COVID वैक्सीनेशन के लिए बाध्य नहीं कर सकती सरकार : सुप्रीम कोर्ट

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Updated: 2 मई, 2022,

नई दिल्ली : कोविड वैक्सीन को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से बड़ा फैसला आया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी को भी वैक्सीनेशन के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है. लेकिन सरकार नीति बना सकती है और बड़े सार्वजनिक अच्छे और स्वास्थ्य के लिए कुछ शर्तें लगा सकती है. सरकार शारीरिक स्वायत्तता के क्षेत्रों में नियम बना सकती है.  वर्तमान वैक्सीनेशन नीति को अनुचित नहीं कहा जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि यह अदालत संतुष्ट है कि वर्तमान वैक्सीन नीति को स्पष्ट रूप से मनमानी नहीं कही जा सकती. शारीरिक स्वायत्तता जीने के मौलिक अधिकार के तहत आती है. अदालत के पास वैज्ञानिक सबूतों पर फैसला करने की विशेषज्ञता नहीं है. अगर कोई स्पष्ट मनमानी हो तो अदालत फैसला दे सकती है.

जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि वैक्सीन को लेकर अदालत दखल देने को इच्छुक नहीं है. एक्सपर्ट की राय पर सरकार द्वारा लिए गए नीतिगत फैसले में न्यायिक समीक्षा का दायरा सीमित है. कोर्ट ने कहा कि लोगों के लिए वैक्सीन जनादेश के माध्यम से लगाए प्रतिबंध आनुपातिक नहीं हैं.  जब तक कोविड की संख्या कम है, तब तक सार्वजनिक क्षेत्रों में वैक्सीन ना लगाने वाले लोगों पर प्रतिबंध ना लगाया जाए. अगर ऐसा कोई आदेश है तो वापस लिया जाए. हमारा सुझाव उचित व्यवहार नियमों को लागू करने के लिए लागू नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकारों ने यह साबित करने के लिए कोई डेटा नहीं रखा कि टीका लगाने वाले व्यक्ति की तुलना में असंबद्ध व्यक्ति वायरस फैलाता है. हम याचिकाकर्ता से सहमत नहीं हैं कि वर्तमान टीकों पर प्रासंगिक डेटा सरकार द्वारा उपलब्ध नहीं कराया गया है. और अब क्लीनिकल ट्रायल पर सभी प्रासंगिक डेटा सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कराया जाए. भारत सरकार प्रतिकूल घटनाओं पर डेटा उपलब्ध कराए. बच्चों के लिए स्वीकृत टीकों पर प्रासंगिक डेटा भी सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध होना चाहिए. कोविड वैक्सीन संबंधी क्लीनिकल ट्रायल और प्रतिकूल घटनाओं का केंद्र डेटा पब्लिक करे.

दरअसल राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह टीकाकरण ( NTAGI) के पूर्व सदस्य डॉ जैकब पुलियल ने सुप्रीम कोर्ट में वैक्सीन को अनिवार्य बनाने के खिलाफ और क्लीनिकल डेटा सार्वजनिक करने की मांग की याचिका दाखिल की है . साथ ही दिल्ली, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के कोविड वैक्सीन अनिवार्य करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में  अर्जी दाखिल है. याचिका में कहा गया कि केंद्र का कहना है कि वैक्सीनेशन स्वैच्छिक है लेकिन राज्यों ने इसे कुछ उद्देश्यों के लिए अनिवार्य कर दिया है . वैक्सीन जनादेश को असंवैधानिक घोषित करने के निर्देश जारी करें.

केंद्र सरकार की इस दलील को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता जैकब पुलियल ने कहा है कि केंद्र सरकार भले ये कह रही है कि टीकाकरण ऐच्छिक है अनिवार्य नहीं,  लेकिन दिल्ली, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में तो उसे अनिवार्य ही बना दिया गया है. जैकब की याचिका में मांग की गई है कि सरकार कोविड 19 के टीकों के क्लिनिकल ट्रायल की रिपोर्ट और उनकी क्षमता के आंकड़े सार्वजनिक करे.  ताकि आम जनता को सब कुछ पता चल सके.

जैकब की इस याचिका में पैरवी करते हुए उनके वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि जब केंद्र सरकार कई मौकों पर, बयानों और आरटीआई के जवाब में कह चुकी है कि टीकाकरण अनिवार्य नहीं ऐच्छिक है तो कई राज्यों में दुकान खोलने, दुकान या प्रतिष्ठान में दाखिल होने, वहां काम करने वाले कर्मचारियों और लोगों के प्रवेश, सड़कों पर चलने, किसी शैक्षिक संस्थान में दाखिल होने जैसे अवसरों पर टीकाकरण प्रमाणपत्र मांगे जाते हैं? याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार के पिछले साल 8 अक्तूबर , मध्य प्रदेश में 8 नवंबर, महाराष्ट्र में 27 नवंबर और तमिलनाडु में 18 नवंबर को जारी हुए सर्कुलर और उसमें साफ साफ लिखे दिशा निर्देश का भी हवाला दिया है जिसमें टीकाकरण की अनिवार्यता वाली पाबंदियां लगाई गई हैं.

वहीं कोरोना वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल के आंकडे देने और वैक्सीन के लिए मजबूर ना करने की याचिका का केंद्र सरकार ने विरोध किया था. सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने कहा था कि कुछ लोगों के निहित स्वार्थ के लिए दाखिल ऐसी याचिकाओं से टीकाकरण प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है. यहां तक कि कोर्ट की कोई मौखिक टिप्पणी भी नुकसानदेह हो सकती है.

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि 24 नवम्बर 2021 तक कोरोना के टीके की एक अरब 19 करोड़ 38 लाख 44 हजार 741 खुराकें दी जा चुकी हैं. इनमें से adverse event following immunisation यानी AEFI के 2116 मामले अब तक दर्ज किए गए हैं.   495 (463 कोविशील्ड और 32 कोवैक्सिन) के लिए तेजी से समीक्षा और विश्लेषण की एक रिपोर्ट पूरी हुई है . 1356 मामलों (1236 कोविशील्ड, 118 कोवैक्सिन और 2 स्पुतनिक) की एक और रिपोर्ट गंभीर AEFI मामलों (पहले से विश्लेषण किए गए 495 मामलों सहित) को NEGVAC को प्रस्तुत किया गया है.

शेष मामलों की त्वरित समीक्षा और विश्लेषण चल रहा है और जल्द ही इसे पूरा कर लिया जाएगा. वही केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि इस याचिका पर सुनवाई ना हो. इससे वैक्सीन के लिए हिचकिचाहट बढ़ सकती है. देश बड़ी मुश्किल से इससे बाहर आया है.

जस्टिस नागेश्वर राव ने कहा था कि इसीलिए हमने कहा कि आपके पास कुछ विशिष्ट तथ्य हों तो उस पर सुनवाई की जाए.  हम भी नही चाहेंगे कि टीकाकरण को लेकर कोई समस्या आए. फिर भी हमारे सामने ठोस तथ्यों के साथ अगर कोई मामला आए तो हमें उसको सुनना होगा.  सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि कई राज्य है जिन्होंने टीकाकरण न कराने वालों पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे है .

दरअसल 9 अगस्त 2021 को लोगों को  वैक्सीन लगाने के लिए विवश ना करने और ट्रायल डेटा सार्वजनिक करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था.  हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीन लगाने के लिए विवश करने पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार किया था .  जस्टिस एल नागेश्वर रॉव ने कहा था कि देश में 50 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है. आप क्या चाहते हैं कि वैक्सीनेशन कार्यक्रम को बंद कर दिया जाए. देश में पहले ही वैक्सीन हेसिसटेंसी चल रही है. WHO ने भी कहा है कि वैक्सीन हेसिसटेंसी ने बहुत नुकसान किया है. क्या आपको लगता है कि यह बड़े जनहित में है. जब तक हम नहीं पाते कि निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा कुछ गंभीर रूप से गलत किया गया है.

