मनमोहन सिंह का पीएचडी टॉपिक; अर्थशास्त्र का एक अहम दस्तावेज

मुख्य समाचार, राष्ट्रीय

Updated at : 27 Dec 2024

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का गुरुवार रात 9:51 बजे निधन हो गया. 92 साल के डॉ मनमोहन सिंह भारतीय राजनीति के बहुत ही महत्वपूर्ण और सम्मानित नेता थे. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का निधन भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ी क्षति है, लेकिन उनके विचार और कार्य हमेशा जीवित रहेंगे.

1960 के दशक में, जब भारतीय अर्थव्यवस्था आयात प्रतिस्थापन की नीति पर चल रही थी, डॉ. सिंह ने अपनी पीएचडी थीसिस “भारत का निर्यात प्रदर्शन, 1951–1960” के जरिये एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया. इस शोध ने न केवल भारत के निर्यात क्षेत्र की गहरी समझ दी, बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे वैश्विक व्यापार में भागीदारी से ही भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता और समृद्धि मिल सकती है. इस दस्तावेज़ ने भविष्य में भारत के आर्थिक सुधारों की नींव रखी और आज भी नीति-निर्माताओं के लिए एक मार्गदर्शक सिद्धांत बना हुआ है.

ऐसे में इस रिपोर्ट में मनमोहन सिंह के उस पीएचडी टॉपिक के बारे में जानेंगे, जो भारत की अर्थशास्त्र का एक अहम दस्तावेज माना जाता है.

1964 में भारतीय निर्यात की स्थिति पर शोध

साल 1964 में जब वह कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अपनी पीएचडी कर रहे थे, इस दौरान उन्होंने भारतीय निर्यात की स्थिति पर शोध किया. उस वक्त, दुनियाभर में ज्यादातर देश अपनी अर्थव्यवस्था को आंतरिक विकास के जरिए मजबूत करने की कोशिश कर रहे थे, जिसे “आयात प्रतिस्थापन” कहा जाता था. मगर मनमोहन सिंह ने इस विचार को चुनौती दी और खुलकर मुक्त व्यापार और निर्यात के महत्व पर जोर दिया.

उनका कहना था, “आयात का भुगतान केवल निर्यात से ही किया जा सकता है, या फिर विदेशी मुद्रा भंडार से. इसलिए, किसी देश की आयात क्षमता का मुख्य आधार उसकी निर्यात क्षमता है.” उनका यह शोध भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक नया दृष्टिकोण लेकर आया.

सिंह का मानना था कि अगर हम अपने उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा से बचाने की कोशिश करेंगे, तो यह हमें लंबे समय में नुकसान पहुंचाएगा. इसके बजाय, उन्होंने यह बताया कि देश को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिए, ताकि निर्यात बढ़े और देश की अर्थव्यवस्था स्थिर और मजबूत हो.

यह सोच बाद में 1991 में भारत के आर्थिक सुधारों का आधार बनी. जब मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री बने, तो उन्होंने भारत में आयात शुल्क कम करने, आयात लाइसेंस खत्म करने, रुपये को अवमूल्यन करने और विदेशी निवेश के लिए नियम आसान करने जैसे कई सुधार किए. इन सुधारों ने भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में मजबूती से खड़ा किया.

मनमोहन सिंह का यह शोध आज भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक अहम दस्तावेज माना जाता है. उन्होंने जो सिद्धांत उस वक्त दिए थे, वे आज भी हमारी आर्थिक नीतियों में मुख्य रूप से देखे जाते हैं. उनके विचारों ने न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को बदलने में मदद की, बल्कि दुनिया भर में उनकी सोच को सराहा गया.

डॉ मनमोहन सिंह के पीएचडी शोध में क्या था

डॉ. सिंह की पीएचडी थीसिस का शीर्षक था: “India’s Export Performance, 1951-1960: Export Prospects and Policy Implications“, जिसमें उन्होंने भारत के विभाजन के बाद आर्थिक प्रभावों का गहराई से विश्लेषण किया था. मनमोहन सिंह के पीएचडी शोध का मुख्य उद्देश्य भारत के निर्यात प्रदर्शन का विश्लेषण करना और यह समझना था कि 1951-1960 के बीच भारतीय निर्यात क्यों स्थिर था, जबकि कई अन्य देशों में निर्यात वृद्धि देखी जा रही थी. उनके शोध ने यह सवाल उठाया कि क्यों भारत का निर्यात उस समय अपेक्षाकृत धीमा था और इसे बढ़ाने के लिए कौन से नीति उपाय किए जा सकते थे.

थीसिस में सिंह ने भारत के निर्यात प्रदर्शन का विस्तृत विश्लेषण किया, विशेष रूप से कृषि और औद्योगिक उत्पादों के निर्यात की स्थिति को. उन्होंने यह पाया कि उस समय भारतीय निर्यात मुख्य रूप से कृषि उत्पादों पर निर्भर था, जैसे कि चाय, कपास, मसाले, और अन्य कच्चे माल. इसके बावजूद, निर्यात में कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ, क्योंकि निर्यात क्षेत्र में संरचनात्मक कमजोरियां थीं, जैसे कि उत्पादकता की कमी, तकनीकी उन्नति की कमी, और वैश्विक बाजारों में भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धा में कमी.

