गेमचेंजर नहीं घातक बनी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन, स्टडी में उठे गंभीर सवाल
22 अप्रैल 2020,
नई दिल्ली. दुनियाभर के देश इन दिनों चीन से फैले कोरोना वायरस (Coronavirus) का कहर झेल रहे हैं. इस वायरस का अभी तक न तो कोई इलाज मिल पाया है और न ही कोई वैक्सीन विकसित हो पाई है. एंटी मलेरिया की दवाई हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (Hydroxychloroquine) को कोरोना संक्रमितों के इलाज में कुछ हद तक कारगर माना जा रहा था. इसी वजह से ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बीते दिनों धमकी भरे लहजे में भारत से इस दवा की सप्लाई की मांग की थी. हालांकि, अब अमेरिका में ही हुई एक नई स्टडी में इस दवा को लेकर हैरान करने वाली जानकारी मिल रही है.
इस स्टडी में दावा किया गया है कि कोरोना के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कारगर नहीं, बल्कि घातक साबित हो रही है. ऐसा देखा गया है कि सामान्य इलाज की तुलना में उन मरीजों की मौत ज्यादा हुई, जिन्हें हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा दी गई थी.
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के प्रोफेसरों ने ये स्टडी की है. रिसर्चर्स ने पाया कि इस दवा से कोरोना के मरीज की हालत पहले तो कुछ हद कर सुधरती है, लेकिन बाद में इतनी बिगड़ जाती है कि मरीज की मौत हो जाती है. इस स्टडी से पहले कई वैज्ञानिक और तमाम देशों के हेल्थ एक्सपर्ट अब कोरोना वायरस से लड़ाई में इस दवा की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं.
वेटरन हेल्थ एडमिनिस्ट्रेशन (VA) के आंकड़ों के विश्लेषण में पाया गया है कि कोरोना के 97 फीसदी मरीजों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा दी गई, जिनमें से 28 फीसदी कोरोना मरीजों की मौत हो गई. वहीं, अगर सामान्य प्रक्रिया में इलाज होता है, तो मृत्यु दर सिर्फ 11 फीसदी ही रही.
इस स्टडी के लिए वैज्ञानिकों और रिसर्च टीम ने अमेरिका के अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती 368 कोरोना मरीजों के इलाज प्रक्रिया की जांच की. जांच में पता चला कि इनमें से 97 मरीजों के इलाज में मलेरिया की दवा का इस्तेमाल हुआ. वहीं, 158 मरीजों का सामान्य तरीके से हुआ. हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की दवा से जिन 97 मरीजों का इलाज किया गया, उनमें से 27.8 मरीजों की मौत हो गई.
मरीजों के नर्वस और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम पर बुरा असर
रिसर्चर्स ने 4 अप्रैल से क्लोरोक्वीन और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की डोज के जरिये इलाज किए जा रहे मरीजों में होने वाले बदलावों का अध्ययन किया. इस दौरान उन्होंने दोनों दवाइयों के वायरल इंफेक्शन पर होने वाले असर और मरीजों की सुरक्षा का अध्ययन किया. इसके बाद जुटाए गए डाटा का मेटा-एनालिसिस किया. इसके अलावा एनालिसिस में होने वाली खामियों का आकलन करने के लिए ट्रायल सीक्वेंशियल एनालिसिस भी किया गया.
MedRxiv की रिपोर्ट के मुताबिक, यहां तक कि कुछ लीगल और मेडिकल ग्रुप्स का मानना है कि कोविड-19 के इलाज में इन दोनों दवाइयों के इस्तेमाल की वकालत करने वाले स्वास्थ्य अधिकारियों, सरकारों और डॉक्टर्स व हॉस्पिटल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए. वहीं, उनका कहना है कि मरीजों को भी अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए इन दवाइयों के जरिये इलाज कराने से इनकार कर देना चाहिए.