October 13, 2025

8 बार के सांसद सुरेश क्यों नहीं बन सके प्रोटेम स्पीकर? 7 टर्म वाले बीजेपी एमपी भर्तृहरि माहताब को कैसे मिला मौका?

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नई दिल्ली. 18वीं लोकसभा की कार्यवाही सोमवार से शुरू होने वाली है, हालांकि इससे पहले ही निचले सदन के प्रोटेम स्पीकर यानी अस्थायी अध्यक्ष को लेकर विवाद छिड़ गया. कांग्रेस ने इस मामले में बीजेपी पर संसदीय परंपरा को नष्ट करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस का कहना है कि उसके आठ बार के सांसद कोडिकुनिल सुरेश को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाना चाहिए था. उनकी जगह भारतीय जनता पार्टी के सांसद भर्तृहरि महताब को यह जिम्मेदारी देना गलत है.

बता दें कि संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने गुरुवार को भर्तृहरि महताब को लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने की जानकारी दी थी. इस पर कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने सवाल उठाते हुए ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘संसदीय मानदंडों को नष्ट करने की एक और कोशिश के तहत भर्तृहरि महताब (7 बार के सांसद) को कोडिकुनिल सुरेश की जगह लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. सुरेश बतौर सांसद अपने 8वें कार्यकाल में प्रवेश करेंगे.’

ऐसे में यह सवाल उठता है कि आठ बार के एमपी के. सुरेश प्रोटेम स्पीकर क्यों नहीं बन सके और उनकी जगह सात टर्म वाले बीजेपी एमपी भर्तृहरि माहताब को कैसे मौका मिला? तो चलिये जानते हैं सरकार के इस कदम के पीछे की वजह…

दरअसल प्रोटेम स्पीकर सदन का एक अस्थायी पीठासीन अधिकारी होता है, जिसे भारत के राष्ट्रपति नियुक्त करते हैं. इनकी जिम्मेदारी लोकसभा के नवनिर्वाचित सदस्यों को शपथ दिलाना और सदन के अध्यक्ष के चुनाव की अध्यक्षता करना होता है.
यहां प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति की प्रक्रिया ब्रिटेन की संसद जैसा ही है. इसे वेस्टमिंस्टर सिस्टम कहा जाता है, जिसमें कहा गया है कि प्रोटेम स्पीकर का पद उस सदस्य को दिया जाता है, जिसने संसद में सबसे लंबे समय तक लगातार सेवा की है. यह सदस्य तब तक सदन की अध्यक्षता करने का जिम्मेदार होगा, जब तक कि नए स्पीकर का चुनाव नहीं हो जाता.
उस हिसाब से देखें तो प्रोटेम स्पीकर पद के लिए के. सुरेश का पलड़ा भर्तृहरि महताब के मुकाबले भारी दिखता है, क्योंकि वह 8 बार के सांसद हैं, जबकि माहताब 7 बार सांसद बने हैं. हालांकि यहां इस मामले में एक पेंच है. दरअसल भर्तृहरि महताब ने लोकसभा सांसद के रूप में लगातार 7 कार्यकाल पूरे किए हैं, जबकि सुरेश 8 बार सांसद जरूर रहे हैं, लेकिन 1998 और 2004 में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. इसका मतलब यह है कि लोकसभा सदस्य के रूप में यह उनका केवल चौथा लगातार कार्यकाल है और इसलिए वह प्रोटेम स्पीकर पद के लिए योग्य नहीं माने गए.

इससे पहले 17वीं लोकसभा में भी इसी तरह वीरेंद्र कुमार को राष्ट्रपति ने प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया था. वह उस समय संसद के सबसे लंबे समय तक लगातार निर्वाचित सदस्य थे. उस वक्त भी मेनका गांधी सबसे वरिष्ठ सांसद थीं, लेकिन उनका कार्यकाल लगातार नहीं था और इसीलिए उन्हें प्रोटेम स्पीकर के रूप में नहीं चुना गया था.

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