रूस-यूक्रेन के झगड़े में भारत का दांव , 5 प्वाइंट्स में जानिए क्या है विवाद

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नई दिल्ली. रूस और यूक्रेन (Russia and Ukraine) के बीच सैन्य संघर्ष की आशंका बढ़ रही है. इसके साथ ही भारत में भी तनाव बढ़ता जा रहा है. संभवत: इसीलिए सोमवार, 31 जनवरी को भारत की ओर से इस समस्या पर अधिकृत बयान जारी किया गया. संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations) में भारत के राजदूत (Indian Ambassador) टीएस तिरुमूर्ति (TS Tirumurti) ने कहा, ‘भारत की रुचि इस समस्या का समाधान तलाशने में है. ऐसा समाधान, जो सामरिक तनाव (Between Russia and Ukraine) को तुरंत कम करता हो. साथ ही, सभी देशों के सुरक्षा हितों की वैधानिकता को स्थापित करता हो. क्षेत्र में और उसके परे भी शांति और स्थिरता सुनिश्चित करता हो. इसलिए दोनों पक्षों को राजनयिक और रचनात्मक बातचीत के जरिए इस मसले को सुलझाना चाहिए.’

इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र (United Nations) में अमेरिका (US) की अगुआई में 10 देशों ने एक प्रस्ताव पेश किया था. इसमें कहा गया था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Councel) की विशेष बैठक बुलाकर उसमें रूस और यूक्रेन के बीच सैन्य तनाव के मसले पर बातचीत करनी चाहिए. भारत ने इस प्रस्ताव पर भी वोट नहीं दिया. बल्कि उसने वोटिंग के दौरान अनुपस्थित रहने को प्राथमिकता दी. इस मतदान के बाद फिर दोहराया कि रूस और यूक्रेन (Russia and Ukraine) के बीच तनाव खत्म का बेहतर जरिया रचनात्मक राजनयिक बातचीत ही है. ऐसे में, यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर रूस और यूक्रेन के बीच सैन्य संघर्ष छिड़ जाने की आशंका क्यों है? इससे भारत में बेचैनी क्यों है? इसमें उसका क्या दांव पर लगा है? उसके क्या हित हैं? यहां इन्हीं सवालों के जवाब जानने की थोड़ी कोशिश करते हैं.

विवाद की जड़ क्या है?
यूक्रेन एक जमाने में रूसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था. फिर सोवियत संघ (USSR) बना, तब भी वह उसमें शामिल रहा. लेकिन यूएसएसआर (USSR) के विघटन के बाद यूक्रेन ने 1991 में खुद को आजाद देश घोषित कर दिया. इसके बाद उसने रूस के बजाय अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों से रिश्ते मजबूत किए. इससे खफा रूस लगाताार यूक्रेन में विद्रोह को हवा और समर्थन देता रहा है. वह यूक्रेन को वापस हासिल करने की कोशिश में है. बल्कि वह यूक्रेन के एक शहर ‘क्रीमिया’ पर कब्जा कर उसे अपना हिस्सा बना भी चुका है. इस वक्त विवाद ये है कि यूक्रेन को अमेरिका और उसके सहयोगी देश अपने सैन्य गठजोड़- उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) में शामिल करने की तैयारी कर रहे हैं. ताकि रूस पर उसके जरिए दबाव बनाया जा सके. वहीं यूक्रेन में नाटो की सेनाओं की मौजूदगी या सैन्य अभ्यास आदि का रूस विरोध कर रहा है.

भारत के लिए रूस कितना अहम?
जाना-माना तथ्य है कि भारत और रूस (India-Russia) के बीच दशकों से सामरिक और राजनयिक साझेदारी है. भारत को हथियारों की आपूर्ति करने वाले देशों में रूस अग्रणी है. ‘स्टिम्सन सेंटर’ के अध्ययन के मुताबिक, भारत की तीनों सेनाएं अभी जितने हथियारों और सैन्य उपकरणों का इस्तेमाल कर रही हैं, उनमें से 86% रूस से आयातित हैं. भारत ने 2014 के बाद से जितने भी सैन्य साजो-सामान का आयात किया, उसमें से 55% रूस से आया है. अभी भारत को अत्याधुनिक एस-400 मिसाइल प्रणाली (S-400 Missile system) की आपूर्ति भी रूस की तरफ से हो रही है, जो भारत को इस मामले में अग्रिम पंक्ति में लाकर खड़ा करेगी. भारत की अग्रणी मिसाइल ‘ब्रह्मोस’ (Brahmos) भी मूल रूप से रूस से आयातित है. इसकी तकनीक भी रूस ने भारत को दी है. साथ ही, इसके निर्माण में भी वह भारत का साझीदार है. भारत ने अपने इतिहास में पहली बार जिस सैन्य साजो-सामान के निर्यात का ऑर्डर हासिल किया, वह ये ब्रह्मोस मिसाइल (Brahmos Missile) ही है. इसे भारत अब फिलीपींस (Philippines) को निर्यात करने वाला है.

