Corbevax Vaccine: भारत की ये नई कोरोना वैक्सीन दूसरी वैक्सीन से कैसे अलग है ? जानें खासियत

मुख्य समाचार, राष्ट्रीय, स्वास्थ्य

Sat, 5 June 21,

भारत सरकार ने हैदराबाद स्थित कंपनी बायोलॉजिकल ई (Hyderabad Based Biological E) को एक नई कोरोना वैक्सीन ‘कॉर्बेवैक्स’ की 30 करोड़ डोज को बनाने का प्रस्ताव दिया है. कॉर्बेवैक्स वैक्सीन वर्तमान में क्लीनिकल ट्रायल के आधे चरण में है. आइए जानते हैं यह वैक्सीन भारत के लिए क्यों महत्वपूर्ण है? और क्या है इसकी खासियत?

Corbevax एक ‘रेकॉम्बीनैंट प्रोटीन सब-यूनिट’ वैक्सीन है, जिसका मतलब है कि यह वैक्सीन SARS-CoV-2 वायरस के एक स्पेसिफिक पार्ट से बनी है. यह स्पेसिफिक पार्ट वायरस की सतह पर स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein) होता है. स्पाइक प्रोटीन वायरस को शरीर की कोशिकाओं में प्रवेश करने की इजाजत देता है ताकि यह संक्रमण का कारण बन सके. हालांकि, शरीर में वायरस न होने की स्थिति में जब यह प्रोटीन दिया जाता है, तब इसके हानिकारक होने की उम्मीद नहीं रहती क्योंकि तब शरीर में वायरस मौजूद नहीं है.

क्या है खासियत?

स्पाइक प्रोटीन के इंजेक्ट होने के बाद, इसके खिलाफ शरीर में इम्यूनिटी विकसित होने की उम्मीद रहती है. इसलिए, जब असली वायरस शरीर को संक्रमित करने की कोशिश करता है, तो उससे पहले ही व्यक्ति में इम्युनिटी रिस्पॉन्स तैयार हो जाती है, जिसके बाद व्यक्ति के गंभीर रूप से संक्रमित होने की संभावना नहीं रहती.

हालांकि इस तकनीक का इस्तेमाल दशकों से हेपेटाइटिस बी के टीके बनाने के लिए किया जा रहा है. इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने वाली ‘कॉर्बेवैक्स’ पहली कोरोना वैक्सीन होगी. ‘नोवावैक्स’ (Novavax) ने भी एक प्रोटीन-बेस्ट वैक्सीन को विकसित किया है, जो अभी भी अलग-अलग रेगुलेटर्स से इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिलने की प्रतीक्षा कर रहा है.

कहां से हुई शुरुआत?

कॉर्बेवैक्स की शुरुआत का पता बायलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के नेशनल स्कूल ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन से लगाया जा सकता है. स्कूल पिछले एक दशक से कोरोनावायरस SARS और MERS के लिए ‘रेकॉम्बीनैंट प्रोटीन वैक्सीन’ पर काम कर रहा था. स्कूल में प्रोफेसर और डीन डॉ. पीटर होटेज ने कहा कि हम ‘रेकॉम्बीनैंट प्रोटीन वैक्सीन’ को बनाने की सभी आवश्यक तकनीकों को जानते थे.

अब तक अप्रूव की गई कोरोना वैक्सीन या तो mRNA वैक्सीन (फाइजर और मॉडर्ना), वायरल वेक्टर वैक्सीन (एस्ट्राजेनेका-ऑक्सफोर्ड/कोविशील्ड, जॉनसन एंड जॉनसन और स्पुतनिक वी) है या इनएक्टिव वैक्सीन (कोवैक्सिन, सिनोवैक-कोरोनावैक और सिनोफार्म के SARS-CoV-2 वैक्सीन-वेरो सेल) हैं.

15 करोड़ नागरिकों का होगा वैक्सीनेशन

Corbevax, एमआरएनए और वायरल वेक्टर कोविड-19 वैक्सीन्स की तरह ही केवल स्पाइक प्रोटीन को टारगेट करता है, हालांकि इस वैक्सीन का टारगेट करने का तरीका अलग होता है. अन्य कोरोना वैक्सीन्स की तरह ही कॉर्बेवैक्स की भी दो डोज लगती हैं. हालांकि, इसे कम लागत वाले प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करके बनाया गया है, इसलिए यह देश में उपलब्ध सबसे सस्ती वैक्सीन्स में से एक हो सकती है.

ऐसा पहली बार है जब भारत सरकार ने एक ऐसी वैक्सीन के उत्पादन का आदेश दिया है, जिसे अभी तक इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी नहीं मिली है. Corbevax के लिए सरकार ने 1,500 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान किया है. 30 करोड़ डोज की मदद से 15 करोड़ भारतीय नागरिकों को वैक्सीनेशन किया जा सकेगा.

Leave a Reply