April 28, 2025

कौन होगा MP का सीएम? शिवराज सिंह चौहान फ्रंट रनर

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23 मार्च 2020, अपडेटेड ,

कोरोना के खिलाफ जारी देश की जंग के बीच मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को सियासी युद्ध में परास्त कर दिया है. कमलनाथ सरकार सत्ता से बाहर हो गई है, लेकिन अब तक बीजेपी न सरकार बना पाई है और न विधायक दल का नेता चुन पाई है. ये हालात तब हैं जब पूरा देश जानलेवा कोरोना वायरस से जूझ रहा है और मध्य प्रदेश बिना सरकार के चल रहा है.

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इंतजार कर रहे हैं. सबसे प्रबल दावेदार समझे जाने वाले शिवराज सिंह के नाम पर अभी तक पार्टी शीर्ष नेतृत्व का ग्रीन सिग्नल नहीं मिला है. इस बीच कयास ये भी लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी में मध्य प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री के लिए सिर्फ शिवराज सिंह चौहान ही एकमात्र विकल्प नहीं है.

शिवराज सिंह के नाम पर सस्पेंस क्यों?

मध्य प्रदेश की राजनीति में शिवराज सिंह चौहान सबसे पॉपुलर फेस माने जाते हैं. इसके साथ ही बीजेपी और आरएसएस काडर में भी उनका वर्चस्व है. राज्य की जनता के बीच उन्हें ‘मामाजी’ की ख्याति प्राप्त है. यानी एक मुख्यमंत्री के लिहाज से उनका चेहरा फिट माना जाता है.

दूसरी तरफ कांग्रेस की सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाने वाले कांग्रेस के 22 बागी विधायक भी बीजेपी में आ चुके हैं. इन सभी विधायकों के इस्तीफे हुए हैं, लिहाजा इनकी सीटों पर उपचुनाव भी होने हैं. दो सीटें पहले से ही खाली हैं. ऐसे में बीजेपी के लिए ये उपचुनाव बेहद महत्वपूर्ण रहने वाले हैं. बीजेपी कांग्रेस की सरकार तो गिरा चुकी है, लेकिन उसे सत्ता चलाने के लिए उपचुनाव में जीत दर्ज करनी होगी.

 चुनाव में जीत के अलावा कांग्रेस से बीजेपी के पाले में आए विधायकों को किस तरह सीटों पर फिट किया जाएगा ये भी एक चुनौती है. क्योंकि इन सभी सीटों पर बीजेपी को अपने नेताओं को भी मनाना होगा. इसके साथ ही कैबिनेट में संतुलन बनाना भी एक बड़ा टास्क होगा.

इस तमाम पेचीदगियों और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए माना जा रहा है कि बीजेपी हाईकमान शायद किसी नए चेहरे को ना उतारे और शिवराज के नाम पर ही अंतिम मुहर लगाई जाए. ऐसा इसलिए भी क्योंकि कमलनाथ से पहले शिवराज 13 साल तक सीएम रहे हैं और मंत्रियों व विधायकों से उनके रिश्ते भी अच्छे हैं. ऐसे में वो सत्ता का संतुलन बिठाने में सफलता पा सकते हैं.

हालांकि, इन सबके बीच कुछ फैक्टर शिवराज सिंह के खिलाफ जा सकते हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि दिसंबर 2018 में शिवराज सिंह के नाम पर बीजेपी जिस एमपी में सरकार नहीं बना पाई, उसी राज्य में जब नरेंद्र मोदी के नाम पर मई 2019 में चुनाव हुए तो बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला. इसके बाद कमलनाथ सरकार को आउट करने की पूरी पटकथा भी दिल्ली के नेताओं के यहां लिखी गई. यानी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का आवास मिशन एमपी सरकार का केंद्र रहा.

बीजेपी सूत्रों का ये भी कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने हमेशा शिवराज सिंह के सामने नरेंद्र सिंह तोमर को प्राथमिकता पर रखा है.

