शरद पूर्णिमा के दिन करें महालक्ष्मी की पूजा, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा
Published on: October 30, 2020,
आश्विन शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। यह शरद ऋतु के आने का संकेत है। आश्विन महीने की इस पूर्णिमा को ‘कुमार पूर्णिमा’ या ‘रास पूर्णिमा’ भी कहते हैं। शरद पूर्णिमा की रात बड़ी ही खास होती है। शरद पूर्णिमा की रात को चांद की रोशनी में कुछ ऐसे तत्व मौजूद होते हैं, जो हमारे शरीर और मन को शुद्ध करके एक पॉजिटिव ऊर्जा प्रदान करते हैं। दरअसल इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के काफी नजदीक होता है, जिसके चलते चंद्रमा की रोशनी का और उसमें मौजूद तत्वों का सीधा और पॉजिटिव असर पृथ्वी पर पड़ता है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार माना जाता है कि शरद पूर्णिमा को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी प्रथ्वी पर भ्रमण के लिए आते है। और जो लोग रात भर जागरण कर रहे होतें है। उनपर काफी कृपा बरसाते है।
कब है शरद पूर्णिमा?
इस बार शरद पूर्णिमा की तिथि को लेकर लोगों के बीच काफी असमंज है। आपको बता दें कि शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 45 मिनट से लग रही हैं जो 31 अक्टूबर रात 8 बजकर 19 मिनट तक रहेगी। इसलिए पूर्णिमा का व्रत 31 अक्टूबर को रखा जाएगा। वहीं स्नान, दान और कथा 30 अक्टूबर को की जाएगी।
एक साथ बन रहे है कई शुभ योग
शरद पूर्णिमा के दिन सर्वार्थसिद्ध योग के साथ रवि योग और सिद्धि योग बन रहा है। सर्वार्थसिद्ध योग बनने से आप कोई भी शुभ काम आज कर सकते हैं। इसके अलावा रवि और सिद्धि योग दोपहर 2 बजकर 57 मिनट तक रहेंगे। ऐसे योग में आर्थिक लाभ मिलने के पूरे असार है।
शरद पूर्णिमा की तिथि और शुभ मुहूर्त
चंद्रोदय का समय: 30 अक्टूबर शाम 5 बजकर 20 मिनट
निशिता पूजा शुभ मुहूर्त- 30 अक्टूबर रात 11 बजकर 42 मिनट से 12 बजकर 27 मिनट तक। इस मुहूर्त पर खीर की कटोरी चांद की रोशनी में रखकर मां लक्ष्मी को याद करे।
शरद पूर्णिमा पूजा विधि
इस दिन लक्ष्मी नारायण की पूजा की जाती है। इसके लिए पूर्णिमा वाली सुबह घी के दीपक जलाकर तथा गंध-पुष्प आदि से अपने इष्ट देवों, लक्ष्मी और इंद्र की आराधना करें। नारदपुराण के अनुसार इस दिन रात में मां लक्ष्मी अपने हाथों में वर और अभय लिए घूमती हैं। जो भी उन्हें जागते हुए दिखता है उन्हें वह धन-वैभव का आशीष देती हैं। शाम के समय चन्द्रोदय होने पर चांदी, सोने या मिट्टी के दीपक जलाने चाहिए। इस दिन घी और चीनी से बनी खीर चन्द्रमा की चांदनी में रखनी चाहिए। जब रात्रि का एक पहर बीत जाए तो यह भोग लक्ष्मी जी को अर्पित कर देना चाहिए। शरद पूर्णिमा को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में सोकर उठें। इसके बाद नित्यकर्म से निवृत्त होकर स्नान करें। साफ कपड़े पहनें।
शरद पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक साहुकार की दो बेटियां थीं। वैसे तो दोनों बेटियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन छोटी बेटी व्रत अधूरा करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा तो उन्होंने बताया, ”तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थीं, जिसके कारण तुम्हारी संतानें पैदा होते ही मर जाती हैं। पूर्णिमा का व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतानें जीवित रह सकती हैं।”
उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ, जो कुछ दिनों बाद ही मर गया। उसने लड़के को एक पीढ़े पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी तो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा, “तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।” तब छोटी बहन बोली, “यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है. तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है।” उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया