भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी खुशखबरी, ग्लोबल कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे में किया टॉप

मुख्य समाचार, व्यापार

Mar 4, 2019,

नई दिल्ली: भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर एक अच्छी खबर आ रही है. ग्लोबल कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे में भारत पहले पायदान पर है. यह नेल्सन के सर्वे में पता चला है. ऑनलाइन आयोजित इस सर्वे में 64 देशों के 32 हजार उपभोक्ताओं ने हिस्सा लिया था. भारत का कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स (CCI) 133 है. दूसरे पायदान पर 131 अंकों के साथ फिलिपिंस और 127 अंकों के साथ इंडोनेशिया तीसरे पायदान पर है. सर्वे के हिसाब से दक्षिणी कोरिया के उपभोक्ता सबसे ज्यादा निराशावादी हैं. इसकी वजह है कि वहां के लोग बढ़ती महंगाई, वेतन में कम वृद्धि, स्टॉक मार्केट के कमजोर प्रदर्शन और बेरोजगारी की समस्या से डरे हुए हैं. सर्वे के मुताबिक ग्लोबल कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स 107 है जो पिछले 14 सालों में सबसे ज्यादा है.

क्या होता है CCI?
नेल्सन की तरफ से 2005 से ही हर साल इस सर्वे का आयोजन किया जाता है. उपभोक्ता ही अर्थव्यवस्था और व्यापार के आत्म हैं. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि उपभोक्ताओं का सेंटिमेंट कैसा है. खर्च करन को लेकर वे कितने विश्वास में हैं. अगर अर्थव्यवस्था पर उनका विश्वास है तो वे खर्च करने में नहीं हिचकिचाएंगे, लेकिन विश्वास डगमगाने पर उपभोक्ता खर्च करने में हिचकिचाते हैं और उनका फोकस सेविंग पर चला जाता है.

खर्च करने के लिए जरूरी है कि उपभोक्ता को आमदनी हो. इसके लिए जरूरी है कि रोजगार, वेतन में बढ़ोतरी और बाजार में निवेश का प्रवाह बरकरार रहे. अगर ये परिस्थितियां अनुकूल होंगी तो उपभोक्ता खर्च भी करते हैं और ये कारक अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक माने जाते हैं. कुल मिलाकर अगर कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स में अगर इजाफा हो रहा है तो मतलब साफ है कि अर्थव्यवस्था के संकेत सकारात्मक हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि नॉर्थ अमेरिका (जिसे यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका/USA)को छोड़कर विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों के उपभोक्ता अमूमन कम आशावादी होते हैं. यूरोपीय देशों का CCI 90 से भी कम है. इसके मुकाबले एशियन देशों का CCI इससे कहीं ज्यादा है.

हालांकि, रिपोर्ट के मुताबिक चीन का कंज्यूमर कॉन्फिडेंस इंडेक्स तो काफी अच्छा है लेकिन रिटेल स्पेंडिंग डाटा के मुताबिक, वहां के उपभोक्ता कम खर्च कर रहे हैं. इसकी बहुत बड़ी वजह अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापारिक गतिरोध है. इसके अलावा चीन में रोजगार के आंकड़े बहुत मजबूत नहीं है.

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