गांवों में 2023 तक 500 सिनेमा हॉल खोलने की तैयारी में क्यों है सरकार ?

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Updated at : 07 Dec 2022

साल 2023 में भारत के ग्रामीण इलाके के लोग अपने गांव में ही सिनेमा का आनंद ले पाएंगे. सरकार ने इस दिशा में कदम आगे बढ़ाया. आने वाले साल में गांवों में सरकार सीएससी के जरिए सिनेमा हॉल खोलने जा रही है. ये केवल सिनेमा हॉल नहीं बल्कि गांवों में छोटे कारोबारियों को प्रोत्साहित करने का एक तरीका भी है. इस तरह से देश की सरकार एक पंथ दो काज करने वाली कहावत को अमलीजामा पहना रही है.

कॉमन सर्विस सेंटर -सीएससी (Common Service Centre -CSC) ने सोमवार को ऐलान किया है कि मार्च 2023 तक वो गांवों में 500 सिनेमा हॉल खोलने जा रहा है. भारत की सीएससी ई गवर्नेंस सर्विस ने इसके लिए अक्टूबर सिनेमाज (October Cinemas) के साथ एक समझौता पत्र पर साइन किए हैं. इसका मकसद ग्रामीण इलाकों में एक लाख स्मॉल मूवी थियेटर खोलने का है. ये सिनेमा हॉल वहां केवल मनोरंजन के लिए ही नहीं खोले जा रहे बल्कि इसका मकसद गांवों की अर्थव्यवस्था में रफ्तार लाना भी है.

100 से 200 लोग ले पाएंगे सिनेमा का लुत्फ

साल 2023 के आखिर तक भारत में 1500 सिनेमा हॉल काम करेंगे. इसमें 100 से 200 लोगों के बैठने की क्षमता होगी. ये गांवों में सीएससी की गतिविधियों के लिए हब के तौर पर काम करेंगे. इस नई पहल को लेकर सीएससी के मैनेजिंग डायरेक्टरसंजय कुमार राकेश ने कहा,“गांवों में सिनेमा हॉल खोलने का विचार अभी भी नया है. इसका मकसद  100 सीटों की क्षमता वाले छोटे सिनेमा हॉल खोलने का है. सीएससी सिनेमा हॉल्स हमारे गांवों के कारोबारियों यानी वीएलई  (village-level entrepreneurs-VLEs) के लिए नए रास्ते खोलेंगे.”

उनका कहना है कि मनोरंजन सेक्टर भारत में फल-फूल रहा है और हमारे  वीएलई ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में इसके पनपने में मदद करेंगे. सीएससी सिनेमा हॉल एक कमर्शियल हब की तरह काम करेंगे और ग्रामीण इलाकों में लोगों के लिए  हमारी सर्विस को और अधिक सुलभ बना देंगे.”

अक्टूबर सिनेमाज के मैनेजिंग डायरेक्टरपुनीत देसाई ने कहा, “हम सुदूर इलाकों में गांव वालों के मनोरंजन के लिए सीएससी ग्रामीण सिनेमा खोल रहे हैं. मूवीज की खपत के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा एंटरटेनमेंट मॉर्केट है. हमारे कारोबार में  फिल्मों की पायरेसी को काबू करने की खासियत होगी. हम सीएससी चलाने वाले वीएलई को सभी हार्ड और सॉफ्टवेयर मुहैया कराएंगे.”

इसमें निवेश की मांग को लेकर उन्होंने कहा,  इस तरह के सभी सिनेमा हॉल चलाने के लिए 15  लाख रुपये की जरूरत होती है जिनके पास वीडियो पार्लर सिनेमा लाइसेंस होगा. हमें पहले ही 500 वीएलई की तरफ से इसके लिए अनुरोध आ चुके हैं. हम साल 2024 के आखिर तक ग्रामीण इलाकों में लगभग 10 हजार सिनेमा हॉल चलाने की उम्मीद करते हैं.

सीएससी करती है खास काम

दरअसल  इलेक्ट्रॉनिक और इंफोर्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय सुदूर गांवों में सरकारी सेवाएं की पहुंच के लिए सीएससी बनाया था. इस तरह से सीएससी खास कामों को अंजाम (SPV)  देने वाली सरकारी कंपनी की तरह काम करती है. यहां पर लोगों को सरकार की कई योजनाओं में रजिस्ट्रेशन की सुविधा दी जाती है. इसमें पासपोर्ट, बैंकिंग, रेलवे, बस और हवाई टिकट बुक कराने जैसी सुविधाएं लोगों को दी जाती हैं.

मोदी सरकार की स्क्रीन और फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने की पहल

गौरतलब है कि साल 2019 में मोदी सरकार ने देश में  स्क्रीन और फिल्म उद्योग को बढ़ावा देने की योजना की बात की थी. फिल्म उद्योग भारत की सॉफ्ट पावर का अहम हिस्सा है. ये रोजगार के अवसर देने के साथ अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में भी खास योगदान देता है. उस वक्त देश भर में सिनेमा स्क्रीन की घटती संख्या ने भारतीय फिल्म उद्योग के विकास पर काफी बुरा असर डाला था.

