November 19, 2025

पहलगाम हमला: चीन के बाद अमेरिका ने भी भारत को दिया धोखा? चुपके-चुपके डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के साथ कर ली बड़ी ‘डील’

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Pahalgam attack and UN resolution: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 हिंदू पर्यटकों के नरसंहार के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच जंग जैसे हालात बन गए हैं. भारत ने स्पष्ट तौर पर कह दिया है कि वह किसी भी कीमत पर इस हमले के गुनहगारों और साजिशकर्ताओं को सजा देकर ही रहेगा. भारत की इस प्रतिज्ञा के बाद दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है. तमाम देशों ने भारत के कार्रवाई करने के अधिकार का समर्थन किया है. लेकिन, दुनिया की दो बड़ी शक्तियों चीन और अमेरिका का रुख स्पष्ट नहीं है. भारत की धरती पर हुए इस हमले के बाद इन दोनों ने इसकी कड़ी निंदा की थी. चीन ने कहा था कि वह किसी भी तरह के आतंकवाद की कड़ी निंदा करता है. अमेरिका ने भी इसकी निंदा की थी. लेकिन, चंद दिनों के भीतर ही इनके रुख बदलने लगे. रविवार को चीन ने पाकिस्तान की ओर से इस हमले की कथित तौर पर स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग का समर्थन कर दिया. वहीं, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने एक बयान में कहा कि भारत और पाकिस्तान दोनों उसके अच्छे दोस्त हैं. उनके इस बयान से ही संशय की स्थिति पैदा हो गई थी.

अब एक और खबर आ रही है. इकोनॉमिक्स टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दिनों अमेरिका ने पहलगाम हमले के बाद भारत की एक बड़ी मुहिम को पटरी से उतार दिया है. दरअसल, पहलगाम हमले की जिम्मेदारी द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) नामक एक आतंकवादी संगठन ने ली है. यह लश्कर ए तैयबा का सहयोगी संगठन है. भारत की पहल पर पहलगाम हमले की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने निंदा की. इसके लिए तैयार प्रस्ताव में द रेसिस्टेंस फ्रंट का नाम था. लेकिन, पाकिस्तानी डिप्लोमेटों ने अमेरिका के साथ जमकर सौदेबाजी की और अंतिम प्रस्ताव से इस आतंकवादी संगठन का नाम हटवा दिया.

चीन का भी मिला पूरा समर्थन
पाकिस्तान की इस मुहिम में उसे चीन का पूरा समर्थन मिला. माना जा रहा है कि पाकिस्तानी डिप्लोमेट अमेरिका को यह समझाने में कामयाब हो गए कि पहलगाम हमले से द रेसिस्टेंस फोर्स को जोड़ने के पीछे कोई पुख्ता सबूत नहीं है. इसी के साथ पाकिस्तान ने इस आतंकवादी हमले की कथित स्वतंत्र जांच की मांग उठा दी. रोचक बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा शुक्रवार को इस बारे में प्रस्ताव पारित करने के कुछ ही घंटों के भीतर टीआरएफ भी अपने दावे से मुकर गया. उसने पहले के दावे को एक अनऑथराइज मैसेज करार दिया, जिसे साइबर अटैकर्स ने अंजाम दिया होगा. इसके बाद टीआरएफ ने पाकिस्तान सरकार की हां में हां मिलते हुए कहा कि पहलगाम की घटना भारत सरकार का पाकिस्तान के बारे में झूठ फैलाने का हिस्सा है.

टीआरएफ का नाम हटाया
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि प्रस्ताव के मसौदे में यह लिखा गया था कि पहलगाम हमले की जिम्मेदारी टीआरएफ नामक संगठन ने ली है. लेकिन पास हुए प्रस्ताव से उसका नाम हटा दिया गया था. इससे पहले 2019 में पुलवामा में हुए सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकवादी हमले के बाद भी यूएन से इसी तरह का एक प्रस्ताव पारित हुआ था. उसमें कहा गया था कि इस आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी जैश ए मोहम्मद नामक आतंकवादी संगठन ने ली है.

इतना ही नहीं बीते दिनों पाकिस्तान के बलोचिस्तान प्रांत में ट्रेन की हाईजैकिंग की घटना पर भी 14 मार्च को सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पारित किया था. उसमें भी घटना के लिए ‘बलोचिस्तान लिबरेशन आर्मी’ का नाम लिखा गया था. लेकिन, भारत के पहलगाम में हुए हमले को लेकर पारित प्रस्ताव में आतंकी संगठन तो छोड़िये जगह का नाम भी नहीं है.

फिर पाकिस्तान ने कौन सी डील की
अब सवाल उठता है कि पाकिस्तान ने ऐसा कौन सा गुल खिलाया जिससे अमेरिका ने प्रस्ताव में नाम हटवा दिया. उसने इस प्रस्ताव में ‘विवादित’ शब्द जुड़वा दिया. माना जा रहा है कि यह शब्द जम्मू-कश्मीर के लिए इस्तेमाल किया गया है. भारत जम्मू-कश्मीर के लिए विवादित शब्द लिखने का कड़ा विरोध करते रहा है. जानकारों का कहना है कि इस वक्त पाकिस्तान सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है. सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी सदस्यों को साथ 10 अस्थायी सदस्य होते हैं जिनका कार्यकाल दो वर्ष के लिए होता है. उसने अपनी इसी मौजूदगी का फायदा उठाते हुए अमेरिकी डिप्लोमेट्स के साथ सीधे तौर डील की. जबकि सुरक्षा परिषद में भारत को अपनी बात रखने के लिए अमेरिका और अन्य सदस्यों पर निर्भर रहना पड़ा था.

 

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