March 24, 2025

बापू की 150वीं जयंति: जानिए क्या कहा गांधी की हत्या के एक मात्र जीवित चश्मदीद ने

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Updated: 02 Oct 2019 ,

नई दिल्ली: देश और दुनिया जब बुधवार को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने की तैयारी में है, गांधी के अंतिम क्षण के संभवत: एक मात्र जिंदा चश्मदीद के.डी. मदान ने इस महान नेता को एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की है. ऑल इंडिया रेडियो के एक कार्यक्रम अधिकारी (1944-1948) रहे मदान नई दिल्ली के बिड़ला हाउस में हर शाम गांधी द्वारा प्रार्थना सभा के बाद दिए जाने वाले भाषण की रिकॉर्डिग किया करते थे. इसी बिड़ला हाउस के अहाते में 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम विनायक गोडसे ने गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी.

मदान ने महात्मा को करीब से देखा था

 मदान दक्षिण दिल्ली के वसंत विहार में रहते हैं. उन्होंने कहा, “बुधवार को दुनिया गांधीजी की (150वीं) जयंती मनाएगी. इसलिए इस मौके पर मैं उस व्यक्ति (गोडसे) के बारे में कुछ नहीं कहूंगा, जिसे मैंने इस धरती पर सबसे घृणित अपराध करते देखा था. लेकिन जब मैं 100 साल का होने के करीब हूं, मैं कहना चाहूंगा कि गांधीजी जैसा व्यक्ति कई सदियों में एक बार पैदा होता है.”  गांधी के भाषण को महीनों तक रिकॉर्ड करते-करते मदान ने महात्मा को करीब से देखा था. उन्होंने कहा, “निस्संदेह वह बहुत बड़ी हस्ती थे, लेकिन बातचीत के दौरान वह इतने विनम्र और सहज होते थे कि मैंने कभी महसूस नहीं किया कि मैं इस तरह के किसी बड़े नेता से बातें कर रहा हूं. मैं 100 साल का होने जा रहा हूं, लेकिन उनके जैसा विनम्र नेता मैंने अभी तक नहीं देखा.”

बिड़ला हाउस में जुटे लोगों में से जिंदा बचे एक मात्र व्यक्ति हैं मदान

मदान ने आज के नेताओं को सुझाव देते हुए कहा, “उनमें अहंकार बिल्कुल नहीं था.. बिल्कुल भी नहीं. ये बात आज के दौर के लोगों को समझनी होगी.” गांधी की 1948 में हत्या हो जाने के बाद मदान ने ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी छोड़ दी और सिविल सेवा में शामिल हो गए. मदान मौजूदा समय में गांधी की हत्या वाले दिन गांधी को सुनने के लिए बिड़ला हाउस में जुटे लोगों में से जिंदा बचे एक मात्र व्यक्ति हैं.

उन्होंने कहा, “लेडी माउंटबेटन, (जवाहरलाल) नेहरूजी, सरदार पटेल, मौलाना आजाद, अमृत कौर, राजेंद्र प्रसाद और कई अन्य लोग अक्सर बिड़ला हाउस आते रहते थे. लेकिन मेरी एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी थी. प्रत्येक शाम मैं गांधीजी का संबोधन रिकॉर्ड करता था और प्रार्थना के बाद के उनके भाषण को शाम 8.30 बजे प्रसारित कर उन्हें पूरे देश से जोड़ता था.” उन्होंने कहा, “कई पत्रकार भी वहां गांधीजी के भाषण को कवर करने हर रोज आते थे. अब उनमें से किसी का नाम मुझे याद नहीं है.” मदान शुरू में 30 जनवरी, 1948 की अभागी शाम के बारे में बात नहीं करना चाहते थे, लेकिन बाद में उन्होंने घटना को याद किया.

”हम सभी को पता है कि क्या हुआ..”- मदान

मदान ने कहा, “मैं बिड़ला हाउस (30 जनवरी, 1948 को) शाम लगभग 4.30 बजे पहुंच गया. मैं अपने उपकरण को व्यवस्थित कर रहा था, तभी देखा कि सरदार पटेल गांधीजी से मिलने बिड़ला हाउस के अंदर जा रहे हैं. पटेल वहां कुछ समय तक रहे और उसके बाद निकल गए. थोड़ी देर बाद लेडी माउंटबेटन और लॉर्ड माउंटबेटन गांधीजी से मिलने पहुंचे. प्रार्थनासभा में देरी हुई, क्योंकि गांधीजी नहीं पहुंचे थे, संभवत: शाम 5.15 बजे तक. मैं उस लॉन में था, जहां गांधीजी पहले प्रार्थना करते थे और उसके बाद भाषण देते थे. और उसके बाद हम सभी को पता है कि क्या हुआ..”

यह पूछे जाने पर कि क्या वह इस मामले में प्रमुख चश्मदीद गवाह थे? मदान ने कहा कि पुलिस ने शुरू में उन्हें बुलाया था. उन्होंने कहा, “लेकिन बाद में पुलिस ने मुझसे कहा कि मेरी गवाही की जरूरत नहीं है, क्योंकि आरोपी ने दोष कबूल कर लिया है. इसलिए मुझे अदालत में नहीं जाना पड़ा.” गांधीजी के साथ बिड़ला हाउस में अपनी बातचीत को याद करते हुए मदान ने कहा कि एक बाद गांधीजी ने उनसे कहा था कि वह ऑल इंडिया रेडियो के स्टूडियो आएंगे. लेकिन जिस दिन वह आने वाले थे, गांधीजी उस दिन कहीं बाहर चले गए.

1981 तक मदान ने केंद्रीय गृह मंत्रालय में विशेष सचिव के रूप में काम किया

मदान ने कहा, “इस घटना से एक दिन पहले गांधीजी ने बिड़ला हाउस में मुझे बुलाया और बहुत ही विनम्रता से कहा कि एआईआर स्टूडियो न पहुंच पाने का उन्हें बहुत दुख है, क्योंकि अचानक उनका कार्यक्रम बदल गया. वह इस तरह माफी मांग रहे थे, उनके शब्द इतने विनम्र थे कि मैं उनका मुरीद हो गया. एक मनुष्य के रूप में वह उनका गुण था, जो आपको और कहीं नहीं मिलेगा.” साल 1981 तक मदान ने केंद्रीय गृह मंत्रालय में विशेष सचिव के रूप में काम किया. इस समय वह अपने बेटे के साथ रहते हैं और उम्र के कारण कहीं आना-जाना मुश्किल से ही हो पाता है.

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