कैबिनेट विस्तार के बाद भी खत्म नहीं हुआ शिवराज सरकार का सिरदर्द !

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04 जनवरी 2021,

मध्य प्रदेश उपचुनाव के करीब 53 दिनों के बाद रविवार को आखिरकार कैबिनेट का तीसरा विस्तार हो गया है, लेकिन अभी शिवराज सरकार के लिए सिरदर्द खत्म नहीं हुआ है. राज्‍यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक तुलसीराम सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत की मंत्रिमंडल में एंट्री के बाद भी कैबिनेट में चार मंत्री पद अभी भी खाली हैं. वहीं, बीजेपी के वरिष्ठ विधायक भी मंत्री बनने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर दबाव बनाए हुए थे, लेकिन मंत्रिमंडल में उन्हें जगह नहीं मिल सकी है.

दरअसल, पिछले साल मार्च में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने 22 समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था. इसी के चलते कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई थी और बीजेपी की पंद्रह माह बाद सरकार में वापसी का रास्ता खुला. इसके बाद शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बने और सरकार में सिंधिया समर्थक नेताओं का दबदबा देखने को मिला. इस तरह से शिवराज सिंह चौहान के मंत्रिमंडल में सिंधिया समर्थक कुल चौदह गैर विधायकों को मंत्री और राज्यमंत्री बनाया गया था

चौथी बार सीएम बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने पहली बार जब कैबिनेट का विस्तार किया था, तब 5 मंत्रियों ने शपथ ली थी. इसमें गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट शामिल थे, लेकिन 6 महीने के अंदर चुनाव नहीं हुए तो दोनों नेताओं को इस्तीफा देना पड़ा.

विधानसभा की 28 सीटों पर नवंबर में हुए उपचुनाव सिंधिया समर्थक नेताओं ने चुनाव लड़ा. इसमें सिंधिया खेमे को तीन मंत्री इमरती देवी, गिर्राज दंडोतिया और एंदल सिंह कंषाना चुनाव हार गए, जिसके चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. इस तरह 5 मंत्री पद खाली हो गए थे और एक मंत्री पद पहले से ही खाली था. इस तरह से कुल शिवराज कैबिनेट में कुल 6 मंत्री पद खाली थे, लेकिन रविवार को महज दो ही विधायकों को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई है.

‘बीजेपी के पुराने लोग पद के दावेदार’

तुलसी सिलावट और गोविंद सिंह राजपूत के शपथ के बाद 4 पद अभी भी खाली हैं. बीजेपी के कई पुराने लोग इन पदों पर दावेदार माने जा रहे थे. इनमें राजेंद्र शुक्ल, गिरीश गौतम, केदारनाथ शुक्ला, गौरीशंकर, बिसेन, संजय पाठक, अजय विश्नोई, जालम सिंह पटेल, सीतासरण शर्मा, रामपाल सिंह, मालिनी गौड़, रमेश मेंदोला और हरिशंकर खटीक थे, क्योंकि शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली पिछली सरकार में मंत्री रह चुके थे. सिंधिया समर्थकों के चलते इस बार इन्हें कैबिनेट में जगह नहीं मिल सकी है. शिवराज कैबिनेट में फिलहाल 11 सिंधिया समर्थक विधायक मंत्री हैं.

वहीं, मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के मीडिया कॉर्डिनेटर नरेंद्र सलूजा ने रविवार को शिवराज सरकार के मंत्रिमंडल के पुनर्गठन पर सवाल उठाते हुए कहा, ‘मध्य प्रदेश में एक मजबूत नहीं ,बल्कि असहाय और मजबूर मुख्यमंत्री कुर्सी पर विराजमान है. भाजपा की इतनी दयनीय स्थिति पहले कभी नहीं देखी? ऐसा लग रहा है कि आज बीजेपी कुछ जयचंदों व आयातित लोगों की पार्टी होकर उनके सामने गिरवी पड़ी है’.

नरेंद्र सलूजा ने कहा कि ‘जब मंत्रिमंडल में 6 पद खाली हैं, तब मंत्रिमंडल का पुनर्गठन करना और उसमें भी सिंधिया समर्थक सिर्फ दो ही मंत्रियों को शामिल करना यह बता रहा है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा भारी दबाव में है जबकि भाजपा के कई योग्य विधायक, मंत्री बनने की कतार में थे, लेकिन उनका हक मार कर दो आयातित लोगों को ही शामिल करने से यह स्पष्ट हो गया है कि भाजपा में अब ईमानदार, निष्ठावान, योग्य और टिकाऊ लोगों के लिए कोई स्थान नहीं बचा है’.

कांग्रेस पर बीजेपी का पलटवार

कांग्रेस के सवालों पर बीजेपी ने भी पलटवार किया है. मंत्री पद की शपथ लेने वाले गोविंद सिंह राजपूत ने कहा कि कांग्रेस के नेता पहले देश भर में सिमट रही अपनी पार्टी की हालत पर चिंता करें. क्योंकि, समय रहते यदि वह ज्योतिरादित्य सिंधिया की बातों पर ध्यान देते या उनको उचित सम्मान देते तो आज कांग्रेस पार्टी की यह दुर्दशा नहीं होती

बता दें कि मध्य प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में चार पद खाली पड़े हैं. इनमें से भी करीब दो मंत्री पद सिंधिया अपने करीबी विधायकों को दिलवाना चाहते हैं जबकि माना जा रहा है कि बीजेपी अपने वरिष्ठ नेताओं को यह पद देना चाहती है. सिंधिया गुट की ओर से दावा इसलिए किया जा रहा है कि क्योंकि फिलहाल जो चार पद खाली हैं, उनमें से तीन मंत्री पद सिंधिया खेमे के मंत्रियों के हार जाने की वजह से हुई है.

शिवराज सिंह चौहान के लिए अब नए और पुराने बीजेपी नेताओं के बीच संतुलन बनाना बेहद चुनौती भरा होगा. यही वजह है कि बीजेपी अपने वरिष्ठ नेताओं को रिक्त चार मंत्री पदों पर शामिल करना चाहती है. इसकी एक वजह यह भी है कि प्रदेश के निगम बोर्ड की कमान अब विभाग के मंत्रियों को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने दे दी है, जिसके चलते निगम बोर्ड में भी समायोजित करने का भी मौका नहीं रह गया है. इसीलिए शिवराज सरकार के सामने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को साधकर रखने की चुनौती है.

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