हम वैक्सीन हैसिसटेंसी से लड़ रहे हैं तो ऐसी याचिकाएं लोगों के मन में संदेह पैदा नहीं कर रही हैं.  हमें कुछ आशंका है कि एक बार जब हम इस याचिका पर विचार करते हैं तो यह संकेत नहीं देना चाहिए कि हम वैक्सीन हिचकिचाहट को बढ़ावा दे रहे हैं. वैक्सीन की अनिवार्यता पर भी अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट समेत कई विदेशी अदालतों के आदेश हैं . आप इस तरह पब्लिक हेल्थ के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते. 100 साल में हमने ऐसी महामारी नहीं देखी, इसलिए इमरजेंसी में वैक्सीन को लेकर संतुलन बनाना जरूरी है .

याचिकाकर्ता की ओर से प्रशांत भूषण ने कहा था कि सीरो रिपोर्ट के मुताबिक 2/3 लोग कोविड संक्रमित हो चुके हैं. ऐसे में कोरोना की वैक्सीन से एंटी बॉडी ज्यादा कारगर है . अब पॉलिसी बनाई गई हैं कि वैक्सीन नहीं लगाई गई तो यात्रा नहीं कर सकते.  कई प्रतिबंध लगाए गए हैं.  सरकार क्लीनिकल डेटा को सार्वजनिक नहीं कर रही है . चूंकि वैक्सीन स्वैच्छिक है तो अगर कोई वैक्सीन नहीं लगवाता है तो उसे किसी सुविधा से वंचित नहीं किया जाए . याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि वैक्सीजन के क्लिनिकल ट्रायल के साथ-साथ वैक्सीन के विपरीत प्रभाव के बारे में डेटा सार्वजनिक किया जाए.

कोविड 19 वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल और वैक्सीन लेने के बाद हुए प्रतिकूल प्रभाव का डेटा सार्वजनिक किया जाए क्योंकि वैक्सीन की इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी गई है. वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल और वैक्सीन के बाद के विपरीत रिएक्शन के डेटा के मामले में पारदर्शिता की गुहार लगाई गई है.  याचिका दायर कर कहा है कि टीकाकरण के विपरीत प्रभाव के बारे में डिटेल पब्लिक करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है.

याचिका में कहा गया है कि केंद्र को निर्देश दिया जाए कि जिन लोगों ने कोरोना से बचाव के लिए टीका लिया है उनमें कितने लोग संक्रमित हुए हैं. इनमें कितने लोगों को अस्पताल में भर्ती करानी पड़ी और टीकाकरण के कारण कितनों की मौत हुई . याचिकाकर्ता ने कहा कि जो भी प्रतिकूल प्रभाव का डाटा है उसे टोल फ्री नंबर पर लोगों को बताया जाए. साथ ही ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि अगर कोई टीकाकरण करवा रहा है और प्रतिकूल प्रभाव हुआ है तो वह इस बारे में शिकायत कर सके. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में वैक्सीन के इस्तेमाल को जिस तरह से मंजूरी दी गई है उस पर सवाल किया गया और कहा गया कि वैक्सीन लेने वालों की निगरानी होनी चाहिए. इस तरह की निगरानी से दुनियां के कई देशों में वैक्सीन लेने वालों पर हुए विपरीत प्रभाव जैसे खून का जमना आदि को कंट्रोल करने में हेल्प हुई है. डेनमार्क में एस्ट्रा जेनेका वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक है.  कई देशों में वैक्सीन देना बंद किया गया है और वह उसका आंकलन कर रहे हैं.

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