क्या होता है पी-नोट्स, भारतीय शेयर बाजार में 1.49 लाख करोड़ रुपये कैसे आए?

P-Notes यानी पार्टिसिपेटरी नोट्स. ये एक विदेशी निवेश का तरीका है. एक ऐसा तरीका जिसके जरिए विदेशी निवेशक बिना सेबी के रजिस्ट्रेशन प्रोसेस में फंसे सीधे भारतीय शेयर बाजार में पैसा लगा सकते हैं.
पी-नोट्स एक ऐसा कागजी दस्तावेज होता है जो बताता है कि कोई विदेशी निवेशक भारतीय कंपनियों के शेयरों में पैसा लगा रहा है. ये शेयर असली होते हैं, लेकिन विदेशी निवेशक सीधे भारतीय बाजार में नहीं आते.
असल में विदेशी संस्थाएं (जिन्हें FII कहा जाता है) पहले से ही भारतीय शेयर बाजार में रजिस्टर्ड होती हैं. ये संस्थाएं विदेशी निवेशकों का पैसा लेकर भारतीय कंपनियों के शेयर खरीदती हैं और फिर विदेशी निवेशकों को पी-नोट्स जारी कर देती हैं.
पी-नोट्स खरीदने का फायदा ये है कि विदेशी निवेशकों को सीधे भारतीय बाजार में रजिस्ट्रेशन कराने की झंझट नहीं होता. आमतौर पर विदेशी निवेशकों को SEBI से कई तरह की अनुमतियां लेनी पड़ती हैं. ये प्रक्रिया काफी लंबी और पेचीदा हो सकती है. इस झंझट से बचने के लिए वे विदेशी संस्थागत निवेशक (FIIs) के जरिए पार्टिसिपेटरी नोट्स का सहारा लेते हैं.
भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेश बढ़ा
विदेशी निवेशकों का भारतीय शेयर बाजार पर भरोसा बढ़ रहा है. मार्च 2024 के अंत तक पी-नोट के जरिए कुल 1.49 लाख करोड़ का निवेश आया है, जो कि पिछले साल के 88,600 करोड़ से काफी ज्यादा है. हालांकि, एक महीने के आंकड़े से तुलना करें तो फरवरी के निवेश से थोड़ा कम हुआ है. ये आंकड़ा सिर्फ शेयरों का नहीं, बल्कि सरकारी बॉन्ड और दूसरे तरह के निवेशों का भी है.
मार्च 2024 तक पी-नोट के जरिए कुल 1.49 लाख करोड़ रुपये का निवेश आया, जिसमें से
- 1.28 लाख करोड़ सीधे शेयरों में लगाए गए
- 20,806 करोड़ कर्ज (Debt) में लगाए गए
- 346 करोड़ हाइब्रिड सिक्योरिटीज में लगाए गए.
पिछले साल भारत की अर्थव्यवस्था काफी अच्छी रही है. खासकर मैन्युफैक्चरिंग, माइनिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में अच्छी ग्रोथ देखने को मिली. यही कारण है कि मार्च में पी-नोट के जरिए निवेश बढ़ा. माना जा रहा है कि विदेशी निवेशक भारतीय अर्थव्यवस्था के मजबूत प्रदर्शन से प्रभावित हुए हैं और उन्होंने ज्यादा पैसा लगाया है.
गौर करने वाली बात ये है कि विदेशी संस्थाओं (FPI) के पास भारतीय शेयरों और कर्जपत्रों को मिलाकर मार्च 2024 के अंत तक कुल 69.54 लाख करोड़ की संपत्ति थी, जो कि पिछले साल के 48.71 लाख करोड़ से काफी ज्यादा है. इसका मतलब है कि विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में पहले से मौजूद पैसा बढ़ा रहे हैं, साथ ही पी-नोट के जरिए नया निवेश भी ला रहे हैं.
पी-नोट्स निवेश में पहले से गिरावट!
विदेशी निवेशकों को सीधे भारतीय शेयर बाजार में पैसा लगाने की इजाजत साल 1992 में मिली थी. 2000 में SEBI ने एक नया तरीका निकाला, जिसे पी-नोट्स या पार्टिसिपेटरी नोट कहते हैं. ये दरअसल विदेशी कंपनियों और बड़े निवेशकों के लिए एक शॉर्टकट है.
अक्टूबर 2007 में पी-नोट के जरिए निवेश अपने चरम पर था, उस वक्त तक कुल 4.5 लाख करोड़ का निवेश हो चुका था. लेकिन, बाद में SEBI ने पी-नोट को लेकर नियमों को थोड़ा सख्त कर दिया. इसकी वजह से पी-नोट्स के जरिए निवेश काफी कम हो गया. अगस्त 2017 तक आते-आते ये घटकर रिकॉर्ड कम 1.25 लाख करोड़ रह गया. कुल विदेशी निवेश (FPI) में पी-नोट की हिस्सेदारी भी अक्टूबर 2007 के 55% से घटकर अगस्त 2017 में 4.1% रह गई थी.