इसके अलावा एक तथ्य ये भी है कि अगर शिवराज सिंह को फिर से मुख्यमंत्री बनाया जाता है तो ये उनका चौथा कार्यकाल होगा. इस तरह शिवराज सिंह चौहान नरेंद्र मोदी के सीएम रिकॉर्ड से भी आगे निकल जाएंगे.

शिवराज नहीं तो कौन?

सवाल ये भी है कि बीजेपी हाईकमान अगर शिवराज सिंह चौहान के नाम पर मुहर नहीं लगाती है तो फिर किसे मध्य प्रदेश की कमान दी जाएगी. इस फेहरिस्त में सबसे ऊपर नरेंद्र सिंह तोमर का नाम माना जा रहा है. ऑपरेशन कमलनाथ के दौरान सभी रणनीतियां भी दिल्ली में नरेंद्र सिंह तोमर के आवास पर बनीं.

तोमर के लिए उपचुनाव सबसे बड़ा फैक्टर

कांग्रेस से बगावत कर जो विधायक बीजेपी के पाले में आए हैं वो ज्यादातर ग्वालियर-चंबल रीजन से आते हैं. कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए सीनियर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया भी इसी क्षेत्र से आते हैं. महत्वपूर्ण बात ये है कि खुद तोमर भी इसी क्षेत्र से आते हैं. ऐसे में उपचुनाव में तोमर की भूमिका काफी अहम रहेगी.

नरेंद्र सिंह तोमर के अलावा पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा का नाम भी चर्चा में है. हालांकि, मिश्रा को मास लीडर नहीं माना जाता है, लेकिन बीजेपी में वो एक ट्रबल शूटर के तौर पर पहचान रखते हैं. इसके अलावा खबर ये भी है कि जो विधायक शिवराज सिंह के नाम पर पूरी तरह सहमत नहीं हैं, ऐसे विधायकों के साथ नरोत्तम मिश्रा वक्त बिता रहे हैं.

 ऐसे में अब सबकी नजर इस बात पर है कि बीजेपी हाई कमान कब तक एमपी में सीएम का नाम फाइनल करता है. हालांकि, फिलहाल देश कोरोना से लड़ाई लड़ रहा है, लेकिन तथ्य ये भी है कि एमपी फिलहाल बिना सरकार के चल रहा है.

पीएम मोदी के फेवरेट होने के अलावा नरेंद्र सिंह का सियासी और सरकारी तजुर्बा भी खासा प्रभावशाली रहा है. तोमर मोदी सरकार के दोनों कार्यकाल में केंद्र में मंत्री बनाए गए हैं. इससे पहले वो मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. साथ ही एमपी बीजेपी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं. यानी सरकार से लेकर संगठन तक नरेंद्र सिंह तोमर का अनुभव है.

कांग्रेस के बागी विधायक दिल्ली में भाजपा में शामिल होने पहुंचे तो नरेंद्र सिंह तोमर ने ही भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा से इनका परिचय कराया. ऐसे में अगर भाजपा आलाकमान मध्यप्रदेश के संदर्भ में नरेंद्र सिंह तोमर को कोई बड़ी भूमिका दे तो आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए. नरेंद्र सिंह तोमर गृह मंत्री के भी विश्वास पात्र रहे हैं और फिलहाल मध्यप्रदेश में उनके नाम पर खास विरोध भी नहीं है.यहां तक कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को आश्वस्त करने और विश्वास दिलाने की भी जिम्मेदारी नरेंद्र सिंह तोमर ने बखूबी निभाई.

नरेंद्र सिंह तोमर ही ज्योतिरादित्य सिंधिया और पार्टी हाईकमान के बीच संपर्क सूत्र बन कर उभरे. यहां तक कि कांग्रेस के बागी विधायकों से बातचीत और उनके बेंगलुरू प्रवास व्यवस्था की देखरेख भी इन्हीं के कंधों पर थी.

नरेंद्र सिंह तोमर ‘मिशन कमल’ को गुपचुप तरीके से चलाने और ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा खेमे में लाने के बाद बड़े रणनीतिकार बनकर उभरे हैं.

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