यही नहीं, रूस अहम मौकों पर अंतरराष्ट्रीय मसलों पर भी भारत का लगातार साथ देता रहा है. जैसे- भारत और चीन के बीच सीमा विवाद सुलझाने के लिए वह लगातार भारतीय पक्ष को मदद दे रहा है. चीन पर दबाव का इस्तेमाल उसे आक्रामक कदम उठाने से रोक रहा है. इसी तरह अफगानिस्तान में भी कट्‌टरपंथी संगठन- तालिबान (Taliban) का शासन आने के बाद भी रूस लगातार भारतीय हितों की सुरक्षा सुनिश्चित कर रहा है. जैसे- पिछले साल नवंबर में रूस की मदद से ही भारत एक सम्मेलन अफगानिस्तान में आयोजित कर सका था.

इसके अलावा एक और बात ध्यान रखने की है कि फरवरी में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Councel) की अध्यक्षता रूस के हाथ में आ रही है. यानी अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने रूस-यूक्रेन (Russia-Ukraine) मसले पर विचार के लिए जो प्रस्ताव पारित कराया है, उस पर विमर्श रूस की अध्यक्षता में होने वाला है.

यूक्रेन कहां-कितना मायने रखता है भारत के लिए?
भारत के रूस की तरह यूक्रेन भी मायने रखता है. भारत से उसके सामरिक और राजनयिक संबंध तो हैं ही, बड़ी संख्या में भारतीय छात्र-छात्राएं भी पढ़ने के लिए यूक्रेन जाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक इस वक्त करीब 20,000 भारतीय विद्यार्थी यूक्रेन में हैं. इनमें से अधिकांश सीमावर्ती इलाकों में रह रहे हैं, जहां रूस और यूक्रेन की सेनाएं आमने-सामने खड़ी हैं. वहां भारतीय समुदाय के लोगों की आबादी भी लगातार बढ़ रही है. इतना ही नहीं, भारतीय विदेश मंत्रालय के मुताबिक यूक्रेन ने फरवरी 1993 में एशिया में सबसे पहले जिस देश में दूतावास खोला, वह भारत था. इसके बाद से लगातार भारत और यूक्रेन के बीच कारोबारी, सामरिक और राजनयिक संबंध मजबूत हुए हैं.

भारत की दिक्कत किस तरह की है?
रूस और यूक्रेन विवाद में भारत के लिए हालात ‘एक तरफ कुआं दूसरी ओर खाई’ वाली है. भारत न तो रूस का साथ दे सकता है और न उससे किनारा कर सकता है. रूस का साथ दिया तो अमेरिका की नाराजगी का डर है, जिसके साथ बीते 10-15 सालों में भारत ने अपने सामरिक और राजनयिक संबंध अधिक घनिष्ठ किए हैं. चीन के साथ मुकाबले के लिहाज से भी अमेरिका की मदद और उसके ऑस्ट्रेलिया जैसे सहयोगियों की रणनीतिक जमावट भारत के लिए काफी मायने रखती है. भारत इसी तरह, यूक्रेन का भी साथ नहीं दे सकता. क्योंकि ऐसा करने पर रूस की नाराजगी का डर और वह खुलकर चीन के साथ खड़ा हो जाएगा. चीन और रूस के संबंध सामरिक, राजनयिक से आगे साम्यवादी विचारधारा (Communism) के स्तर पर भी हैं.

तो फिर भारत के सामने रास्ता क्या है?
तटस्थता. भारत ने अभी यही विकल्प चुना है, जो उसके लिए सर्वश्रेष्ठ है. साथ ही, वह अमेरिका, रूस और यूक्रेन के बीच सुलह के लिए बातचीत शुरू कराने की कोशिश भी कर सकता है. खबरें हैं कि इस तरह की कोशिशें शुरू भी हो चुकी हैं.

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