मध्य प्रदेश में सिंचाई की ‘पम्प ऊर्जीकरण योजना’ भी भ्रष्टाचार की चपेट में

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Updated: 27 फ़रवरी, 2018

भोपाल: मध्यप्रदेश में दलित वर्ग के किसानों की जमीन की सिंचाई के लिए सरकार ने पम्प ऊर्जीकरण योजना साल 2013 में शुरू की थी, जो 5 सालों में भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ने लगा है. एनडीटीवी की पड़ताल में दिखा है कि कैसे मृतकों के नाम पर फाइल स्वीकृत हो गई, कैसे ठेकेदार को उन लोगों के नाम पर पैसा मिला जिसके नाम का कोई शख्स गांव में था ही नहीं.

आगर मालवा जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर मोड़ी गांव में रामसिंह को लगभग दस बीघा जमीन सरकारी पट्टे में मिली, जिसमें चार भाइयों के 25 लोगों के परिवार का पेट भरता है. खेत तक बिजली के खंभे और तार नहीं लगे हैं. डीजल पंप से सिंचाई होती है. ये और बात है कि बड़े भाई प्रभूलाल के नाम पर पंप उर्जीकरण योजना का लाभ फाइलों में मिल गया. वो भाई जिसकी मौत योजना शुरू होने से भी साल भर पहले हो गई थी. फाइलों में लिखा है 18 मई 2015 को चेक संख्या 23966 से प्रभूलाल के खेत पर पंप उर्जीकरण का लाभ मिलने के बाद 4 लाख उनतीस हजार पांच सौ पचपन रुपये का भुगतान ठेकेदार को कर दिया गया.

राम सिंह ने बताया, ‘सोयाबीन कट गई तो पता लगा कि उसके नाम डीपी आई. जब हमने पूछा कि क्या उन्हें पंप ऊर्जीकरण योजना के बारे में पता है तो उन्होंने कहा, ‘पता ही नहीं है. सिर्फ इतना पता लगा कि भाई के नाम डीपी है पर वो गई कहां?’ उनकी भाभी शैतान बाई का कहना था, ‘5 साल हो गया भाईसाहब प्रभूलाल की मौत को उनके नाम का पैसा आया डीपी आई कोई निकाल ले गया हमें पता नहीं पड़ा.’

 नजदीक के ही गांव गुर्जरखेड़ी में लीला बाई ने साल 2014 में योजना के तहत मुफ्त कनेक्शन के लिए आवेदन दिया , सर्वे हुआ, पास हुआ, लेकिन कनेक्शन के लिए खंबे, मीटर, तार कुछ भी खेत नहीं पहुंचा. हां 22000 का बिजली का बिल जरूर आ गया और ठेकेदार को पैसा भी चुका दिया गया. अब फाइलों में उलझे हैं उनके बेटे. हरिनारायण ने बताया, ‘आदिम जाति से आवेदन किया, स्वीकृत हुआ 29-10-2014 ठेकेदार के आदमी ने कहा पोल पटकना है, दो दिन इंतजार किया फिर कहा एस्टीमेट नहीं हुआ. राशि 9 लाख स्वीकृत हुई थी. बिल दे गये 22000 के आसपास रकम थी.’

राज्य के अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के किसानों के खेतों में सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली कनेक्शन देने 2013 में सरकार ने पम्प ऊर्जीकरण योजना बनाई. इसके तहत आदिम जाति कल्याण विभाग से इन किसानों को मुफ्त ट्रांसफार्मर,खंबा, तार, मीटर और चेतावनी बोर्ड मिलना था. पहले किसान को आवेदन करना था, बिजली विभाग को लागत निर्धारित कर कनेक्शन देना और भौतिक सत्यापन करना था. सत्यापन के बाद आदिम जाति कल्याण विभाग ठेकेदार को पैसा स्वीकृत करता है.

साल 2013 -14 से लेकर 2015-16 तक आदिम जाति कल्याण विभाग ने एक ज़िले में करीब 15 करोड़ रुपए के 276 आवेदन स्वीकृत किये. जिसमें 2-10 लाख रुपये तक का भुगतान हुआ. आगर मालवा के कलेक्टर अजय गुप्ता ने कहा “छोटे मंझोले किसानों को शासन की तरफ से ट्रांसफर्मर, केबल की सुविधा देनी थी ये शिकायत आई है कि अनुदान की राशि निकाल ली गई काम पूरा नहीं हुआ. बिजली कंपनी के एमडी को बोला है पूरा सत्यापन कराएं.’ मृतकों के अलावा कई गांवों में ऐसे लोगो के नाम पर भी पैसा निकला जो गांव में हैं ही नहीं. लोलकी गांव के लाभान्वितों की सूची में दुर्गा बाई के नाम से ट्रांसफॉर्मर लगना बताया गया है. इसके बदले ठेकेदार को चेक नंबर 23953 से दो लाख सत्रह हजार नौ सौ बय्यासी रुपए का भुगतान हुआ, पंचायत ने लिखकर दिया इस नाम का कोई गांव में नहीं रहता. गुर्जर खेड़ी गांव में भी रमेश पिता गोपी लाल के नाम पर ट्रांसफार्मर दिखाया गया, लेकिन इस नाम से कोई व्यक्ति वहां नहीं रहता. लोहारिया गांव में बालचंद के यहां बिजली के चार पोल लगाए गए जिस पर दो लाख खर्च होना था मगर बिल पांच लाख से ज्यादा का पास हुआ. सिर्फ पैसे ही नहीं काम भी घटिया हुआ, लाइन में तीन केबलों की जगह एक केबल का ही इस्तेमाल हुआ तो कहीं चेतावनी बोर्ड नदारद हैं.

योजना ऊर्जा और आदिम जाति कल्याण विभाग से जुड़ी है हमने दोनों मंत्रियों का दरवाजा खटखटाया, लेकिन जवाब एक सा. ऊर्जा मंत्री पारस जैन ने कहा ‘ऐसे प्रकरण मेरी नजर में नहीं हैं, मेरे पास नहीं है आपने बताया है. मैं जांच कराकर अगर मामला सही पाएगा तो कार्रवाई करूंगा.’ वहीं जनजातीय कार्य एवं अनुसूचित जाति कल्याण विभाग के मंत्री लाल सिंह आर्य ने कहा. ‘आप पंप ऊर्जीकरण से संबंधित कोई प्रकरण है. हमें दीजिये 24 घंटे में कार्रवाई करेंगे. पूरे राज्य में हजारों लोगों को पैसा वितरित हुआ है कहीं गड़बड़ी हुई है, हमें दीजिये मैं परीक्षणकराकर कार्रवाई करूंगा.”

विपक्ष को लगता है मामला एक ज़िले का नहीं पूरे प्रदेश का है. नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने कहा, ‘इस तरह के मामले एक जिले के नहीं बहुत सारे जिलों में छानबीन की जाए हितग्राहियो की योजना में लेन देन का सिलसिला जारी है, जनजाति विभाग में ये मामले आते हैं सरल लोग हैं उनके खाते से पैसा निकालना आसान है.” नियम के मुताबिक हितग्राहियों का चयन प्रभारी मंत्री, कलेक्टर, विधायक, जिला पंचायत के सीईओ, इंजीनियर, बिजली कंपनी के अधिकारी और आदिम जाति कल्याण विभाग की समिति करती है. समझना मुश्किल नहीं राजधानी से कितना पैसा निकलता है, लोगों को कितना मिलता है.

CREDIT:एनडीटीवी

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