इसे देखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार ने राज्यों से मल्टीप्लेक्स और सिनेमा हॉल की मंजूरी के लिए जटिल नियमों और प्रक्रियाओं को संशोधित करने और आसान बनाने के लिए कहा था. दरअसल दिसंबर 2018 में प्रधानमंत्री मोदी ने फिल्म उद्योग प्रतिनिधिमंडल के साथ इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के तरीकों पर चर्चा की थी.

इसके बाद सूचना और प्रसारण (I&B) मंत्रालय ने यह कदम उठाया था. इसके तहत  मूवी टिकटों पर जीएसटी में कमी, भारतीय लोकेशन में शूटिंग के लिए बगैर परेशानी के मंजूरी देने के लिए एक फिल्म पोर्टल बनाने और सिनेमैटोग्राफ अधिनियम का प्रस्तावित संशोधन शामिल रहा था. इसे सरकार ने 2019 में राज्यसभा में पेश किया था. इसमे फिल्मों की चोरी यानी पायरेसी के लिए सबसे अधिक जुर्माना लगाने की बात भी की गई थी.

शोबिज क्यों मायने रखता है?

घरेलू फिल्म उद्योग भारत की सॉफ्ट पावर का एक महत्वपूर्ण अंग है.डेलॉइट (Deloitte) की 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत का सिनेमा क्षेत्र लगभग 2,00,000 लोगों को रोजगार देता है. साल 2019 में अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने सिंगल विंडो क्लीयरेंस का आश्वासन दिया था. उन्होंने तब कहा था कि सरकार रोजगार देने के महत्वपूर्ण क्षमता की वजह से फिल्म उद्योग को बढ़ावा देना चाहती है.

फिल्म सेक्टर एक साल में लगभग 2,000 फिल्में बनाता है. ये मीडिया और मनोरंजन कारोबार रोजगार के अवसर देने के साथ ही अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता है. इस हिसाब से देखा जाए तो भारत की आबादी को देखते हुए स्क्रीन की संख्या कम है.  एफआईसीसीआई (FICCI) के बजट-पूर्व ज्ञापन 2019-20 में यह भी कहा गया था कि अमेरिका और चीन जैसे विकसित बाजारों के मुकाबले भारत में स्क्रीन के पांचवें हिस्से से भी कम होने की वजह से फिल्म उद्योग की क्षमता काफी हद तक इस्तेमाल में नहीं आ पाती.

राज्यों को जारी हुआ था फरमान

साल 2019 में सिंगल-विंडो क्लीयरेंस और स्क्रीन की अपर्याप्त संख्या का मुद्दा तत्कालीन आई एंड बी सचिव अमित खरे ने एक पत्र के जरिए राज्यों के ध्यान में लाया गया था. खरे ने लिखा, “भारतीय फिल्म उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता सिंगल स्क्रीन थिएटरों की संख्या में कमी है, खासकर टियर-2, टियर-3 शहरों में.” उन्होंने आगे कहा था इस ट्रेंड ने बीते कुछ साल में भारत के फिल्म सेक्टर के विकास में रुकावट डाली है.“

उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक अधिकांश फिल्म निर्माता देशों के मुकाबले भारत में प्रति मिलियन जनसंख्या पर स्क्रीन घनत्व बेहद कम है. 2016 के आखिर में समान आकार की आबादी के लिए भारत की 8,500 स्क्रीन की तुलना में  चीन में लगभग 35,000 से अधिक स्क्रीन थीं. नए सिनेमा और मल्टीप्लेक्स खोलने के लिए बड़ी संख्या में मंजूरी की आवश्यकता होती है.

तब खरे ने राज्यों से दशकों पुराने नियमों- दिशानिर्देशों की समीक्षा करने और नए सिनेमा और मल्टीप्लेक्स खोलने के लिए बड़ी संख्या में मंजूरी की जरूरत होती है. उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि स्क्रीन की संख्या बढ़ने से राजस्व में बढ़ोतरी हो सकती है. रोजगार सृजित हो सकते है और उद्योग में अच्छा खासा निवेश आकर्षित हो सकता है.

खरे ने कहा था, वर्तमान में, सिनेमा हॉल खोलने की मंजूरी लेने के लिए शहरी स्थानीय निकायों, सड़कों और इमारतों, बिजली, आग, स्वास्थ्य, पुलिस और कलेक्टरों जैसे कई अधिकारियों से सलाह लेनी पड़ती है. उन्होंने सुझाव दिया कि राज्य के संबंधित विभागों को शामिल करते हुए एक फिल्म सेल खोला जाए.

उन्होंने कहा था कि इसे हासिल करने के लिए ऑनलाइन सिंगल विंडो पॉलिसी होनी चाहिए. नोडल अधिकारी या किसी अन्य उपयुक्त अधिकारी के तौर पर जिला मजिस्ट्रेट को 30 दिनों के अंदर नए थिएटरों और मिनी थिएटरों को खोलने के लिए नए आवेदनों को प्रोसेस और अप्रूवल देना होगा और लाइसेंस जारी करना होगा.

Published at : 07 Dec 2022 05:27 

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