‘चन्द्रशेखर सीमा’ के लिए प्रसिद्ध थे सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर, गूगल ने इस अंदाज में किया याद

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Updated: 19 अक्टूबर, 2017

नई दिल्ली: सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर का आज जन्मदिन है. इस मौके पर गूगल ने एक खास डूडल बनाकर उनको श्रद्धांजलि दी. सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर खगोल भौतिक शास्त्री थे और सन् 1983 में भौतिक शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता भी थे. उनका जन्म वर्ष 19 अक्तूबर 1910 को लाहौर (अब पाकिस्तान) में हुआ था. चन्द्रशेखर की प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा मद्रास में हुई. मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक की उपाधि लेने तक उनके कई शोध पत्र प्रकाशित हो चुके थे. उनमें से एक `प्रोसीडिंग्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी’ में प्रकाशित हुआ था, जो इतनी कम उम्र वाले व्यक्ति के लिए गौरव की बात थी. 18 वर्ष की आयु में चंद्रशेखर का पहला शोध पत्र ‘इंडियन जर्नल ऑफ फिजिक्स’ में प्रकाशित हुआ. वह नोबेल पुरस्कार विजेता सर सी. वी. रमन के भतीजे  थे. बाद में डॉ. चंद्रशेखर अमेरिका चले गए, जहां उन्होंने खगोल भौतिक शास्त्र तथा सौरमंडल से संबधित विषयों पर अनेक पुस्तकें लिखीं.

वर्ष 1934 में ही उन्होंने तारे के गिरने और लुप्त होने की अपनी वैज्ञानिक जिज्ञासा सुलझा ली थी. कुछ ही समय बाद यानी 11 जनवरी 1935 को लंदन की रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की एक बैठक में उन्होंने अपना मौलिक शोध पत्र भी प्रस्तुत कर दिया था कि सफेद बौने तारे यानी व्हाइट ड्वार्फ तारे एक निश्चित द्रव्यमान यानी डेफिनेट मास प्राप्त करने के बाद अपने भार में और वृद्धि नहीं कर सकते. अंतत वे ब्लैक होल बन जाते हैं. उन्होंने बताया कि जिन तारों का द्रव्यमान आज सूर्य से 1.4 गुना होगा, वे अंतत सिकुड़ कर बहुत भारी हो जाएंगे.

ऑक्सफोर्ड में उनके गुरु सर आर्थर एडिंगटन ने उनके इस शोध को प्रथम दृष्टि में स्वीकार नहीं किया और उनकी खिल्ली उड़ाई. पर उन्होंने हार नहीं मानी. वो दोबारा शोध में जुट गए और आखिरकार, इस दिशा में विश्व भर में किए जा रहे शोधों के फलस्वरूप उनकी खोज के ठीक पचास साल बाद 1983 में उनके सिद्धांत को मान्यता मिली. परिणामत भौतिकी के क्षेत्र में वर्ष 1983 का नोबेल पुरस्कार उन्हें तथा डॉ॰ विलियम फाऊलर को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया.

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