टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय साहित्य और कला महोत्सव विश्वरंग का तीसरा दिन संगीत, कविता, संवाद और नाट्य मंचन के नाम रहा

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Updated: 6 नवम्बर, 2019,

भोपाल: टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय साहित्य और कला महोत्सव विश्वरंग की तीसरे दिन की शाम समर्पित रही उषा गांगुली द्वारा निर्देशित नाटक ‘चंडालिका’ के नाम। ग्रुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर द्वारा रचित उत्कृष्ट नाटकों में से एक चंडालिका का नवीन रूपांतरण कोलकाता के रंगकर्मी समूह द्वारा प्रदर्शित किया गया। इस नाटक को मूल रूप में कुछ परिवर्तनों के साथ प्रस्तुत किया गया। इसमें छुआछूत का आडंबर, प्रेम की सहजता, मानवीय मन की आकांक्षा और दुविधा को बहुत बारीकी से दर्शाया गया। इसमें नाट्य निर्देशिका उषा गांगुली ने मंच की भाषा के साथ-साथ कलाकारों की वेशभूषा, क्राफ्ट के उपयोग, संवाद अदायगी के उत्कृष्ट समन्वय ने दर्शकों के मन पर अमिट छाप छोड़ी। कार्यक्रम में मध्य प्रदेश शासन के जनजातीय कार्य विभाग के मंत्री ओमकार सिंह मरकाम भी सम्मिलित हुए। उन्हें विश्विद्यालय के कुलसचिव विजय सिंह ने स्मृति चिह्न और पुष्पगुच्छ भेंट कर सम्मानित किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि विश्वरंग महोत्सव से अमृत निकलकर आएगा।दुनिया को एक करने में कला और साहित्य की बड़ी भूमिका होगी। विश्वरंग भविष्य की दिशा तय करेगा।

नाटक की निर्देशिका उषा गांगुली  ने बताया नाटक में आज के समय के अनुसार कुछ परिवर्तन किए गए हैं जिसने इसे दर्शकों के लिए और अधिक रोचक बना दिया है। चंडालिका के प्रदर्शन का आधार जीवन का चक्र है जिसमे प्रकृति के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को भी सम्मिलित किया गया है। इस नाटक में माँ और बेटी के संबंधों और समाज के अनेक अस्पृश्य विषयों पर भी प्रकाश डाला गया है।
1 घंटे 20 मिनट की इस प्रस्तुति में जीवन के अनेक पहलुओं को छुआ है, जिनके बारे में गुरुर्देव रबींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था। ये प्रस्तुति समकालीन दुनिया के सम्मलेन के साथ प्रदस्र्हित की गई एक अवधारणा का नवीन चित्रण है।
इस नाटक में कलाकारों के काम और संगीत के सम्मेलन का अच्छा प्रदर्शन किया गया। दर्शकों को लुभाने के लिए वास्तविक सार को बरकरार रखते हुए नाटक को मूल से थोड़ा रूपांतरित किया गया है। हिंदुस्तानी भाषा का इस्तेमाल दिलों को छूने का काम करता है।

नगीन तनवीर की चोला माटी के और ससुराल गेंदा फूल की प्रस्तुति ने श्रोताओं को खूब झुमाया
रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के द्वारा आयोजित टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्व रंग के तीसरे दिन सायं कालीन सभा के पूर्वरंग में महान नाट्य निर्देशक हबीब तनवीर की सुपुत्री लोक गायिका नगीन तनवीर द्वारा दी गई रंग संगीत की प्रस्तुति ने श्रोताओं को झूमने पर मजबूर कर दिया। जीवन दर्शन पर आधारित दुश्मन नाटक के गाने ‘नाव भी है तैयार’ से अपनी प्रस्तुति की शुरुआत की। संगीत से सजी शाम को अपने गायन से और भी सुरमयी बनाते हुए नगीन तनवीर ने राजा से हो गए मोला बैर, मशहूर ग़ज़ल गए दिनों का सुराग लेकर, छुअल का बदरे, चोला माटी के साथ-साथ ससुराल गेंदा फूल की प्रस्तुति से मिट्टी की खुशबू पूरे वातावरण में बिखेर दी। इनके साथ तबले पर रवींद्र राव, हारमोनियम पर रविलाल सांगले, ढोलक पर प्रशांत श्रीवास्तव, मरकस पर सोनिका यादव ने नगीन तनवीर का भरपूर साथ देते हुए शाम को को सुरों में रंग दिया।

