विश्वरंग 2022 : कला महोत्सव में दूसरे दिन वैचारिक सत्रों के साथ मंचित हुईं रामायण

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भोपाल। विश्व रंग के चौथे संस्करण के दूसरे दिन अन्नपूर्णा देवी के संस्मरण कार्यक्रम में अन्नपूर्णा देवी के शिष्य और देश के जाने-माने बांसुरी वादक नित्यानंद हल्दीपुरकर और जाने-माने पार्श्व गायिका छाया गांगुली उपस्थित रहे। विषय प्रवर्तन जाने माने कला चिंतक विनय उपाध्याय ने किया।  भारतीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की कार्यक्रम अधिकारी चित्रा शर्मा ने चर्चा को आगे बढ़ाया। बाबा अलाउद्दिन खां की बेटी और शिष्य मां अन्नपूर्णा देवी के संस्मरण को सुनाते हुए सुप्रसिद्ध बांसुरी वादक नित्यानंद हल्दीपुरकर ने कहा कि मेरे द्वारा वादन ही असल में मां अन्नपूर्णा देवी का संस्मरण होगा। उन्होंने कहा कि अन्नपूर्णा देवी के संगीत की तुलना नहीं की जा सकती। इसी क्रम में भारतीय चित्रपट की पार्श्व गायिका छाया गांगुली ने मां अन्नपूर्णा देवी के संस्मरण को याद करते हुए कहा कि कॉलेज के दिनों से ही मां अन्नपूर्णा देवी का सानिध्य प्राप्त होता रहा। उन्होंने मां अन्नपूर्णा देवी को सुर तपस्विनी कहते हुए कहा कि मेरे लिए अन्नपूर्णा देवी के साथ समय बिताना सत्संग जैसा लगता था। गौरतलब है कि मां अन्नपूर्णा देवी को सुरबहार वाद्य यंत्र में सिद्धि प्राप्त थी। इसके अलावा मां अन्नपूर्णा देवी राग मालकौंस में सिद्ध हो गई थी। लोग कहते हैं जब वह राग मालकौंस का सुर  लगाती थी तो घर के बाहर लगे पेड़ जोर-जोर से हिलने लगते थे। देश के प्रसिद्ध बांसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया,  प्रसिद्ध सितार वादक रवि शंकर जैसे शिष्यों ने मां अन्नपूर्णा देवी के चरणों में ही सुर साधा।

संगीत का धर्म है कि वह हमें बहुत सारा धैर्य दे

टैगोर अंतर्राष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव “विश्वरंग-2022” के दूसरे दिन सुबह के दूसरे सत्र में एक महत्वपूर्ण और यादगार परिचर्चा का अनूठा स्वाद श्रोताओं तक पहुँचा। परिचर्चा का विषय था “संगीत का धर्म”। इस परिचर्चा में प्रसिद्ध ध्रुपद गायक उमाकान्त गुन्देचा, प्रसिद्ध पार्श्व गायिका और आकाशवाणी की प्रस्तोता विदुषी छाया गांगुली और संगीत- अध्येता तथा लता सुरगाथा के रचयिता यतीन्द्र मिश्र के विचारों और उद्गारों की अद्भुत जुगलबंदी इस तरह अपने उत्कर्ष पर पहुँची कि श्रोता वाह वाह कर उठे। आदरणीय संतोष चौबे जी ने बतौर सत्र के अध्यक्ष इस परिचर्चा को अहम शिरकत प्रदान की। श्री लीलाधर मंडलोई ने विनय उपाध्याय जी के आग्रह मान देते हुए विशेष संचालक की भूमिका का बखूबी निर्वाह किया, और मुख्य संचालन की बागडोर विनय जी ने सँभाल रखी थी। दोनों संचालकों ने इस ख़ूबी से वक्ताओं से सवाल किए कि “संगीत का धर्म” जैसे एक धीर-गंभीर विषय का मर्म हल्के और गहरे दोनों क़िस्म के रंगों में खिलकर सभागार में बिखर गया। लगभग डेढ़ घंटे चले इस सत्र की शुरुआत में यतीन्द्र मिश्र ने “संगीत का धर्म क्या है” इस सवाल के जवाब में कहा कि संगीत का धर्म है कि वह हमें बहुत सारा धैर्य दे, विनम्रता दे, अपने से बेहतर को अपने आगे जगह देने और उसमें खुश रहने को प्रेरित करे। विदुषी छाया गांगुली ने पन्नालाल घोष, तानसेन, हरिदास, अब्दुल क़रीम खाँ, पंडित निखिल बनर्जी, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, बिस्मिल्ला खाँ आदि महान विभूतियों से जुड़े संस्मरणों के आधार पर यह बताया कि संगीत का धर्म ईश्वर की और आध्यात्मिक चेतना की प्राप्ति ही है। उमाकांत गुन्देचा ने इस अवसर पर  कहा कि -“संगीत का कोई धर्म नहीं, वह एक माध्यम है, धर्म तो कर्ता का है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि संगीतकार किस भाव से संगीत रच रहा है, यही भाव संगीतकार को उसके स्वभाव तक पहुँचाता है।

