Independence Day 2021: जानिए Madhya Pradesh में कहां हुई थी वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर हुए हमले की रिहर्सल

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जबलपुर. 15 अगस्त 1947 को मिली आजादी सिर्फ चंद क्रांतिकारियों की देन नहीं, बल्कि उन हजारों शूरवीरों के भी बलिदान का परिणाम है, जिन्हें शायद हम जानते भी नहीं. उन्हीं अनसंग हीरोज की एक छोटी सी कहानी का संबंध प्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से भी है. इस संबंध की कहानी पर हैरानी होती है. क्योंकि, 23 दिसंबर 1912 को नई दिल्ली में ब्रिटिश सरकार के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर हुए आत्मघाती हमले की रिहर्सल शहर की मदन महल पहाड़ियों में की गई थी.

इतिहासकार बताते हैं कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दमन के बाद भी क्रांतिकारियों का विद्रोह अंग्रेजो के खिलाफ दबा नहीं था. अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक क्रांतिकारी दल विदेशों में बैठकर रणनीति बना रहा था, जबकि, दूसरा दल कोलकाता में बैठकर उनके खिलाफ जंग छेड़े हुआ था. इस दल को हम अनुशीलन दल के नाम से भी जानते हैं. इसी दल के महान क्रांतिकारी रासबिहारी बोस 1911 में जबलपुर पहुंचे. उन्होंने यहां क्रांतिकारी चिदंबरम से मुलाकात की. उन्हें अपनी योजना के बारे में बताया. यह योजना थी 1912 में ब्रिटिश सरकार के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर आत्मघाती हमले की.

शहर में बन रही थी अंग्रेजों को भगाने की योजनाएं

शहर में अंग्रेजों को देश छोड़ने पर मजबूर करने के लिए अलग-अलग स्तर पर योजनाएं बन रही थीं. क्रांतिकारियों के क्षेत्र में रुकने या उनके साथियों को रखने के लिए जबलपुर एक सुरक्षित क्षेत्र था. यही वजह है कि देश में घटे कई ऐसे घटनाक्रमों कि न सिर्फ रूपरेखा बल्कि उन्हें अंजाम देने तक की योजना जबलपुर में बनी. गौरतलब है कि, कामागाटामारू नामक जहाज से क्रांतिकारियों के लिए हथियार लाए गए थे. ये हथियार क्रांतिकारी चिदंबरम पिल्लयी की मदद से लाए गए थे. इन हथियारों को मदन महल की पहाड़ियों में छुपाया गया था. साथ ही, शहर के कुछ नव युवकों को शस्त्र चलाने की शिक्षा भी दी गई थी.

यहां हुआ था वायसराय पर हमला

वायसराय लॉर्ड हार्डिंग ब्रिटिश भारत की राजधानी बदलने पर कोलकाता से नई दिल्ली आए थे. तब 23 दिसंबर 1912 को चांदनी चौक में एक जुलूस के दौरान बम फेंककर वायसराय की हत्या का प्रयास किया गया था. इसमें लॉर्ड हार्डिंग घायल हुए थे और उनके महावत की मृत्यु हो गई थी. ये हमला रासबिहारी बोस के निर्देश में हुआ था. इस हमले के आरोप में बसंत कुमार विश्वास, बालमुकुंद अवध बिहारी एवं मास्टर अमीरचंद को फांसी की सजा दी गई थी. जबकि, रास बिहारी बोस गिरफ्तारी से बचने के लिए जापान चले गए थे.

 

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