मई 2022 तक पी-नोट के जरिए भारतीय शेयर बाजार में निवेश घटकर 86,706 करोड़ रुपये रह गया था. पी-नोट निवेश में गिरावट के साथ ही, विदेशी संस्थागत निवेशकों (FPI) के पास भारतीय संपत्तियों की मात्रा भी कम हो गई थी. मई 2022 के अंत तक ये घटकर 48.23 लाख करोड़ रुपये रह गई, जो कि अप्रैल 2022 के अंत में 50.74 लाख करोड़ रुपये थी. ये लगातार आठवां महीना था जब विदेशी संस्थाएं भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकाल रहीं थीं.
पी-नोट्स के जरिए निवेश कैसे होता है?
सबसे पहले विदेशी निवेशक अपना पैसा किसी रजिस्टर्ड विदेशी संस्था (FII) के पास जमा कराता है. ये FII अमेरिका या यूरोप में कहीं भी हो सकती है, जैसे HSBC या Deutsche Bank. इसके बाद निवेशक FII को बताता है कि वो किन भारतीय कंपनियों के शेयर खरीदना चाहता है.
FII उस विदेशी निवेशक को एक पी-नोट जारी करती है. ये पी-नोट इस बात का सबूत है कि निवेशक ने पैसा लगाया है. FII विदेशी निवेशक के बताए अनुसार भारतीय बाजार से शेयर खरीद लेती है. जब भी भारतीय कंपनी कोई लाभांश या डिविडेंड देती है तो वो पैसा FII के जरिए विदेशी निवेशक तक पहुंच जाता है. अगर शेयर की कीमत बढ़ती है या उसे बेचा जाता है तो उससे होने वाला मुनाफा भी निवेशक को मिलता है.
हर महीने FII को भारतीय नियामक को ये बताना जरूरी होता है कि उसने कितने पी-नोट्स जारी किए हैं. हालांकि FII को ये बताने की जरूरत नहीं होती कि असल में पैसा किसने लगाया है.
पी-नोट्स के फायदे और नुकसान
पी-नोट विदेशी निवेश का एक आसान तरीका जरूर है, लेकिन इससे कुछ दिक्कतें भी खड़ी होती हैं. फायदा ये है कि विदेशी निवेशक अपनी पहचान छिपाकर भारतीय शेयर बाजार में कारोबार कर सकते हैं. सीधे रजिस्ट्रेशन के मुकाबले पी-नोट्स के लिए कम जांच-पड़ताल करनी पड़ती है. कुछ देशों के टैक्स कानूनों का फायदा उठाया जा सकता है.
नुकसान यह है कि गुमनामी की वजह से भारतीय नियामकों को यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि असली निवेशक कौन है. ये पता नहीं चल पाता कि असल में पैसा कहां से आ रहा है. इस कारण ये डर बना रहता है कि गुप्त तरीके का फायदा उठाकर कुछ लोग पी-नोट्स का इस्तेमाल काला धन लाने या गैर-कानूनी गतिविधियों के लिए कर सकते हैं.
पी-नोट्स पर लगाम लगाने की कोशिश!
पी-नोट्स भले ही विदेशी निवेश लाने का आसान तरीका हो, लेकिन इसकी वजह से पैसों की निगरानी करना मुश्किल हो जाता है. इसलिए सरकार ने कभी सोचा था कि पी-नोट्स पर कुछ पाबंदियां लगा दी जाएं. लेकिन ये पाबंदियां लगाना इतना आसान नहीं था. अक्टूबर 2007 में जब सरकार ने ये विचार किया कि शायद पी-नोट्स पर कुछ रोक लगाई जाए. इस खबर के आते ही पूरे बाजार में अफरा-तफरी मच गई. सिर्फ एक दिन में ही सेंसक्स 1744 प्वाइंट लुढ़क गया, जो कि 8 फीसदी से भी ज्यादा गिरावट थी.
ये गिरावट इस बात को दर्शाती है कि विदेशी निवेशकों का भारतीय बाजार में कितनी बड़ी भूमिका है. विदेशी संस्थाएं (FII) भारतीय अर्थव्यवस्था, उद्योगों और शेयर बाजार को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाती हैं. अगर इन पर ज्यादा पाबंदियां लगाई जाती हैं तो विदेशी पैसा भारत में आना मुश्किल हो जाएगा. इसी वजह से सरकार ने आखिर में पी-नोट्स को पूरी तरह से बंद करने का फैसला नहीं किया. ये जरूर है कि अब सेबी पी-नोट्स के नियमों को और सख्त कर रहा है.