विश्वरंग में रंगमंच की रीढ ‘नेपथ्य’ पर हुआ संवाद
टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय साहित्य और कला महोत्सव विश्वरंग में बुधवार शाम को ‘रंगमंच के नेपथ्य’ पर संवाद सत्र आयोजित किया गया। दरअसल ‘रंगमंच के नेपथ्य’ का तात्पर्य किसी शो के दौरान बैक स्टेज व्यवस्थाओं से है। कार्यक्रम में नेपथ्य की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कोलकाता से आईं प्रख्यात रंगकर्मी उषा गांगुली ने कहा कि बैक स्टेज के लोगों को पहले मंच पर बुलाने की भी ज़हमत नहीं की जाती थी लेकिन अब थियेटर बदल रहा है और इनके बिना थियेटर की कल्पना भी सम्भव नहीं है। रंगकर्मी अनूप जोशी ने कहा कि नेपथ्य किसी भी नाटक की रीढ़ की हड्डी है, नाटक की सफलता में इसका अहम योगदान होता है। वरिष्ठ रंग निर्देशक केजी त्रिवेदी के कहा कि मंच पर किरदार निभाने वाले कलाकार से बड़ा नेपथ्यकर्मी होता है, भले ही इसे कोई रंगकर्मी माने या न मानें। इस संवाद में वरिष्ठ कला समीक्षक विनय उपाध्याय, रंगकर्मी सुदीप सोहनी और सरफराज हसन ने भी शिरकत की और रंगमंच के विभिन्न पहलुओं पर बात की।

इस अवसर पर वरिष्ठ कला समीक्षक और विश्व रंग के सांस्कृतिक समन्वयक विनय उपाध्याय ने कहा कि नेपथ्य रंगमंच का एक महत्वपूर्ण अंग होता है और जो मंच पर मंचित होता है या घटित हो रहा होता है वो नेपथ्य के बिना संभव ही नहीं हो सकता। वहीं युवा रंग निर्देशक सरफराज हसन ने कहा कि हर कलाकार को मंच पर अपने किरदार को जीवंत करने की कला के साथ-साथ नेपथ्य की भूमिक को भी जानना जरूरी है। इसी से उसकी कला में निखार आता है। युवा रंगकर्मी सुदीप सोहनी ने बैक स्टेज अर्थात नेपथ्य को रेखांकित करते हुए कहा कि नाटक मंचन को दर्शकों तक जीवंत रूप में पहुंचाने में नेपथ्य महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इसी दौरान एक सवाल के जवाब में उषा गांगुली ने बताया कि मैंने कभी थियेटर की पढ़ाई नहीं की लेकिन मेरा जोर हमेशा से ही नेपथ्य पर अधिक रहा है, मैंने कई बड़े संस्थानों में नेपथ्य की शिक्षा भी दी। विडम्बना है कि नेपथ्य को हमेशा रंगमंच से छोटा दर्शाया जाता है, लेकिन यह बहुत गलत है। आने वाली पीढ़ी को नेपथ्य के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है।

विश्वरंग का तीसरा दिन :  वायोलिन वादन के साथ हुई सुरमय शुरुआत
रबींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित कला, संस्कृति और साहित्य महोत्सव विश्व रंग के तीसरे दिन की शुरुआत मंगलाचरण में  वायोलिन वादन के साथ हुई।इस सत्र में ख्याति प्राप्त वायोलिन वादक अमित मलिक ने भक्ति गीतों की सुंदर प्रस्तुति से सभागार में मौजूद श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया

अमित ने राम का गुणगान करिए.., बाजे मुरलिया.., श्री रामचंद्र कृपालु भजमन…, ठुमक चलत रामचंद्र, वैष्णों जन को तेने कहिये… भक्ति गीतों से अपनी संगीतमय प्रस्तुति का समापन किया। अमित के साथ नईम अल्लाहवाले ने तबले पर संगत दी।

भक्ति गीतों के कार्यक्रम के बाद सभागार लंबे समय तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा अमित मालिक 8 साल की उम्र से वायोलिन वादन कर रहे हैं।

विश्वरंग कलाकारों के किए स्वर्ग समान –अमित
विश्वरंग में अपने बेहतरीन वायोलिन वादन से समां बांधने वाले प्रख्यात कलाकार अमित मलिक ने कहा कि विश्वरंग कलाकारों के लिए स्वर्ग है। मुझे गर्व है कि इस महाकुंभ का हिस्सा बनने का अवसर मिला, मैं विश्व रंग को शुभकामनाएं देता हूं और आशा करता हूं कि भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रम होते रहें। टैगौर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति संतोष चौबे ने स्मृति चिह्न भेंटकर अमित को सम्मानित किया।

