त्रेता में कैसी थी राम की अयोध्या: राम राज्य में टैक्स लेने का नियम क्या था ?

मुख्य समाचार, राष्ट्रीय

Updated at : 22 Jan 2024,

14 सालों का वनवास काटकर अयोध्या लौटे श्रीराम का राज्याभिषेक चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में छठवीं तिथि को हुआ था. इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज की मानें तो यह वाकया करीब 5075 ईसा पूर्व की है, यानी इस घटन को घटे करीब 7000 साल हो चुके हैं.

राज्याभिषेक के बाद भगवान राम के लोकगमन तक की अवधि को राम राज्य कहा जाता है यानी राम का शाषण. कहा जाता है कि राम ने अयोध्या में करीब 45 साल तक शासन किया.

शास्त्रों में राम राज्य को आदर्श राज्य व्यवस्था की संज्ञा दी गई है. इसे यूटोपिया (आदर्शवाद की चरम स्थिति) भी कहा जाता है.

किंवदंती है कि राम राज्य में चीजें इतनी संतुलित थी कि नदी के एक ही घाट पर बकरी और बाघ साथ पानी पीते थे. यही वजह है कि 7090 साल बाद भी नेता और पार्टियां अपने यहां राम राज्य लाने की बात करते हैं.

भारत में राम राज्य की चर्चा तो गाहे-बगाहे होती है. ऐसे में इस स्पेशल स्टोरी में आइए जानते हैं कि राम के वक्त अयोध्या कैसी थी और उसका राम राज्य कैसा था?

राम के वक्त कैसी थी अयोध्या?
वाल्मीकि रामयाण के उत्तरकांड में अयोध्या के बारे में विस्तार से बताया गया है. वाल्मीकि के मुताबिक सरयू तट पर बसी अयोध्या का कुल क्षेत्रफल बारह योजन लंबी और तीन योजन चौड़ी है.

वर्तमान के माप को देखें तो एक योजन का मतलब 8 मील से है. एक मील में 1.6 किमी होते हैं. इस हिसाब से गुणा किया जाए, तो अयोध्या करीब 12 हजार वर्ग किलोमीटर में फैली हुई थी.

अयोध्या की सुरक्षा व्यवस्था लक्ष्मण की देखरेख में काफी चाक-चौबंद थी. अयोध्या की सीमा पर बड़े-बड़े गड्ढे किए गए थे, जिससे आसानी से कोई प्रवेश नहीं कर पाए.

एक मुख्यद्वार के अलावा कई छोटे-छोटे द्वार भी बनाए गए थे. इन द्वारों पर पहरेदारों की 24 घंटे तैनाती रहती थी.  अयोध्या के तट पर बसे सरयू के किनारे-किनारे तुलसी के हजारों पौधे लगे हुए थे. सरयू के किनारे ही विरक्त और ज्ञानपरायण मुनि और संन्यासी निवास करते थे.

कैसा था राम का शासन, 4 प्वॉइंट्स…

1. राम राज्य में मौसम कैसा था?
राम राज्य में न तो अधिक ठंड थी और न ही अधिक गर्मी. वाल्मीकि लिखते हैं- यहां बारिश भी इच्छानुसार होती है, क्योंकि कृषकों के लिए बरसात जरूरत है. कहा जाता है कि राम राज्य में मौसम बसंत ऋतु जैसा था.

मौसम और अयोध्या की स्थिति को लेकर रामचरित्र मानस में तुलसीदास लिखते हैं-

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती

इसका अर्थ होता है- राम राज्य में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप नहीं था. सभी लोग अच्छे ढंग से रहते थे और एक दूसरे का पारस्परिक सहयोग करते थे.

2. अपराध को लेकर क्या नियम थे?
राम राज्य में एकाध अपराध को छोड़ दिया जाए, तो किसी भी अपराध का कोई जिक्र नहीं है.  राम चरित्र मानस में तुलसीदास लिखते हैं- ‘दंड जतिन्ह कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज…. जीतहु मनहि सुनिअ अस रामचंद्र कें राज’

अर्थात राम राज्य में दंड (एक तरह का वस्तु) केवल संन्यासियों के हाथों में है और भेद नाचने वालों के नृत्य समाज में है और ‘जीतो’ शब्द केवल मन के जीतने के लिए ही सुनाई पड़ता है केवल संन्यासियों के हाथों में रह गया था और भेद केवल नाचने वालों के नृत्य-समाज में था.

तुलसीदास के मुताबिक रामराज्य में कोई किसी का शत्रु नहीं था, इसलिए दंड देने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी. राम राज्य में अपराध कितना और किस तरह का होता था, इसके बारे में भले नहीं बताया गया है, लेकिन कुछ जगहों पर न्याय का जिक्र जरूर है.

वाल्मीकि रामायण में कुत्ते और ब्राह्मण के बीच के एक झगड़ा का जिक्र है. इसके मुताबिक एक ब्राह्मण एक कुत्ते के सिर पर लाठी मार देते हैं, जिसके बाद कुत्ता राम के पास न्याय के लिए जाता है.

वाल्मीकि लिखते हैं- कुत्ते की बात सुनकर राम ने ब्राह्मण से पूछा,‘त्वया दत्तः प्रहारोऽयं सारमेयस्य वै द्विज ॥ किं तवापकृतं विप्र दण्डेनाभिहतो यतः‘….अर्थात- हे ब्राह्मण, आपने इस कुत्ते को क्यों मारा और इसका क्या अपराध था?

कहा जाता है कि राम ने इसके बाद कुत्ते के इच्छानुसार उक्त ब्राह्मण को मठाधीश होने का दंड सुनाया.