कबीर गायन में सास-बहू की जोड़ी ने घोला रस

विश्व रंग के दूसरे दिन पूर्व रंग में गीता पराग एवं समूह द्वारा कबीर गायन से हुई। इसमें उनके साथ सह गायिका के रूप में उनकी सास लीला पराग भी साथ रही है जिनके साथ गीता पराग ने सुमधुर कबीर गायन पेश करते हुए “संत दुआरे आया री जोड़िया दोनो हाथ…”, “राम रस पी ले ना मेरे भाई…”, “राम नाम तू ले ले बंदे, राम नाम से तर जाएगा…”, “म्हारी सदा राम रस भीनी चादर झीनी…”, “क्या लेके आया जगत में….” बंदिशों को पेश किया। इस दौरान उनके साथ संगत पर सह गयिका एवं मंजीरे पर लीला पराग, हारमोनियम पर तन्नू पराग, वायलिन पर संतोष सरोलिया और ढोलक पर राम सांवेरिया ने संगत दी।

मुक्ताकाश में रामायण मंचन की प्रस्तुति

शाम का मुख्य आकर्षण श्रीराम भारतीय कला केंद्र द्वारा रामायण की प्रस्तुति रही जो कि गोस्वामी तुलसीदास जी की रामचरितमानस पर आधारित रही। इसमें कलाकारों ने रामायण के प्रमुख प्रसंगों को नृत्य नाटिका के रूप में पेश किया। इसमें जहां एक ओर भारतीय एवं शास्त्रीय नृत्य की झलक थी तो वहीं दूसरी ओर लोक डांडिया और आदिवासी नृत्यों को भी शामिल किया गया था। इसके प्रमुख प्रसंगों में क्रॉन्च वध, देव-असुर संग्राम, विष्णु वरदान, राम जन्म और विद्या अभ्यास, ताड़का वध, अहिल्या उद्धार, राम सीता मिलन और स्वयंवर, परशुराम संवाद, कैकयी वरदान, केवट संवाद, भरत मिलाप, पंचवटी, सुर्पनखा, रावण दरबार, स्वर्ण मृग, सीता हरण, जटायु वध, राम लक्ष्मण की पंटवटी में पुनः आगमन, शबरी भक्ति, किष्किंधा, अशोक वाटिका, लंका दहन, लक्ष्मण-मेघनाद युद्ध, राम-रावण युद्ध, सीता अग्निपरीक्षा, श्रीराम राज्यअभिषेक शामिल रहे। रामायण की खासियत रही कि इसमें रावण द्वारा कथकली के जरिए अपने अभिनय को पेश किया गया। इसी प्रकार अन्य कलाकारों ने भी विभिन्न लोक एवं शास्त्रीय नृत्यों के जरिए रामायण को मंचित किया।

श्री राम भारतीय कला केंद्र के समूह के संयोजक गगन तिवारी बताते हैं कि श्रीराम भारतीय कला केंद्र द्वारा विश्वभर में रामायण मंचन किया जाता है। इस समूह द्वारा विश्वभर में 2000 से अधिक प्रस्तुतियां दी जा चुकी हैं। इसके जरिए भारतीय संस्कृति को वैश्विक मंचों पर प्रस्तुत करने और मानवता के संदेश को विश्व तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। रामायण का निर्देशन शोभा दीपक सिंह द्वारा किया गया है।

मंच पर

राज कुमार शर्मा, अनुराग झा, तुल्लू मुर्मू, सौविक रॉय, स्वप्न मजूमदार, नीरज, नीरज मलिक, आकाश बोस, सिमरन, ऋतुपर्णा, मधु नेगी, सुचिता मजूमदार।

मंच परे

शशिधरन नायर, राज कुमार शर्मा, स्वप्न मजूमदार, मनोहर सिंह, अभिनव चतुर्वेदी, शांति शर्मा, बिस्वजीत रॉय चौधरी, ज्वाला प्रसाद, जीतेंद्र सिंह, इंदु प्रकाश, अनुराधा निराला, हमीद, मंजीत सिंह, महेश पांडे, अरविंद कुमार, निलाभ, शोभा दीपक सिंह, मोनिका जटवानी, लक्ष्मी कोहली, दीपक कुमार, नंद कुमार, सोहन लाल, अरविंद पांडे।

कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि म.प्र. खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष श्री जीतेंद्र लिटोरिया और विशिष्ट अतिथि म.प्र. निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग के चेयरमैन प्रो. भरत शरण सिंह मौजूद रहे।

आज के कार्यक्रम(16-011-2022)

(रवीद्र भवन, गौरांजनी सेमीनार हॉल)

प्रातः 10.30 12.00 – कला समीक्षा की चुनौतियाँ विषय पर संवाद

12.30-2.00 –  संगतकारों की अलक्षित भूमिका पर चर्चा सत्र

5.30-6.30 – पूर्व रंग रंग संगीत नया थियेटर रंग संगीत

7 बजे से पूर्वा नरेश द्वारा निर्देशित नाटक बंदिश की प्रस्तुति

 

 

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