उस वक्त ज्यादातर, अधिकांश विकासशील देशों में “आयात प्रतिस्थापन” की नीति अपनाई जा रही थी, जिसमें घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए आयात पर प्रतिबंध और शुल्क बढ़ाए जाते थे. मनमोहन सिंह ने इस नीति को चुनौती दी. उन्होंने तर्क दिया कि आयात प्रतिस्थापन (import substitution) से घरेलू उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा से बचाने की कोशिश की जाती है, लेकिन इससे उत्पादकता और प्रतिस्पर्धा में गिरावट आती है, जो निर्यात को नुकसान पहुंचाता है.

निर्यात और आयात के बीच संतुलन
सिंह ने यह भी बताया किया कि किसी देश के निर्यात और आयात के बीच संतुलन बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण है. उनका मानना था कि एक मजबूत निर्यात क्षमता के बिना, कोई भी देश आयात के लिए विदेशी मुद्रा अर्जित नहीं कर सकता. उन्होंने इसे एक दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए एक जरूरी कदम बताया. उनका विचार था कि भारत को निर्यात बढ़ाने के लिए नई नीतियां और सुधारों की जरूरत है, जैसे कि व्यापार नीति का उदारीकरण और विदेशों में भारतीय उत्पादों की उपस्थिति बढ़ाना.

आर्थिक सुधारों की शुरुआत
मनमोहन सिंह की नीतियां और उनके द्वारा किए गए सुधार भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित हुए. साल 1991 में उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के साथ मिलकर भारत में आर्थिक सुधारों की शुरुआत की, जिससे देश को एक नया आर्थिक आयाम मिला.

डॉ मनमोहन सिंह को विनिवेश, वैश्वीकरण और मुक्त व्यापार के साथ-साथ एक सशक्त बाजार अर्थव्यवस्था की दिशा में मार्गदर्शन करने का श्रेय भी जाता है. उनके द्वारा प्रस्तावित सुधारों ने भारतीय उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में खड़ा किया, विदेशी निवेश आकर्षित किया और भारत को आर्थिक शक्तियों के रूप में स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया. डॉ. सिंह की आर्थिक नीतियों ने भारतीय समाज के सभी वर्ग के जीवन स्तर को सुधारने का अवसर प्रदान किया.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव
उनके शोध और विचारों का प्रभाव न केवल भारत पर पड़ा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी उन्हें एक सम्मानित अर्थशास्त्री के रूप में पहचाना गया. उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था के स्थिरता, विकास और विकासशील देशों के लिए नीति-निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके आर्थिक दृष्टिकोण ने वैश्विक संकटों के बीच भारत की आर्थिक संरचना को मजबूत किया.

डॉ मनमोहन सिंह की पीएचडी थीसिस, जो एक साधारण अकादमिक शोध थी, आज भारत के आर्थिक सुधारों का आधार बन चुकी है. मनमोहन सिंह का योगदान हमेशा याद रखा जाएगा, क्योंकि उन्होंने भारत को एक नई आर्थिक दिशा दी.

भारत के 14वें प्रधानमंत्री थे डॉ. मनमोहन सिंह
डॉ. मनमोहन सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता थे, जिन्होंने 2004 से 2014 तक भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया. उनका कार्यकाल भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण था, और वे एक शांत और विचारशील नेता के रूप में जाने जाते हैं.

1991 में, जब भारत गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा था, डॉ. सिंह ने वित्त मंत्री के रूप में कई ऐतिहासिक आर्थिक सुधारों की शुरुआत की. उन्होंने आर्थिक उदारीकरण, वैश्वीकरण और मुक्त बाजार की नीतियों को लागू किया, जिसने भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी और देश को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी बना दिया.

डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 1932 में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पंजाब विश्वविद्यालय से प्राप्त की और फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (UK) से आर्थिक विज्ञान में स्नातकोत्तर और पृष्ठभूमि में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की. उनके शोध पत्र ने भारतीय विभाजन के आर्थिक प्रभावों को विश्लेषित किया था, जो उन्हें अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एक विशेषज्ञ के रूप में स्थापित करता है.

मनमोहन सिंह को भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने का श्रेय जाता है. उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सम्मानित अर्थशास्त्री माना जाता था. उनका दृष्टिकोण और नीतियां विश्व भर में प्रेरणा का स्रोत बनीं, और उन्होंने भारत को वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान भी स्थिर बनाए रखा.

डॉ. मनमोहन सिंह का व्यक्तित्व नम्र, संयमित और विचारशील था. वे अपनी नीतियों में साफगोई, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और दीर्घकालिक योजनाओं के लिए प्रसिद्ध थे. उनकी नेतृत्व शैली में टीमवर्क और परामर्श का महत्व था, और वे अपने कार्यों को एक समग्र दृष्टिकोण से देखते थे.

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