शिल्पा राव के गीतों से विश्वरंग 2022 का हुआ भव्य समापन

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Updated on 21 Nov 2022,

भोपाल। सात दिनों तक चले साहित्य, कला और संस्कृति के संगम का रविवार को रंगारंग व आतिशी समापन हुआ। इस अवसर पर औपचारिक समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में छत्तीसगढ़ की राज्यपाल माननीय डॉ. अनुसूइया उइके,  संस्कृति मंत्री, मप्र उषा ठाकुर, लोक स्वास्थ्य एवं कल्याण विभाग मंत्री, मप्र श्री प्रभूराम चौधरी एवं विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे एवं विश्वरंग परिवार के सभी सदस्य उपस्थित रहे। कार्य़क्रम में  मुख्य अतिथि माननीय डॉ. अनुसूइया उइके ने कहा कि विश्वरंग आयोजन में देश दुनिया की कला, संस्कृति और साहित्य का संगम हुआ है। साहित्य एवं संस्कृति के इस वैश्विक आदान प्रदान से भारतीय युवाओं को भी भारत के साथ दुनिया की संस्कृति का ज्ञान होगा। भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को यह आयोजन दर्शाता है। सही मायने में सामाजिकता, कला, संस्कृति के मूल्यों को युवा स्वीकार कर सकें। यह दायित्व साहित्यकारों का है।

21वीं सदी में भारत के विश्वगुरु बनने की राह में विश्वरंग पहला कदम है। मैंने अपने जीवन में अब तक कला, संस्कृति एवं साहित्य पर केंद्रित ऐसा कार्यक्रम न कभी देखा है न कभी सुना है। राज्यपाल ने अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहा कि मैं पहली बार इसी सदन (मिंटो हॉल) में विधायक बनकर आई थी और आज राज्यपाल के लिए शामिल हो रही हूं। यह सदन मेरे लिए मंदिर है।

संस्कृति मंत्री, मप्र उषा ठाकुर ने कहा कि कई सदियों में संतोष चौबे जैसे महान विभूतियों का जन्म होता है। टैगोर के नाम पर इतना कार्य करना सराहनीय है। कला, संस्कृति साहित्य के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा में काम करने के लिए टैगोर स्वयं भी आशीर्वाद दे रहे हैं जिसका माध्यम संतोष चौबे हैं।

लोक स्वास्थ्य एवं कल्याण विभाग मंत्री, मप्र श्री प्रभूराम चौधरी ने कहा कि विश्वरंग जैसे आयोजन से वैश्विक स्तर पर भाषाओं के साथ संवाद स्थापित होता है। उन्होंने कहा कि विश्वरंग खुशियां का रंग भरने वाला आयोजन है। यह भारतीय कला संस्कृति एवं साहित्य को विश्व पटल पर ले जाएगा।

विश्वरंग की सह-निदेशक डॉ. अदिती चतुर्वेदी वत्स ने पुस्तक यात्रा से लेकर विश्वरंग के समस्त कार्यक्रमों की विस्तार से जानकारी महामहीम को दी। गेट सेट पेरेंट के चिल्ड्रंस लिटरेचर आर्ट एंड म्यूजिक फेस्टिवल की निदेशक डॉ. पल्लवी राव चतुर्वेदी ने बाल महोत्सव की पूरी जानकारी दी और बच्चों के उत्साह को रेखांकित किया। विश्वरंग के सह-निदेशक डॉ. सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने आभार प्रकट किया।

शिल्पा राव के गीतों से विश्व रंग का हुआ खूबसूरत समापन

आसमान में झिलमिल करते तारों के नीचे अपनी वजनदार आवाज में अदभुत समा बांधती शिल्पा राव ने मौला मेरे से जब परफॉर्मेंस की शुरुआत की तो ऐसा लगा मानो जैसे कोई जादू हो गया। फिर शुरू हुआ गाना – सुभानल्लाह जो रहा है पहली दफा …। इस दौरान इतना दीवानापन इतना जोश शिल्पा की आवाज़ ने भर दिया कि विश्व रंग में शामिल हज़ारों लोग थिरकने लगे। और झीलों की नगरी भोपाल संगीत की ताकत महसूस करने लगी।

जगमगाता स्टेज और सामने झूमता हुजूम एक के बाद एक पेश की गई बेहतरीन परफॉर्मेंस की गवाही सी दे रहे थे। इसके बाद शिल्पा राव ने  मौला मेरे मौला मेरे…, कलंक नहीं इश्क है काजल पिया… से श्रोताओं का दिल जीता।

