MP Election: एमपी में टिकटों को लेकर मचे घमासान से खुश है कांग्रेस

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में कांग्रेस को अंदरूनी कलह का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि पार्टी के लिए विधानसभा चुनाव के टिकट के इच्छुक उम्मीदवारों की संख्या बढ़ रही है और कई लोगों को नामांकन से वंचित कर दिया गया है, जो उसे सबक सिखाने की धमकी दे रहे हैं. यह एक मिश्रित भावना है. कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इसमें उम्मीद की किरण देखता है और दावा करता है कि यह पार्टी के मजबूत होने का संकेत है.

लेकिन कांग्रेस, जो पिछले चुनावों के बाद 22 विधायकों के टूटने के कारण सरकार गिरने से सदमे में थी, कोई जोखिम नहीं लेना चाहती. क्योंकि उसे इस बार के चुनाव में अपनी जीत की उम्मीद है. यही कारण है कि, उम्मीदवारों की अंतिम सूची घोषित करने और उसके लिए बैठक से ठीक पहले, दिग्विजय सिंह की गूढ़ और भावनात्मक सोशल मीडिया पोस्ट ने पार्टी के भीतर की दरार को उजागर कर दिया.

दिग्विजय सिंह के पोस्ट ने पार्टी के भीतर की दरार को उजागर कर दिया
दिग्विजय सिंह ने एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि जब वह 38 साल के थे तब से राजीव गांधी ने उन्हें टिकट वितरण का प्रभारी बना दिया था और उन्होंने स्वीकार किया कि यह सबसे कठिन काम होता है. उन्होंने लिखा, ‘लगभग 4000 उम्मीदवार टिकट चाहते हैं, लेकिन केवल 230 का ही चयन किया जा सकता है.’ दिग्विजय सिंह ने चयन के मानदंड भी बताए, जिसमें जिला स्तर के नेताओं और वरिष्ठों से इनपुट शामिल था.

जो कर्यकर्ता टिकट नहीं मिलने से निराश हो सकते हैं, उनके सामने दिग्गी ने पार्टी संगठन में शामिल होने की आशा जगाई. लेकिन कई लोग इससे खुश नहीं हैं. जिन लोगों को टिकट देने से इनकार कर दिया गया है, वे और कुछ अन्य लोग भी दिल्ली में शीर्ष नेताओं से शिकायत कर रहे हैं कि धनबल और दिग्विजय सिंह व कमलनाथ के प्रभाव ने टिकट वितरण में निष्पक्षता को खत्म कर दिया है.

कांग्रेस की पहली सूची आने के बाद कइयों ने पार्टी से दे दिया इस्तीफा
कांग्रेस की पहली सूची आने के बाद, निराश लोगों में से कई ने पार्टी छोड़ दी और बदला लेने की कसम खाई. उदाहरण के लिए, संतोष शर्मा ने इस बात का विरोध किया है कि पार्टी में नए-नए आए विक्रम मस्तान को शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया गया था. नागौद से टिकट नहीं मिलने पर यादवेंद्र सिंह ने इस्तीफा दे दिया. इससे भी बुरी बात यह है कि मध्य प्रदेश कांग्रेस मीडिया विभाग के उपाध्यक्ष अजय यादव ने इस्तीफा दे दिया. उन्होंने कहा कि पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं देकर पिछड़े वर्ग को अपमानित किया है.

पार्टी का दावा है कि 65% टिकट 50 साल से कम उम्र वालों को दिए गए हैं. यह एक ऐसा प्रयोग है जो राहुल गांधी चाहते थे और उन्होंने पहले बिहार के एनएसयूआई चुनावों में भी इसे आजमाया था लेकिन असफल रहे. सूत्रों का कहना है कि सभी शीर्ष नेताओं ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक साथ काम किया है कि जब अंतिम सूची आए, तो विद्रोह को नियंत्रित किया जा सके. सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक यह सुनिश्चित करना है कि बदले की भावना पार्टी को नुकसान न पहुंचाए. यह सवाल बना हुआ है कि क्या बागी कांग्रेस की संभावनाओं को कमजोर करेंगे?

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