्द धीरे-धीरे दरकते हुए बयां कर रहे हैं लेकिन अफसोस इस बात का है कि दुनिया के नक्शे में इस शहर को ‘नंबर वन’ बताने वाले लोग इन घाटों के इस दर्द को महसूस नहीं कर पा रहे. अगर वक्त रहते इस ‘दर्द का इलाज’ नहीं किया गया तो कुछ घाट गंगा में हमेशा के लिए समा सकते हैं.