वर्तमान समय में दुनिया को लेकर जो समझ है, वह “सपनों की दुनिया में ब्लैक- होल” उपान्यास में दिखाने की कोशिश है : संतोष चौबे
महादेवी सभागार में रविन्द्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति व विश्वरंग के निदेशक संतोष चौबे की आमजनों को लेकर सत्तातंत्र की वास्तविकता पर केंद्रित उपन्यास “सपनों की दुनिया में ब्लैक-होल” पर चर्चा की गई, जिसमें कुलाधिपति संतोष चौबे के साथ साथ देश के नामचीन हिंदी आलोचक शंभु गुप्त व विनोद तिवारी शामिल रहे। उपान्यास का सार बताते हुए श्री चौबे ने कहा कि एक साज़िश के तहत देखने की शक्ति क्षीण करने की कोशिश शक्तिशाली तंत्र के माध्यम से किए जाने का प्रत्यक्ष एहसास होता है, जिसका सकारात्मक विकल्प की ओर यह उपन्यास इशारा करती है। उन्होंने कहा कि दरअसल आज के समय में दुनिया को लेकर जो समझ मुझमें बनी है, उसे ही “सपनों की दुनिया में ब्लैक-होल” उपान्यास के माध्यम से दिखाने की कोशिश की गई है। इस उपान्यास में सपने को सुत्रधार की तरह लिए जाने के रूप में देखते हुए प्रसिद्ध आलोचक शंभु गुप्त बताते हैं कि यह उपान्यास तंत्र में रहकर सच के करीब ले जाने की कोशिश करना लेखक की आमजनों के प्रति हमदर्दी और सत्ता की हकीकत पेश करने का साहस साफ तौर पर झलकता है। श्री गुप्त बताते हैं कि यह उपान्यास पुंजीवाद के दायरे में सिमटा जरूर है पर आम जनों की हकीकत से रूबरू कराता यह उपान्यास अहिंसा के ज़रिए आमजनों में बदलाव की ताकत का भी एहसास कराता है।

वेब सीरीज पर नायक बनी कहानियां

विश्वपति सरकार और समीर सक्सेना से विकास अवस्थी ने वार्ता की। गुल्लक, पंचायत, हॉस्टल डेज और परमानेंट रूममेट जैसे बहुत सी प्रसिद्ध वेब सीरीज के डायरेक्टर समीर सक्सेना और इसी जोनर के मशहूर लेखक विश्वपति सरकार ने लेखन और डायरेक्सन पर दर्शकों का मार्गदर्शन किया। दर्शकों ने भी अनेक रोचक सवाल किए जिनका समाधान बखूबी दोनो ने किया।

दिव्यांग कवियों का कविता पाठ

विश्वरंग 2022 के चौथे और आखिरी दिन कुशाभाऊ ठाकरे हॉल के महादेवी सभागार में 20 नवम्बर को सत्र 60 में दिव्यांग कवियों का कविता पाठ हुआ जिसमें रफीक़ अहमद, डॉ विनोद आसुदानी, आरिफा शबनम, रफीक़ अहमद नागौरी, एलपी डहेरिया ने अपनी रचनाएँ पढ़ीं जिसका सत्र संचालन अवधेश तिवारी ने किया। एलपी डहेरिया ने अपनी दो ग़ज़लें पंछी हैं हम अम्न के, बैठे हैं इस डाल में एवं पोस्टर चिपके हुए हैं अम्न के दीवार में पढ़ी जिसमें देश में चल रही वर्तमान गतिविधियों की चर्चा रही। रफीक़ नागौरी ने ‘वक़्त को अपना तरफदार बनाया है मैंने, हर घड़ी इम्तिहान जारी है, जीत की दास्तान जारी है पढ़ी। अपना शेर ‘गरीबी कुछ भी बोले सुनती नहीं दुनिया, अमीरी बोलती है तो दुनिया मान लेती है’ से वर्तमान परिस्थिति पर बात कही। अवधेश तिवारी ने नोक कथा और भाषा विमर्श पर लिखी कविता पढ़ श्रोताओं की तालियाँ बटोरीं। कविता यदि तुम समुद्र के किनारे हो तो समुद्र का दोष नहीं है से विचारों और परिस्थितियों को सामने रखा। सत्र के आखिर में आरिफा शबनम ने अपनी ग़ज़ल से श्रोताओं को एक और बार सुनने की माँग पर मजबूर कर दिया। मथुरा वृंदावन की ज़मीन से होने पर उन्होंने कृष्ण पर शेर कहे।

लेखक से मिलिए में जाहिद खान और अरूण देव ने व्यक्त किए विचार

इस सत्र के प्रथम भाग में तरुण भटनागर ने लेखक जाहिद खान से बात करते हुए कहा की लेखक वर्तमान से असहमत होकर चलता है। जाहिद खान एक जनजातीय विषयों पर लिखने वाले लेखक हैं। उनका एक लंबा समय बस्तर में बीता है। दूसरे भाग में अरुण देव ने लेखक बलराम गुमास्ता से चर्चा की, तेज मिजाज के लेखक बलराम ने बताया कि लेखक के जीवन में उनकी स्मृति की क्या भूमिका होती है। अपनी विद्रोही कविताओं का जिक्र करतें हुए उन्होंने कहा की किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ बोलना उनका काम नही, वो बस सत्य को अलग तरीके से लिख रहें हैं।