विश्वरंग : व्यक्ति से व्यक्ति में संवाद स्थापित करती हैं कविताएं
टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्वरंग के तीसरे दिन बुधवार को आयोजित ‘हिंदी कवियों का कविता पाठ’ के पहले सत्र में देशभर से आये हिंदी कवियों ने श्रोताओं के हृदय को अनेक रसों से सराबोर कर दिया। कविता पाठ के इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि ऋतुराज ने की। इसके साथ ही टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और साहित्यकार संतोष चौबे, जितेंद्र श्रीवास्तव, मोहन सगोरिया, महेंद्र गगन, युवा कवि कुमार अनुपम ने अपनी कविताओं की प्रस्तुति भारत भवन सभागर में दी। सत्र की शुरुआत में संचालन कर रहे युवा हृदय सम्राट कवि कुमार अनुपम ने अनुपस्थिति, पिता और अंतरण जैसी कविताओं से कवितापाठ की शुरुआत की।

इश्कविश्क तलवार म्यान में रखना– मोहन सगोरिया
नींद को अपनी कविताओं  से परिभाषित करते  हुए मोहन सगोरिया ने काव्य पाठ के दौरान ‘अब जनाब नींद क्या कहिए, टूट गयी तो रात ढलते, और ना टूटे तो उम्र भर’ के बाद  ‘परसों ही तो बिटिया पैदा हुई, कल होश संभाला और आज होशियार हो गयी’ ,  ‘इश्क़ विश्क तलवार म्यान में रखना’ जैसी कविताओं से श्रोताओं के दिल को छू लिया।

कवि के लिए साहित्यिक खुराफातें भी जरूरी होती हैं – जितेंद्र श्रीवास्तव
जीवन के संबंधों को अपने शब्दों में पिरोने में माहिर और भारत भूषण समेत कई सम्मानों से नवाजे गए संवेदनशील कवि जितेंद्र श्रीवास्तव ने श्रृंगार रस से सजी प्रेम की कविता ‘चुटकी भर में चला ही जाऊंगा’ से अपने काव्य पाठ को आरंभ किया। इसके बाद उन्होनें ‘पुतलियां पृथ्वी का सबसे पुराना अल्बम हैं’ , ‘घर का मौसम, घर का राग’ और जिंदगी जैसी प्रासंगिक कविताओं से आधुनिक समय में बदल गए सामाजिक संबंधों पर चोट की।

घर कीजैसे बांसुरी का स्वर जो दूर रहकर दिखाई भी दे और सुनाई भी दे– महेंद्र गगन
यकीन और रीझन जैसी प्रेम रस में सराबोर कविताओं से काव्य पाठ को आरंभ कर महेंद्र गगन ने हिंदी काव्य पाठ के प्रथम सत्र में ‘शब्दों कठोर हो जाने का समय है’ और कृपा बनी रहे तो बड़ी कृपा… जैसी कविताओं का पाठ किया। कविता बेरोजगार युवा के जरिये बेरोजगारी को शब्दों में बांधते हुए महेंद्र गगन ने इसे आज की सबसे बड़ी समस्या बताया।

जब हम होने लगें अदृश्यमित्रों अपने चश्मे बदलिएगा – संतोष चौबे
टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति और प्रख्यात कवि संतोष चौबे ने अपनी एक पुरानी कविता ‘पहचान’ कविता के माध्यम से कहा- दक्षिण से देखो, हम मध्य में दिखेंगे, मध्य से देखो, हम वाम में दिखेंगे, वाम से देखो, हम होंगे अदृश्य, जब होने लगें अदृश्य, मित्रों अपने चश्मे बदलिएगा.. से पाठ शुरू किया। शब्दयुग्मों पर कविता लिखने में माहिर संतोष चौबे ने ‘छोड़ो यार’ और बैठकबाज़ों पर चोट करती कविता के साथ ही दार्शनिक सत्यता की परिचायक  ‘थोड़ा अंदर हूँ, थोड़ा बाहर’ , ‘अम्मा का रेडियो’ जैसी चर्चित कविताओं का पाठ किया।

कविता से उत्पन्न मौन में आप विश्लेषण कर सकते हैं : ऋतुराज  

सत्र की अध्यक्षता कर रहे पहल सम्मान, बिहारी सम्मान से अलंकृत वरिष्ठ कवि ऋतुराज ने कहा कि इतने बुरे समय में इतनी अच्छी रचनाएं ये साबित करती हैं कि कविता सब ठीक कर सकती हैं। भ्रष्ट राजनीति और 50 हजार होमगार्ड सैनिकों के निलंबन पर रचित कविता ‘कल से तुम काम पर मत आना’ से रसों की अभिव्यंजना शुरू की। वर्तमान राजनीति पर कटाक्ष करती अपनी रचना ‘तंदूर’ और ‘मुर्दाबाद’ का पाठ किया।