हालांकि, यह भी कहा जाता है कि राम राज्य में माता सीता ही एकमात्र पीड़ित थीं. मिथिला के क्षेत्र में आज भी इसको लेकल एक लोक उक्ति ‘सीता जन्म वियोगे गेल, दुख छोड़ी सुख कहियौ ने भेल’ कहा जाता है.

चंदा झा मैथिलि रामायण में लिखते हैं- राम जब राजा बन गए, तो उन्हें नागरिक गुप्तचरों ने कुछ सीक्रेट बात बताई. राम जब यह जानने के लिए निकले, तो लोग सीता और रावण को लेकर तरह-तरह की टिप्पणी कर रहे थे.

अयोध्या के निवासी सीता की पवित्रता पर सवाल उठा रहे थे.

चंदा झा लिखते हैं- इसके बाद राजभवन लौटकर राम ने लक्ष्मण से कहा कि मैं अब सीता का परित्याग कर दूंगा और कल तुम उन्हें ऋषि आश्रम छोड़ आना. अगर, मैं बीच में आऊं, तो तुम मेरा गला उतार देना.

चंदा झा के मुताबिक जब सीता को राम ने वनवास का आदेश सुनाया, तब सीता 8 महीने की गर्भवती थीं. राम के कहे अनुसार ने लक्ष्मण ने उन्हें वन में छोड़ दिया. रथ से उतरने के बाद सीता कहती हैं-

रघुपति बड़ महराजे, कयल उचित न सम्प्रति काजे
हुनकर रमणि कहाये, दुखित बसब हम घन-वन जाये

इसका अर्थ है- राम महान राजा है फिर उन्होंने यह उचित नहीं किया है. उनकी पत्नी होकर मैं दुख के साथ घने जंगल में जाकर रहूंगी. मैं अपनी वेदना क्या बतलाऊं?

3. राम राज्य में कैसी थी टैक्स की व्यवस्था?
राम राज्य में लोगों की समृद्धि पर सबसे ज्यादा फोकस किया गया था. तंत्र इसी के अनुरूप कार्य करता था. सीमा विस्तार और प्रजा की समृद्धि के लिए राम ने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन कराया था.

राम राज्य में अनाज प्रयाप्त मात्रा में था. इसकी बड़ी वजह लोगों का कृषक होना था. टैक्स कलेक्शन को लेकर राम राज्य में 2 नियम थे.

तुलसीदास रामचरित्र मानस में लिखते हैं- “मणि-माणिक महंगे किए, सहजे तृण, जल, नाज. तुलसी सोइ जानिए राम गरीब नवाज” 

इसका अर्थ है- जेवरात को महंगा किया जाए, जिससे लोग इसे आसानी से खरीद न सके. वहीं जल और अनाज की सुगम उपलब्धता कराई जाए.

तुलसी एक जगह और लिखते हैं- “बरसत हरसत सब लखें, करसत लखे न कोय, तुलसी प्रजा सुभाग से, भूप भानु सो होय”

इसका अर्थ है- टैक्स इतना ही लेना चाहिए, जिससे आम लोगों पर असर न पड़े या वो न दिखाई दे. वहीं उस टैक्स का इतना काम करें कि सब लोग देख लें.

4. राम राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य का हाल?
किसी भी शासन व्यवस्था में शिक्षा और स्वास्थ्य सबसे अहम विषय माना जाता है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि राम राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था का क्या हाल था?

रामचरित्र मानस में तुलसीदास लिखते हैं-

अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा, सब सुंदर सब बिरुज सरीरा
नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना, नहिं कोउ अबुध न लच्छन हीना

अर्थात- राम राज्य में छोटी अवस्था में किसी की मृत्यु नहीं होती है. न किसी को कोई पीड़ा होती है. सभी के शरीर सुंदर और निरोग हैं. न कोई दरिद्र है, न दुःखी है और न दीन ही है. न कोई मूर्ख है और न शुभ लक्षणों से हीन ही है.

गुरुकुलों में शिक्षा देने की व्यवस्था थी. धर्म और न्याय के बारे में सबको जानना जरूरी था.  राम राज्य में भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस रखा गया था. रामायण में वाल्मीकि लिखते हैं-

अमात्यानुपधातीतान्पितृपितामहञ्च्छुचिन्।
श्रेष्ठान्श्रेष्ठेषुच्छित्वं नियोजयसि कर्मसु

इसका अर्थ होता है- आप ऐसे मंत्रियों को बेहतर कार्य सौंप रहे हैं, जो रिश्वतखोरी और अन्य प्रलोभनों के आगे झुकने वाले नहीं हैं. जो पद पर वंशानुगत हैं और जो ईमानदारी और श्रेष्ठता से भरे हुए हैं.

आखिरी वक्त में वियोग में चले गए थे श्रीराम

मैथिलि रामायण के रचयिता चंदा झा लिखते हैं- धरती फटने और सीता के उसमें समाने के बाद राम व्याकुल हो गए. रोते हुए राम ने सीता से क्षमा मांगी और फिर विलाप करने लगे. ऋषि और मुनियों के समझाने के बाद राम यज्ञ काम में जुट गए, लेकिन उसके बाद वे वियोग में ही रहने लगे.

राम के वियोग में देखकर उनकी मां कौशल्या उसका कारण जानना चाहती हैं, जिस पर राम उन्हें भक्ति में लीन होने की सलाह देते हैं.

चंदा झा के मुताबिक राम सीता के विरह को सह नहीं पाए और जल्द ही उन्होंने अपनी राजगद्दी अपने बेटे को सौंप दी. इसके बाद पहले लक्ष्मण और फिर बाकी भाईयों के साथ राम स्वर्ग की ओर प्रस्थान करते हैं.

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