व्यंगों के घाट पर व्यंगकारों ने लगाई डुबकियां, श्रोताओं के छूटे ठहाके

सामानांतर सत्रों के तहत वनमाली सभागार में देश के जाने-माने व्यंग कारों ने व्यंगों की घाट पर जब डुबकियां लगाई तो सभागार में मौजूद श्रोताओं के ठहाके रुकने का नाम नहीं ले रहा था। व्यंगों के इस महफिल में मलाय जैन ने ‘रेल किसी रेल की तरह आती है’ शीर्षक से व्यंग पाठ किया। उन्होंने कार्यकर्ताओं द्वारा रेल रोको अभियान में कार्यकर्ताओं-नेताओं के व्यथा कथा को सुनाया, जिसे सुनकर लोगों की हंसी छूट गयी। इसी क्रम में सत्र के अध्यक्ष और देश के जाने-माने व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी ने ‘कुत्ता पालने की दुविधा’ शीर्षक से व्यंग पाठ व्यंग की इस महफिल में जाने-माने व्यंग्यकार प्रेम जनमेजय, कहानीकार और व्यंग्यकार मुकेश वर्मा, शांतिलाल जैन और कैलाश मंडलेकर ने भी अपने व्यंग पाठ से श्रोताओं को गुदगुदाया।

विश्व हिंदी साहित्य: संवेदना व अभिव्यक्ति

सत्र में नवीन चंद्र लोहनी ने कहा प्रवास की सांवेदनाएँ प्रवासी भरतीयों की रचनाओं में नज़र आती हैं। वहीं, आशीष कंधवे ने कहा कि प्रवासी भरतियों में भारतीयता समाप्त हो रही है, ये प्रवासी साहित्य में नज़र आ रहा है। मौरीशस से आए राज हीरामन जी ने कहा मैं भी वही हिंदी लिखता हूँ जो आप लिखते हैं। फ़र्क़ इतना है कि आप भाषा लिखते हैं मैं संस्कार लिखता हूँ। सत्यकेतु सांक्रित भी सत्र में बतौर वक्ता मौजूद रहे। अध्यक्षता मोहनकांत गौतम ने की। डॉ. मीरा सिंह की पुस्तक अनुभव की पराकाष्ठा का विमोचन भी हुआ।


आदिवासी साहित्य एवं कला महोत्सव में “देशज कलाएं और ज्ञान परंपरायें” और “लुप्तप्राय भाषाएँ: मूद्दे, संरक्षण और पुनरोद्धार” विषय पर हुए वैचिरक सत्र

विश्वरंग के अंतर्गत आयोजित आदिवासी साहित्य एवं कला महोत्सव के तहत विभिन्न सत्रों की श्रृंखला में “देशज कलाएं और ज्ञान परंपरायें” विषय पर सत्र का आयोजन हुआ। इसमें वरिष्ठ जनजातीय साहित्यकार नागदेव जी ने पौराणिक कलाओं में हुये विविध प्रकार के चित्रकलाओं, मूर्ति चित्रण कलाओं आदि द्वारा बनाये जाने वाले चित्रणों का उल्लेख किया, जिसमें जीवन जीने की विविध प्रक्रियाओं और सामान्य जीवन से जुड़े दिनचर्याओं जैसे कई चित्रों का उल्लेख किया है। विशिष्ट अतिथि आचार्य नर्मदा प्रसाद जो कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से अलंकृत हैं, उन्होंने उल्लेख किया भाषा को विविध रूपों में अंगिकार करने वाला व्यक्ति कलाकार होता है।
दूसरे सत्र में लुप्तप्राय भाषाएँ: मूद्दे, संरक्षण और पुनरोद्धार पर चर्चा हुई, जिसमें गुजरात विद्यापीठ में कार्यरत साहित्यकार श्री राजेश राठवा ने उपबोलियों की संकल्पना को अमान्य माना है। उनके अनुसार भाषा और उपबोलियों में भेद करके हम मूल रूप से भाषाओं की समरूपता का हास करते है। इसे इतर हमें चाहिये की भाषाओं के लिए ‘लैंग्वेज पॉलिसी’ को बनाना होगा। जनजातीय साहित्यकार वंदना टेटे ने आदिवासियों की भाषा को भी महत्व और पाठ्यक्रम की भाषा होने पर जोर दिया है। सत्र को आगे बढ़ाते हुए झारखंड से आये साहित्यकार अश्वनी कुमार पंकज ने झारखंड में आदिवासियों की भाषा को बचाने के लिए हो रहे प्रयासों का उल्लेख किया। हीरा मीणा जी द्वारा रचित पुस्तक वाचिक साहित्य की पुरखौती परंपरा और गीत पुस्तक का विमोचन किया गया। तीसरे सत्र में भारतीय जीवन: पद्धति और जनजाति परम्पराएँ एवं दार्शनिकता में दिल्ली विवि से पधारी डॉ. स्नेहलता नेगी ने कहा कि आदिवासियों और उनके जीवनशैलियों को किसी खांचे में बांधकर नही रख जा सकता है।

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