आत्मसंभवा’ के जरिये मुक्तिबोध का पुनरावलोकन
टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्वरंग के तीसरे दिन गजानंद माधव मुक्तिबोध की कविताओं पर आधारित लघु फ़िल्म ‘आत्मसंभवा’ भी प्रस्तुत की गई। इस फ़िल्म प्रदर्शन के द्वारा मुक्तिबोध के भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान का पुनरावलोकन किया गया। इस लघु फ़िल्म की परिकल्पना और निर्देशन बहुचर्चित सहित्यकार लीलाधर मंडलोई ने किया है।

शब्दध्वनि और दृश्य किताब का विमोचन
वरिष्ठ कवि, कथाकार श्री संतोष चौबे द्वारा संपादित ‘शब्द, ध्वनि और दृश्य’ किताब का लोकार्पण किया गया। इसमें 11 रचनाकारों के साक्षात्कारों के संकलन हैं। उल्लेखनीय है कि इस किताब में देश के जाने माने वरिष्ठ आलोचक डॉ धनंजय वर्मा, वरिष्ठ कवि राजेश जोशी, विभूति नारायण राय, चित्रा मुग्दल, रवींद्र कालिया, ममता कालिया, संतोष चौबे, भगवानदास मोरवाल के साथ टैगोर विश्वविद्यालय में आये साहित्यकारों के साक्षात्कार संग्रहित हैं।

विश्वरंगआशाप्रेमकरुणा और सरोकार की कविताओं का पाठ
टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव विश्वरंग में बुधवार को हुए हिंदी कविता पाठ के दूसरे सत्र का आगाज कथा विश्लेषक, कवि प्रांजल धर ने अपनी कविता ‘वरना ना आना’ के पाठ से किया। उन्होंने अपनी कविता के माध्यम से अनेक भावों को कलाप्रेमियों में संप्रेषित किया। बेरोजगारी के दिन.. के पाठ से दर्शकों को बेरोजगारी के चरित्र से वाकिफ़ कराया। क्रमश : प्यार की तुलना इंक रिमूवर से करते हुए प्रेम रस की कविता के पाठ ने दर्शकों को खूब आनंदित किया।

पंखुड़ी सिन्हा ने भोपाल में पहली बार किया कविता पाठ
ककहरा नामक कविता संग्रह की रचनाकार मुजफ्फरपुर की पंखुड़ी सिन्हा ने भोपाल में पहली बार कविता पाठ किया। रंगों की बात करते हुए अपनी कविता से  ‘रंग की दुनिया’ और ‘शांति के रंग’ के साथ ही ‘गौरैया दिवस पर पंडुक और बाज़’ के पाठ से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया।

डॉआरती ने अच्छी लड़कियों को तौलने वाले मानकों पर की चोट
अपनी पहली कविता ‘लय’ के साथ कविता पाठ की शुरुआत कर डॉ आरती ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। अपनी बहुचर्चित कविता ‘एक अच्छी लड़की के लिए निबन्ध’ से आधुनिक समय में लड़कियों की अच्छाई को तौलने वाले मानकों पर चोट की।  भारत भूषण पुरस्कार अलंकृत कवि आर. चेतन क्रांति ने ‘पॉवर’ कविता से वर्तमान समय में शक्ति की भूमिका से परिचित कराया।

प्रेमशंकर शुक्ल की कविता अपना प्रेम ने बांधा समां
विश्वरंग को शुभकामना ज्ञापित करते हुए वरिष्ठ कवि प्रेमशंकर शुक्ल ने अपनी कविता ‘अपना पानी’ से रचना पाठ की शुरुआत की। कविता ‘दीये बेचती औरत’ श्रृंगार रस से सिंचित ‘अपना प्रेम’ का पाठ किया जिसका युवाओं ने भरपूर लुफ्त लिया। डॉ आरती के बाद मंच पर आये कवि निरंजन श्रोत्रीय ने पृथ्वी पर मौजूद आततायियों के कारण होने वाले असर को अपनी रचना गुरुत्व से दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया।अनुभव और विचार के बीच कल्पना की उड़ान भरने वाले वरिष्ठ कवि बलराम गुमास्ता ने अपने कविता संग्रह कवि कपूत से ‘गिद्ध कवि’ का पाठ किया।वहीं सत्र के अंतिम क्षणों में सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध साहित्यकार लीलाधर मंडलोई ने अपनी गंभीर रचनाओ के पाठ से श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया।

 

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